गुज्जर-बक्करवाल व अन्य जनजातीय समुदाय की मांग पूरी, एफआरए को लागू करने की जिम्मेदारी जनजातीय मामले विभाग को सौंपी

Chikheang 2025-12-17 20:07:12 views 969
  

सरकार के इस फैसले से इन समुदायों का विकास सुनिश्चित होगा। फाइल फोटो।



नवीन नवाज, जम्मू। वनाधिकार अधिनियम के तहत लाभार्थियों के दावों के निपटाने में देरी की शिकायतों के बीच प्रदेश सरकार ने एफआरए को लागू करने के लिए अनुसूचित जनजातीय मामले विभाग को अधिकृत कर दिया है।

पहले यह जिम्मेदारी वन विभाग संभाल रहाहै। जम्मू कश्मीर में गुज्जर-बक्करवाल व अन्य जनजातीय समुदाय एफआरए को कार्यान्वित करने की जिम्मेदारी जनजातीय मामले विभाग को सौंपे जाने की मांग कर रहे थे। उल्लेखनीय है कि एफआरए के तहत प्रदेश में दावों के निपटारे की दर मात्र 13 प्रतिशत है जबकि 40 हजार दावे लंबित पड़े हुए हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

पूरे देश में वर्ष 2006 से लागू एफआरए को अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के बाद वर्ष 2020 में लागू किया गया है। यहां यह बताना असंगत नहीं होगा कि पांच अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण से पूर्व जम्मू कश्मीर में कोई भी केंद्रीय कानून सीधे लागू नहीं हो सकता था और केंद्रीय कानून तभी प्रभावी होते थे जब जम्मू कश्मीर विधानसभा उन्हें लागू करने के लिए पारित करती।
जानिए क्या है एफआरए

जम्मू कश्मीर महाप्रशासनिक विभाग (जेकेजीएडी) ने गत सप्ताह एक औपचारिक आदेश जारी कर कहा है कि जम्मू कश्मीर में अनुसूचित जनजाति व वनों में रहने रहने वाले अन्य समुदाय व जातियां (वन अधिकारों की मान्यता ) अधिनियम, 2006 को लागू करने के लिए नोडल विभाग रहेगा।

एफआरए, वनों में रहने वाले और जनजातीय समुदायों को वनों पर दो प्रकार के अधिकार प्रदान करता है- सामुदायिक और निजि। अधिनियम के तहत ग्राम सभा संबधित क्षेत्र में किसी जमीन को वन और वनीय भूमि घोषित करने के लिए एक प्रस्ताव पारित करती हैं और एक लिखित आवेदन के आधार पर उक्त क्षेत्र में रहने वाले लोग जो वनों पर आश्रित हैं या वनों में रहते हैं, अपने दावे प्रस्तुत करते हैं।

इन दावों को परखा जाता है और उसके आधार पर सामुदायिक या फिर निजि तौर पर वन उपज का प्रयोग करने, वनों में मवेशी चराने का अधिकार मिलता है। ग्राम सभा की अधयक्षता चेयरमैन करता है और इसमें संबधित समुदाय के प्रतिनिधि, संबधित पंच-सरपंच,वनाधिकारी, पटवारी और पंचायत सचिव शामिल होते हैं।

एफआरए में प्रविधान है कि जंगल मं रहने वलो किसी भी अनुसूचित जनजाति या किसी अन्य दूसरे समुदाय को जो परम्परागतरूप से वनों पर आश्रित है या उनमें रहता है, वनों से तब तक बेदखल करने या हटाने पर रोक लगाता है, जब तक उसकी पहचान-सत्यापन और उसके दावों का निपटारा नहीं हो जाता।
46 हजार से ज्यादा दावे इस वर्ष अक्टूबर तक प्राप्त हुए

वन विभाग के अनुसार, जम्मू कश्मीर में एफआरए से संबधित 46 हजार से ज्यादा दावे इस वर्ष अक्टूबर तक प्राप्त हुए थे और इनमें से सिर्फ 6020 दावों को निपटाते हुए संबधित लोगों को संबधित दस्तावेज, अनुमति प्रदान की गई है। इनमें 429 निजी अनुमतियां और 5591 समुदायिक मंजूर अथवा कम्युनिटी टाइटल हैं।

