सुमन सेमवाल, देहरादून। दुनिया की सबसे ऊंची और दुर्गम चोटियों में से एक नंदा देवी पर्वत पर 60 साल पहले अमेरिका के एक खुफिया मिशन के दौरान परमाणु उपकरण के वहीं छूट जाने को लेकर चर्चाओं और कयासबाजी का दौर गाहे-बगाहे छिड़ जाता है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
वर्ष 2021 में जब चमोली जिले के ऋषिगंगा कैचमेंट से जलप्रलय निकली थी तो उसे विज्ञानियों ने हैंगिंग ग्लेशियर के टूटने से उपजी आपदा बताया था। यहां तक बात ठीक थी, लेकिन कुछ ही समय बाद अफवाह उड़ने लगी कि हैंगिंग ग्लेशियर उस परमाणु उपकरण से निकले विकिरण (रेडिएशन) के चलते टूटा है, जो वर्ष 1965 में अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआइए के गोपनीय मिशन के दौरान नंदा देवी पर्वत पर छूट गया था।
आपदा से पहले भी इस तरह की चर्चा सामने आती रही थी। ऋषिगंगा आपदा के चार साल बाद अब इन दिनों फिर से परमाणु उपकरण और विकिरण की चर्चा ने जोर पकड़ा है। इस बार खुफिया मिशन को लेकर कुछ नये तथ्य भी सामने रखे गए हैं। यह बात और है कि हमेशा की तरह विज्ञानियों ने नंदा देवी पर्वत पर किसी परमाणु उपकरण से निकलने वाले रेडिएशन और उसके प्रभाव को सिरे से खारिज किया है।
क्या बोले पूर्व महानिदेशक?
उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौधोगिकी परिषद (यूकास्ट) के पूर्व महानिदेशक डा. राजेंद्र डोभाल के अनुसार, बार-बार 25 हजार से अधिक फीट की ऊंचाई पर प्लूटोनियम से भरे परमाणु उपकरण के छूट जाने की बात चल रही है। डा. डोभाल का कहना है कि ग्लेशियर में तापमान माइनस 60 से 70 डिग्री सेल्सियस रहता है। ऐसे में एक छोटे से उपकरण से निकली ऊर्जा कोई मायने नहीं रखती।
यदि विकिरण इतना अधिक होता तो संबंधित क्षेत्रों में रह रहे व्यक्तियों के शरीर या स्वास्थ्य पर उसका प्रभाव अवश्य देखने को मिलता। परमाणु ऊर्जा विशेषज्ञ और नेशनल फिजिकल लैबोरेटरी के पूर्व निदेशक डा. डीके असवाल का भी कहना है कि ऊपर चोटी पर जिस उपकरण के मौजूद होने को लेकर चर्चाएं हैं, वह इतना बड़ा नहीं है कि उसका विकिरण किसी तरह का प्रभाव डाले। ग्लेशियरों और जलधाराओं पर ऐसे किसी विकिरण के असर की बातें किसी भी तरह से पुष्ट नहीं होती हैं।
क्या था अमेरिका का खुफिया मिशन?
विभिन्न रिपोर्टों और चर्चाओं के अनुसार, अमेरिका ने भारत को विश्वास में लेकर वर्ष 1965 में नंदा देवी पर्वत पर अपना खुफिया मिशन शुरू किया था। अमेरिका तब चीन के परमाणु परीक्षण को लेकर चिंतित था। चीन के परमाणु मिशन की निगरानी के लिए अमेरिका ने भारत के सहयोग से इस गोपनीय मिशन पर काम शुरू किया था। बताया जाता है कि निगरानी के लिए नंदा देवी पर्वत पर एक खास उपकरण तैनात करने के लिए पोर्टेबल परमाणु जनरेटर एसएनपी-19सी (सिस्टम फार न्यूक्लियर आक्सिलरी पावर) स्थापित करना था।
इसका संचालन प्लूटोनियम आधारित था। इस उपकरण के जरिये चीनी मिशन से संबंधित बातों को सुनने की योजना थी। बताया जाता है कि जनरेटर का वजन 50 पाउंड के आसपास था और इसमें इस्तेमाल किए गए प्लूटोनियम की मात्रा नागासाकी में गिराए गए परमाणु बम के एक तिहाई के बराबर थी। इस उपकरण को बिना देखभाल के वर्षों तक काम करने के हिसाब से बनाया गया था।
हालांकि, यह मिशन विषम भौगोलिक परिस्थितियों और प्रतिकूल मौसम के चलते सफल नहीं हो सका। उच्च हिमालयी क्षेत्र में अचानक पैदा हुए मौसम के विषम हालात के कारण ही मिशन से जुड़े लोगों को अचानक से चोटी से नीचे भागना पड़ा था। इसी दौरान उपकरण वहीं ऊपर चोटी पर ही छूट गया। हालांकि, इन बातों का कोई दस्तावेजी प्रमाण अब तक उपलब्ध नहीं हैं और चर्चाओं में ही यह बात जब-तब उठती रहती है।
चमोली के पानी में यूरेनियम मिला, प्लूटोनियम के प्रमाण नहीं
यूकास्ट के पूर्व महानिदेशक डा. राजेंद्र डोभाल के अनुसार, वर्ष 2005-06 में उत्तराखंड के समस्त जलस्रोतों के पानी की जांच की गई थी। इसमें चमोली के पोखरी क्षेत्र के पानी में यूरेनियम पाया गया था। हालांकि प्लूटोनियम के तब भी कहीं प्रमाण नहीं मिले थे।
यूरेनियम प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। तब पता चला था कि चमोली क्षेत्र की चट्टानों में यूरेनियम की मौजूदगी है। इस खोज के बाद यूरेनियम को लेकर किसी परियोजना पर आगे बढ़ने के लिए फील्ड सर्वे भी किया गया था। हालांकि किसी कारण से वह योजना आगे नहीं बढ़ पाई। |