सतलुज की मार से ‘गड्ढों’ में बदल गए खेत, अब दोबारा बढ़ते पानी ने बढ़ाई टेंशन
मोहित गिलहोत्रा, फाजिल्का। सतलुज दरिया का जलस्तर एक बार फिर बढ़ने से सरहदी इलाकों के किसान दोगुनी परेशानी झेल रहे हैं। पिछली बाढ़ के दौरान खेतों में जमा रेत तो जिसका खेत, उसकी रेत योजना के तहत निकलनी शुरू हो गई है, लेकिन असली मुश्किल खेतों में बने गहरे गड्ढे हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
इन गड्ढों को भरने की प्रक्रिया शुरू भी नहीं हो पाई थी कि दरिया का पानी दोबारा बढ़ने लगा। किसानों का कहना है कि खेतों में ऐसे-ऐसे गड्ढे हैं जिनमें मिट्टी डालने के लिए कई ट्रालियां लगेंगी, मगर फिलहाल पानी के चलते कोई काम संभव नहीं। अब जब रेत निकलने के साथ ही सतलुज फिर उफान पर है, तो किसानों के खेत समतल होने की उम्मीदें एक बार फिर धुंधली पड़ गई हैं।
अगस्त महीने की शुरुआत में हुई बारिशों के चलते सबसे पहले छह अगस्त को सतलुज दरिया में पानी बढ़ना शुरू हुआ था। शुरुआती चार-पांच दिनों में हालात काबू में आ गए, लेकिन हिमाचल प्रदेश में लगातार बारिश ने 16 अगस्त को स्थिति फिर बदल दी। धीरे-धीरे पानी ने खेतों और घरों को अपनी चपेट में ले लिया, जिससे कई गांवों में लोग अस्थायी रूप से पलायन करने को मजबूर हुए।
20-25 दिन बाद जब ग्रामीणों ने घरों में वापसी की तो फसलें पूरी तरह बर्बाद हो चुकी थीं। सबसे बड़ी चुनौती खेतों में जमा भारी रेत थी। सरकार की “जिसका खेत, उसकी रेत” योजना के तहत खेतों से रेत निकालने का काम शुरू किया गया, ताकि गेहूं की बिजाई से पहले जमीन तैयार की जा सके। हालांकि, इसी बीच सतलुज का जलस्तर फिर बढ़ने लगा, जिससे गड्ढों को भरने का काम बाधित हो गया।
किसान अब गहरे गड्ढों की समस्या से जूझ रहे हैं, जिनमें उपजाऊ मिट्टी डालने के लिए कई ट्रालियां लगेंगी। ग्रामीणों ने बताया कि बाढ़ के बाद खेतों में रेत हटाने का काम शुरू किया था, लेकिन पानी फिर बढ़ गया। गड्ढे इतने बड़े हैं कि उन्हें भरने के लिए पूरी तैयारी करनी पड़ेगी, मगर पानी के चलते फिलहाल कुछ नहीं किया जा सकता। हमें डर है कि अगर यही हाल रहा तो बुवाई भी प्रभावित होगी।
गांव तेजा रुहेला के मंगल सिंह ने कहा कि एक माह पहले आई बाढ़ में हमारे खेतों में भारी रेत जमा हो गई थी। सरकार की ‘जिसका खेत, उसकी रेत’ योजना से कुछ राहत मिली और रेत हटाने का काम शुरू हुआ था।
लेकिन अभी मिट्टी डालने और गड्ढों को भरने का काम अधूरा ही था कि सतलुज का जलस्तर फिर बढ़ गया। गहरे गड्ढों की संख्या इतनी ज्यादा है कि उन्हें भरने के लिए कई ट्रालियां लगेंगी। अगर पानी लगातार बढ़ता रहा तो खेत पूरी तरह बेकार हो जाएंगे और गेहूं की बुवाई भी प्रभावित होगी।
वहीं गांव दोना नानका के किसान हरपाल सिंह ने कहा कि हमारे गांव के खेतों में गहरे गड्ढे बन गए हैं। पिछले बाढ़ के दौरान घरों और खेतों को नुकसान हुआ और अब गड्ढों की भराई सबसे बड़ी चुनौती बन गई है।
खेतों में उपजाऊ मिट्टी डालने के लिए कई ट्रालियां लगेंगी और फिलहाल सतलुज का पानी फिर बढ़ गया है। प्रशासन ने कुछ कदम उठाए हैं, लेकिन हमारी चिंता यह है कि अगर पानी बढ़ा रहा तो मेहनत और फसल दोनों प्रभावित हो सकते हैं।
माइनिंग व ड्रेनेज विभाग के एक्सियन आलोक चौधरी ने कहा डैमों से छोड़े जाने के चलते जलस्तर में वृद्धि हुई है। विभाग पूरी तरह अलर्ट पर है और हर घंटे हालात की रिपोर्ट ली जा रही है। एक-दो दिनों में पानी का स्तर कम होना शुरू हो जाएगा, जिससे ग्रामीणों को राहत मिलेगी। |