पूर्व विधायक और मंत्री एजाज अहमद खान ने कहा कि वनाधिकार अधिनियम को यहां लागू हुए पांच वर्ष बीत रहे हैं,लेकिन यह प्रभावी रूप से कार्यान्वित नहीं हो रहा है। वन विभाग को इसकी जिम्मेदारी दी गई थी और कई अन्य प्रशासनिक प्रक्रियाएं भी जटिल हैं। हम चाहते थे कि इसे लागू करने के लिए जनजातीय मामले विभाग को ही पूरी जिम्मेदारी दे,क्योंकि उसके पास जनजातीय समुदायों का लगभग पूरा रिकार्ड रहता है। कई अौपचारिकताओं को पूरा करने के लिए भी जनजातीय मामले विभाग के पास ही जाना पड़ता था।
यह देर से उठाया गया एक सही कदम

जम्मू-कश्मीर में एफआरए को लेकर संबंधित समुदायों में जागरुकता पैदा करने और उक्त अधिनियम को पूरी तरह से प्रभावी बनाने के लिए प्रयासरत फारेस्ट राइट्स के प्रधान शेख गुलाम रसूल ने कहा कि एफआरए को लागू करने की जिम्मेदारी वन विभाग से जनजातीय मामले विभाग को स्थानांतरित किया जाना, स्वागत योग्य है। यह देर से उठाया गया एक सही कदम है।

उन्होंने कहा कि आप खुद देखें कि पूरे देश में ट्राइबल वेल्फेयर डिपार्टमेंट ही नोडल एजेंसी के तौर पर काम कर रहे हैं और यही नियम भी है,लेकिन यहां वन विभाग को यह जिम्मा सौंपा गया है। यह बदलाव खानाबदोश गुज्जर-बक्करवाल, गद्दी-सिप्पी समुदायोंके लिए राहत भरा है,क्योंकि यही लोग वनों और चरागाहों के साथ सदियोंसे जुढ़े हुए है।
क्या है एफआरए का प्रावधान है

उन्होने बताया कि एफआरए में प्रावधान है कि जंगल में रहने वलो किसी भी अनुसूचित जनजाति या किसी अन्य दूसरे समुदाय को जो परम्परागत रूप से वनों पर आश्रित है या उनमें रहता है, वनों से तब तक बेदखल करने या हटाने पर रोक लगाता है, जब तक उसकी पहचान-सत्यापन और उसके दावों का निपटारा नहीं हो जाता, लेकिन यहां इस प्रविधान की अनदेखी हो रही थी।

महाप्रशासनिक विभाग के अनुसार, अब जनजातीय मामले विभाग के प्रशासकीय सचिव, धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान (डीएजेजीयूए) के तहत आने वाले अनुसूचित जनजातिय समुदाय और वनों में रहने वाले और वनों पर आश्रित समुदायों के लिए एफआरए को लागू करने और संबधित कार्याें की प्रगति, निगरानी और रिपोर्टिंग के लिए भारत सरकार के जनजातीय मामले मंत्रालय के साथ समन्वय बनाए रखने के लिए जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश से नोडल ऑफिसर होंगे।
एफआरए को लागू करने में आ रहीं दिक्कतें अब दूर होंगी

वन, पर्यावरण एवं जनजातीय मामले मंत्री जावेद अहमद राणा ने कहा कि एफआरए को लागू करने में जो दिक्कतें आ रही थी, वह अब दूर होंगी और संबधित दावों को जल्दी से निपटाने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की सरकार के इस फैसले से उन लोगों कोराहत मिली है जो सदियों से जंगलों पर आश्रित हैं और जंगलों की हिफाजत करते आए हैं। उन्होंने कहा कि यहां गुज्जर-बक्करवाल व अन्य समुदाय जो जंगलों पर आश्रित हैं, वही जंगलों की अहमियत समझते हैं और एफआरए को लागू करने के लिए जनजातीय मामले विभाग को नोडल विभाग बनाकर सरकार ने इन लोगों की एक बड़ी मांग पूरी की है।
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