प्रस्तुति के लिए इस्तेमाल की गई फाइल फोटो। (जागरण)
संवाद सूत्र, चंद्रमंडीह(जमुई)। बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर इन दिनों प्रचार का तरीका हाईटेक हो गया है। विभिन्न दलों के प्रत्याशी चुनाव प्रचार में इंटरनेट नेटवर्किंग साइट का धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन एक समय ऐसा भी था जब इन सबसे दूर प्रत्याशियों की किस्मत सीम के पत्ते और खजूर की कूची से लिखी जाती थी। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
71 वर्षीय भाजपा नेता जेपी सेनानी और पिछले पांच दशक से राजनीति में सक्रिय अंगराज राय बताते हैं कि सन 1977 की बात है। उस वक्त निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चकाई विधानसभा क्षेत्र से फाल्गुनी प्रसाद यादव तराजू चुनाव चिन्ह से प्रत्याशी थे।
उस वक्त प्रचार प्रसार के लिए अभी के जैसा ना तो सोशल साइट था और ना ही अखबार और टेलीविजन का इतना प्रचार-प्रसार था। ग्रामीण क्षेत्रों में तो मुख्य रूप से जनसंपर्क और दीवार लेखन से ही प्रत्याशियों का प्रचार-प्रसार होता था, लेकिन उस वक्त प्रत्याशियों के पास पैसे की कमी और संसाधन का अभाव होने के कारण सीम के पत्ते और खजूर के डाली की कूची से प्रत्याशियों की किस्मत लिखी जाती थी।
उन दिनों को याद करते हुए भाजपा नेता बताते हैं कि सुबह आठ बजे से ही सभी कार्यकर्ताओं की टोली झोले में सीम का पत्ता और खजूर के डंठल की कूची लेकर क्षेत्र में निकल जाते थे। इस दौरान दिन भर पैदल गांव-गांव में घूम-घूमकर दीवारों पर सीम के पत्ते से चुनाव चिन्ह और प्रत्याशियों के नाम का लेखन किया जाता था।
सीम के पते को पाटी पर पीसकर गीला लेप बनाया जाता था और खजूर की कूची से दीवार पर प्रत्याशी का नाम और चुनाव चिन्ह लिखा जाता था।
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सुबह से लेकर शाम तक यह सिलसिला जारी रहता था। शाम होने पर कार्यकर्ता घर लौट आते थे। घर लौटने के बाद कार्यकर्ता देर रात तक घर या दूसरे घरों में लगे पत्ते तोड़-तोड़कर जमा करते थे। यह सिलसिला रात 10 बजे से 11 बजे तक चलता था। उसके बाद सभी कार्यकर्ता सो जाते थे। फिर सुबह उठकर पत्ते को लेकर सभी कार्यकर्ता क्षेत्र में निकल जाते थे।
पूरे एक माह तक दिन भर यही प्रचार-प्रसार का तरीका खूब चलता था। आज के समय को याद करते हुए भाजपा नेता बताते हैं कि अब वैसा प्रचार का तरीका नहीं रहा और न तो ऐसे निष्ठावान कार्यकर्ता रहे।
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