मथुरा के रैन बसेरा में पहुंचे लोग।
जितेंद्र गुप्ता, मथुरा। वीकेंड पर छुट्टी मनाने के लिए कान्हा की नगरी में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए घना कोहरा रविवार रात घातक बना। 10 बजते ही हालात ऐसे हो गए कि सड़कों पर कुछ कदम आगे भी दिखाई देना मुश्किल हो गया। ठंड और कोहरे के डबल अटैक ने श्रद्धालुओं और गरीबों को खुले आसमान के नीचे रात गुजारने पर मजबूर कर दिया। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड पर हालत सबसे ज्यादा खराब रही। नए वर्ष से शुरू होने से पहले ही कान्हा की नगरी में वीकेंड छुट्टी मनाने के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं का आवागमन शुरू हो गया है। घने कोहरे ने रविवार रात जिले में धुंध की मोटी चादर फैला दी।
अलाव, कंबल के साथ नहीं मिली वैकल्पिक व्यवस्था, भटकते रहे श्रद्धालु
नया बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, हाईवे और शहर की प्रमुख सड़कों पर दृश्यता शून्य के करीब पहुंच गई। ठंड और कोहरे ने यातायात व्यवस्था को ठप कर दिया। ट्रेनें देरी से चलीं। रात 10 बजे शहर की सड़कों के साथ हाईवे पर वाहन रेंगते नजर आए। पैदल चलने वाले श्रद्धालु भी रास्ता भटकते दिखे।
रैन बसेरों में भीड़ अधिक होने पर वापस किए जा रहे लोग
बस अड्डा स्थित नगर निगम के रैन बसेरे एक बार फिर पूरी तरह फेल साबित हुए। रैन बसेरे में केवल 19 चारपाइयां हैं। पहले से यह फुल थीं। दर्जनों श्रद्धालुओं के लिए रैन बसेरों के दरवाजे भी नहीं खुले। जिन्होंने जोर देकर खुलवाया भी तो उन्हें वहां रुकने नहीं दिया गया। उन्होंने बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन और दुकानों के बाहर फर्श पर ही रात बिताई।
रात नौ बजे रैन बसेरा के दरवाजे, खटखटाने पर भी नहीं खुलते
नगर निगम ने भीषण सर्दी में राहत देने के लिए बस स्टैंड, रेलवे स्टैंड, जिला अस्पताल में रैन बसेरे बनाए हैं। नए बस स्टैंड पर बने रैन बसेरे में महिलाओं के लिए सिर्फ पांच और पुरुषों के लिए 14 चारपाई व रजाई की व्यवस्था है। इसमें कुल 19 लोगों को राहत दी सकती है। लेकिन एक चारपाई पर कर्मचारी का कब्जा रहता है। 18 यात्री को ही रैन बसेरा में प्रवेश दिया जाता है। रात नौ बजे रैन बसेरे के दरवाजे बंद हो जाते हैं।
मेरठ जाने के लिए कोई बस रात में नहीं थी। रैन बसेरा में मात्र 14 बेड हैं। ये पहले ही से भर गए। बड़ी मुश्किल से रैन बसेरे का गेट खुलवाया, लेकिन कर्मी ने जगह न होने का हवाला देकर भगा दिया। इसलिए बस स्टैंड के प्लेटफार्म पर सोने को मजबूर होना पड़ा। - शेखर, भगवतपुरम, मेरठ
प्रेमानंद महाराज के दर्शन के लिए आई हूं। रैन बसेरे में महिलाओं के लिए पांच ही बिस्तर थे। इसलिए वहां जगह नहीं मिलीं। अब खुले आसमान के नीचे ही रात काटनी पड़ेगी। रैन बसेरे सिर्फ खानापूर्ति है। अधिकारी कागजों में श्रद्धालुओं को राहत दे रहे हैं। -मीनाक्षी राजपूत, कश्मीरी गेट, दिल्ली
रैन बसेरों के दरवाजे अगर रात में अंदर से बंद किए जा रहे हैं और कर्मी अगर बेड में सो रहे हैं तो इसे दिखवाते हैं। रैन बसेरे सभी के लिए हैं। इनके अंदर हीटर भी लगे हैं। लोग अंदर जाकर सर्दी से राहत पा सकते हैं। -जग प्रवेश, नगर आयुक्त
जिले में 59 स्थानों पर अलाव की व्यवस्था की गई है। 27 रेन बसेरा स्थापित किए गए हैं। जिले में अभी तक पांच हजार कंबल वितरित किए गए हैं। अभी और भी कंबलों की व्यवस्था की जा रही है। -सीपी सिंह, डीएम |