कार में सोना, सिस्टम में जंग... 52 किलो गोल्ड केस में एक साल बाद ड्राइवर तक को नहीं पकड़ पाई लोकायुक्त पुलिस, जांच भी अधूरी

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जंगल में खड़ी कार से 52 किलो सोना बरामद हुआ था (फाइल फोटो)



डिजिटल डेस्क, भोपाल। भ्रष्टाचार को लेकर हमारी सरकार जीरो टॉलरेंस पर चल रही है...हम किसी को छोड़ेंगे नहीं... किसी राजनीतिक दबाव में नहीं आएंगे... इस तरह की बातें राज्य सरकार के मंत्री, अफसर और दूसरे नेता पूरी ताकत से बोलते हैं, लेकिन कार्रवाई उतनी ही ढीली है। इसका बड़ा उदाहरण देश भर में प्रदेश को शर्मसार करने वाला पूर्व परिवहन आरक्षक सौरभ शर्मा का घोटाला है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
सालभर बाद भी कार्रवाई ढीली

आज से ठीक एक वर्ष पहले 19 दिसंबर 2024 लोकायुक्त पुलिस ने उसके आवास और कार्यालय में छापा मारा था। दोनों जगह मिलकर आठ करोड रुपये की संपत्ति मिली। उसके अगले दिन भोपाल के मेंडोरी गांव में जंगल में खड़ी कार में 52 किलो सोना और 10 करोड रुपये नकद मिले, जिसे आयकर विभाग ने जब्त किया।

लोकायुक्त पुलिस अभी तक कार को मेंडोरी गांव तक ले जाने वाले ड्राइवर प्यारे को ही गिरफ्तार नहीं कर पाई है। जांच भी अभी अधूरी है। अधिकारियों का कहना है कि मामले में अभियोजन शुरू होने में अभी कम से कम तीन महीने और लग सकते हैं।

  
तीन को बनाया आरोपी, एक को मिली जमानत

बता दे कि मामले में पुलिस ने सौरभ शर्मा के अतिरिक्त उसके दोस्त चेतन गौर और शरद जायसवाल को आरोपी बनाया था। गौर की जमानत हो गई है, बाकी दोनों आरोपी अभी जेल में है। लोकायुक्त पुलिस में दर्ज अपराध के आधार पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने भी प्रकरण कायम कर छापा मारा था। ईडी ने प्यारे और सौरभ शर्मा के कुछ रिश्तेदारों को भी आरोपी बनाया है। लोकायुक्त पुलिस के अधिकारियों का कहना है कि चालान में आरोपितों की संख्या बढ़ेगी। सूत्रों के अनुसार कुल आरोपित 10 से 12 तक हो सकते हैं।

एक वर्ष बाद भी भ्रष्टाचार की कड़ी में कई प्रश्नों का उत्तर पुलिस नहीं खोज पाई है। सोने वाली कार चेतन गौर के नाम पर थी, जिसे सौरभ के मौसेरे जीजा ने मेंडोरी में अपने प्लांट में खड़ी करवाया था। ड्राइवर से पूछताछ नहीं हो पाने के कारण यह पता नहीं चल पा रहा है कि कार कहां से निकली थी।
अधिकारियों से अब तक पूछताछ नहीं

परिवहन विभाग के जिन अधिकारियों के समय सौरभ शर्मा ने घोटाला किया, उनसे ना तो लोकायुक्त पुलिस ने पूछताछ की न ही प्रवर्तन निदेशालय और आयकर विभाग ने। माना जा रहा था तीन एजेंसियों की जांच में परिवहन विभाग में वर्षो से चल रहे घोटाले की नीचे से ऊपर तक की कड़ियां सामने आएंगी, लेकिन मामला सौरभ तक ही सिमटा रह गया।
लोकायुक्त में हुईं थीं तीन शिकायतें

इस मामले में तीन और शिकायतें लोकायुक्त में हुईं। एक, विधानसभा में उप नेता प्रतिपक्ष हेमंत कटारे ने तत्कालीन परिवहन मंत्री भूपेंद्र सिंह के विरुद्ध, दूसरी शिकायत नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने पूर्व परिवहन मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के विरुद्ध आय से अधिक संपत्ति के संबंध में की थी। तीसरी शिकायत ग्वालियर के एक आरटीआइ कार्यकर्ता ने सौरभ के साथ कार्यरत चार और परिवहन आरक्षकों की आय से अधिक संपत्ति को लेकर की थी।

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हालांकि, भूपेंद्र सिंह और गोविंद राजपूत दोनों ने आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया था, लेकिन लोकायुक्त में तीनों शिकायतों की जांच आगे नहीं बढ़ी। भ्रष्टाचार के मामलों में जांच एजेंसियों की ढीली कार्रवाई के चलते भ्रष्टाचारियों में डर नहीं है, इसी माह में औसतन हर तीसरे दिन एक आरोपी को रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़ा गया है।
12 लोगों के विरुद्ध चालान पेश कर चुकी है ईडी

ईडी ने इस मामले में 12 आरोपितों के विरुद्ध भोपाल की विशेष न्यायालय में चालान पेश किया था, जिसमें माना था कि सोना सौरभ का है। ईडी ने सौरभ शर्मा, उसकी मां, पत्नी दिव्या शर्मा, शरद जायसवाल, चेतन सिंह गौर, सौरभ की फर्मों और उनके निदेशकों को आरोपित बनाया था सौरभ अभी भी जेल में बंद है।

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उसने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट से जमानत याचिका वापस ले ली थी। घोटाला उजागर होने के बाद आज तक ग्वालियर स्थित परिवहन मुख्यालय में परिवहन के एडिशनल कमिश्नर के पद पर नियुक्ति नहीं हुई है। भौपाल में सौरभ के यहां इंडी, लोकायुक्त और आयकर विभाग ने छापे मारे थे।
करोड़ों रुपये की काली कमाई

कार्रवाई के दौरान सौरभ शर्मा के पास 93 करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्ति मिली, इनमें कार में मिला 52 किलो सोना और 10 करोड़ रुपये नकद भी शामिल है। सौरभ के फर्जी शपथ पत्र देकर नौकरी हासिल करने को लेकर ग्वालियर के सिरोल, थाने में परिवहन विभाग ने केस दर्ज कराया, लेकिन अभी तक जांच एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाई। बता दें कि सौरभ मूल रूप से ग्वालियर का रहने वाला है।


सौरभ शर्मा के मामले में जांच अभी चल रही है, इस कारण चालान प्रस्तुत करने में अभी समय लगेगा। इस तरह की मामलों में जांच में समय अधिक लगता है।
- योगेश देशमुख, डीजी, लोकायुक्त (विशेष पुलिस स्थापना)
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