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Unnao Rape Case: जेल से बाहर नहीं आएगा कुलदीप सेंगर, सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के जमानत वाले आदेश पर लगाई रोक

LHC0088 2025-12-29 18:01:08 views 800
उन्नाव रेप केस में कुलदीप सेंगर को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। शीर्ष अदालत ने दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें सेंगर को जमानत दे दी गई थी। CBI ने दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ याचिका दायर की थी, जिसमें सेंगर को जमानत दी गई थी और उसकी दोषसिद्धि के खिलाफ अपील लंबित रहने के दौरान उसकी आजीवन कारावास की सजा को निलंबित कर दिया गया था।



CJI सूर्यकांत, जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने इस पर सुनवाई की। Live Law के मुताबिक, CBI के लिए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि यह बहुत भयानक मामला है। इसमें 15 साल की बच्ची का बलात्कार हुआ था। ट्रायल कोर्ट ने दो मुख्य अपराधों पर आरोप तय किए थे - IPC की धारा 376 और POCSO एक्ट की धारा 5 व 6।



कोर्ट ने दो धाराओं पर दोषी ठहराया। सॉलिसिटर जनरल ने दोषसिद्धि आदेश का हवाला दिया। उन्होंने बताया कि ट्रायल में पाया गया कि बच्ची 16 साल से कम उम्र की थी। इस दोषसिद्धि के खिलाफ अपील लंबित है।




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CJI ने पूछा कि क्या यह अपील दोषसिद्धि के खिलाफ है? सॉलिसिटर जनरल ने कहा- हां। अपराध के समय धारा 376(2)(i) लागू थी, जो गंभीर बलात्कार के लिए है। इसमें न्यूनतम 20 साल की सजा, उम्रकैद तक हो सकती है। अगर कोई प्रभावी पद पर हो या 16 साल से कम की लड़की हो, तो यह धारा लगती है। यहां कोर्ट ने इसी धारा के तहत सजा दी।



सीजेआई ने कहा कि अगर पीड़िता नाबालिग न हो, तब भी न्यूनतम 10 साल से 20 साल तक सजा मिलेगी।



सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि कोर्ट ने सजा को आजीवन बताया है। जस्टिस माहेश्वरी ने कहा कि अपराध के समय उप-खंड (i) मौजूद था।



SG ने आपत्तिजनक आदेश के पैरा 25 का हवाला दिया, जो और गलत है। उन्होंने कहा कि इस मामले में आजीवन कारावास न्यूनतम सजा है।



सीजेआई ने पूछा कि क्या आपका तर्क है कि पीड़िता नाबालिग होने पर लोक सेवक का विचार लागू नहीं होता? एसजी ने कहा, बिल्कुल सही।



POCSO एक्ट के अपराध दो श्रेणियों में बांटे जा सकते हैं। प्रवेशी यौन हमला अपने आप अपराध है, धारा 4 सजा बताती है। 2019 संशोधन (अपराध के बाद) से 10 साल न्यूनतम, अधिकतम आजीवन। कुछ हालात में गंभीर रूप है, जैसे प्रभावी पद पर होने पर।



सुनवाई के दौरान, चीफ जस्टिस ने दिल्ली हाई कोर्ट की तरफ से अपनाई गई व्याख्या के निहितार्थों पर प्रकाश डाला और कहा कि अगर इसे स्वीकार कर लिया जाता है, तो एक कांस्टेबल या पटवारी भी लोक सेवक की श्रेणी में आ जाएगा, जबकि एक विधायक या सांसद इससे बाहर रह सकते हैं और छूट का दावा कर सकते हैं। बलात्कार पीड़िता की ओर से पेश वकील ने हस्तक्षेप करने की अनुमति मांगी, लेकिन अदालत ने कहा कि वह स्वतंत्र अपील दायर कर सकती हैं।



अपने आदेश में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आमतौर वह अभियुक्तों की सुनवाई किए बिना निचली अदालतों या हाई कोर्ट की ओर से पारित जमानत आदेशों पर रोक नहीं लगाता है। हालांकि, न्यायालय ने कहा कि वर्तमान मामले में “विशिष्ट तथ्य“ शामिल हैं, क्योंकि सेंगर को एक और मामले में IPC की धारा 304 भाग II के तहत दोषी ठहराया गया है और सजा सुनाई गई है और वह उस मामले में हिरासत में है।



भारत के चीफ जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि इस मामले में “कानून के महत्वपूर्ण प्रश्न“ उठते हैं और इस मामले पर नोटिस जारी किया। हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए, अदालत ने साफ किया कि सेंगर जेल में ही रहेंगे, क्योंकि वह पहले से ही एक अन्य आपराधिक मामले में सजा काट रहे हैं।



Unnao Rape Case: निष्पक्ष जांच का दावा खोखला? रेप पीड़िता को CBI ने कैसे किया निराश, कोर्ट ऑर्डर से चला पता!
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