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पिप्पलाद ऋषि की कथा (AI Generated Image)
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। शनि देव, सूर्य देव के पुत्र हैं, जो न्याय के देवता और कर्मफल दाता कहे जाते हैं। हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि शनिदेव (Shani Dev) जिस भी व्यक्ति पर अपनी दृष्टि डालते हैं, उसके जीवन में मुश्किलें बढ़ जाती हैं। वहीं पीपल के पेड़ की पूजा शनिदोष से राहत पाने का एक बेहतर उपाय माना गया है, जिसके पीछे एक पौराणिक कथा भी मिलती है। चलिए जानते हैं इस बारे में। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
पिप्पलाद ऋषि से जुड़ी कथा
प्रश्नोपनिषद में वर्णित कथा के अनुसार, महर्षि दधीचि ने अपनी हड्डियां इंद्र देव को वृत्तासुर नामक राक्षस का वध करने के लिए प्रदान की थीं। उनकी पत्नी इस बात को सहन न कर सकीं और उन्होंने सती होने का फैसला लिया। वह स्वयं महर्षि दधीचि की चिता के साथ सती हो गईं और उन्होंने अपने 3 वर्ष के बालक को विशाल पीपल वृक्ष के कोटर में रख दिया।
कोटर में गिरे पीपल के गोदों (फल) को खाकर वह बालक जैसे-तैसे बड़ा होने लगा। एक दिन उस स्थान के पास से देवर्षि नारद गुजरे और उन्होंने उस बालक को कष्टप्रद स्थिति में देख, उसका परिचय पूछा। तब बालक ने उत्तर दिया कि मुझे अपने व अपने माता-पिता के विषय में कुछ भी नहीं पता।
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नारद जी ने बताई पूरी सच्चाई
तब नारद जी ने उस अपनी दिव्य दृष्टि से उसे बालक को बताया कि तुम महान दानी महर्षि दधीचि के पुत्र हो। और उस बालक को उनके माता-पिता से संबंधित सारी बात बताई। तब बालक ने पूछा कि मेरे माता-पिता की अकाल मृत्यु किस कारण हुई। तब नारद मुनि कहते हैं कि उनपर शनिदेव की महादशा थी। देवर्षि नारद ने उस बालक का नाम पिप्पलाद रखा।
नारद जी की बात जानने के बाद पिप्पलाद ने ब्रह्मा जी की घोर तपस्या की, जिससे ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए और उनसे वरदान मांगने को कहा। तब पिप्पलाद ने उनसे अपनी दृष्टि मात्र से किसी को भी जला देने की शक्ति मांगी। ब्रह्मा जी से यह वरदान मिलने के बाद पिप्पलाद ने शनि देव का आह्वान किया और उनपर अपनी दृष्टि डाल दी, जिससे शनिदेव का शरीर जलने लगा।
सूर्य देव ने ब्रह्मा जी से मांगी मदद
सूर्य भी अपने पुत्र को बचाने में असर्मथ थे और उन्होंने ब्रह्मा जी से मदद मांगी। तब ब्रह्मा जी ने प्रकट होकर पिप्पलाद से शनिदेव को छोड़ने के लिए कहां, लेकिन पिप्पलाद नहीं मानें। तब ब्रह्मा जी ने पिप्पलाद से कहा कि वह एक के बदले दो वर मांग सकते हैं।
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मांगे यह 2 वचन
इस शर्त पर पिप्पलाद तैयार हो गए और उन्होंने यह दो वरदान मांगे कि किसी भी व्यक्ति की जन्म कुंडली में 5 वर्ष की आयु तक शनि का कोई प्रभाव नहीं होगा। दूसरा वरदान यह था कि मुझ अनाथ को पीपल के वृक्ष ने शरद दी। अतः जो भी व्यक्ति सूर्योदय से पहले पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाएगा, उसपर शनि की महादशा का प्रभाव नहीं पड़ेगा। तभी से यह शनि की महादशा के प्रभाव से मुक्ति के लिए पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाने और उसकी पूजा करने की परम्परा चली आ रही है।
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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है। |
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