लगातार नियुक्तियों से विपक्ष का मुद्दा छीन रहे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन।
प्रदीप सिंह, रांची। झारखंड में बेरोजगारी और नियुक्ति को लेकर विपक्ष के लगातार हमलों के बीच मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस मुद्दे का जवाब पलटवार से नहीं, बल्कि आंकड़ों और नियुक्ति पत्रों के जरिए दिया है। उनके अबतक के कार्यकाल में अलग–अलग विभागों में हजारों युवाओं को सरकारी नौकरी देकर विपक्ष के सबसे बड़े हथियार की धार को काफी हद तक कुंद कर दिया गया। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
सरकारी आंकड़ों के अनुसार शिक्षा विभाग में करीब 25 से 30 हजार शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया पूरी की गई या अंतिम चरण में पहुंची। स्वास्थ्य विभाग में डाक्टर, नर्स और पैरामेडिकल कर्मियों को मिलाकर करीब पांच हजार पदों पर बहाली हुई।
क्लर्क, तकनीकी और अन्य विभागों में लगभग आठ से 10 हजार पदों पर नियुक्ति दी गई। कुल मिलाकर पचास हजार से अधिक युवाओं को या तो नियुक्ति मिल चुकी है या प्रक्रिया पूरी होने वाली है।
आयोगों की सक्रियता से बढ़ी रफ्तार
झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) और झारखंड कर्मचारी चयन आयोग (जेएसएससी) के माध्यम से कई वर्षों से लंबित परीक्षाएं कराई गईं। परीक्षाओं के परिणाम घोषित हुए और नियुक्ति पत्र वितरित किए गए। पहले जहां एक–एक परीक्षा में सालों लग जाते थे, अब वहां समयबद्ध चयन प्रक्रिया शुरू हुई है।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने खुद कई मौकों पर हजारों युवाओं को एक साथ नियुक्ति पत्र सौंपे। इन आयोजनों को सरकार ने यह दिखाने के लिए इस्तेमाल किया कि नियुक्तियां कागजों तक सीमित नहीं, बल्कि जमीनी हकीकत है।
- बयानों से नहीं, आंकड़ों और नियुक्ति पत्रों के जरिए विपक्ष को करार जवाब
- युवाओं को नौकरी देकर विपक्ष के बड़े राजनीतिक हथियार को किया कुंद
अनुबंधकर्मियों को भी राहत
राज्य सरकार ने हजारों अनुबंधकर्मियों के नियमितीकरण और वेतन सुधार के फैसले लिए। इससे लंबे समय से आंदोलनरत वर्गों में संतोष का माहौल बना। नियुक्तियों के ये आंकड़े ही वह कारण हैं, जिनकी वजह से बेरोजगारी का सवाल अब विपक्ष के लिए पहले जितना असरदार नहीं रह गया है।
जहां पहले नियुक्ति नहीं होने का आरोप लगता था, वहीं अब सरकार संख्या और सूची सामने रख देती है। सरकार ने नियुक्तियों को सिर्फ प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं रहने दिया, बल्कि उसे राजनीतिक जवाब में बदल दिया।
इन फैसलों से भी बढ़त मिली राजनीतिक विरोधियों पर
- पेसा कानून की नियमावली लागू करना: आदिवासी राजनीति में मास्टर स्ट्रोक, वर्षों से लंबित पेसा कानून को नियमावली के साथ लागू कर दिया गया। भाजपा लंबे समय से इसे लेकर सरकार पर आदिवासी विरोधी होने का आरोप लगाती रही थी। परिणाम हुआ कि भाजपा का बड़ा मुद्दा हेमंत सोरेन ने छीन लिया।
- पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) की बहाली: कर्मचारी वर्ग को साधने का फैसला, नई पेंशन योजना हटाकर ओपीएस लागू। शिक्षक, सरकारी कर्मचारी और उनके परिवार की सहानुभूति मिली। विपक्ष की पकड़ कमजोर हुई।
- अबुआ आवास योजना: प्रधानमंत्री आवास का झारखंडी विकल्प, केंद्र की योजनाओं के विकल्प के रूप में राज्य की अपनी योजना। गरीब, आदिवासी, दलित परिवारों को सीधे लाभ। अबुआ जैसे स्थानीय शब्द ने भावनात्मक जुड़ाव बनाया। केंद्र बनाम राज्य की बहस में हेमंत सरकार ने नैरेटिव बदला।
- मंइयां सम्मान योजना: महिलाओं को सीधा आर्थिक संबल, महिलाओं के खाते में सीधे सहायता, ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में व्यापक असर, आधी आबादी में सरकार की लोकप्रियता और स्वीकार्यता बढ़ी।
- छात्रवृत्ति और शिक्षा सुधार: आदिवासी-दलित युवाओं पर फोकस, प्री और पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति में तेजी, आवासीय विद्यालय, छात्रावासों का विस्तार, युवा वर्ग में सरकार के प्रति सकारात्मक धारणा।
|