सरपंच का चुनाव जीतने वाली पेड्डा लिंगम्मा।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हाथ पकड़े महिलाओं का जश्न, आंखों से बहते आंसू और पेड्डा लिंगम्मा की जीत की मुस्कान रविवार को तेलंगाना के नागरकुरनूल जिले के अमरागिरी गांव में हवा में सिर्फ धूल ही नहीं, बल्कि खुशी और मुश्किल से मिली आजादी का जबरदस्त एहसास भी था। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
दरअसल, पेड्डा लिंगम्मा को ग्राम पंचायत चुनावों में गांव का सरपंच (मुखिया) चुना गया, जो उनके और उनके पूरे समुदाय के लिए एक ऐतिहासिक पहली घटना थी।
क्यों है पेड्डा लिंगम्मा की यह जीत खास?
तीन दशकों से ज्यादा समय तक पेड्डा लिंगम्मा और चेंचु जनजाति के 44 दूसरे परिवार एक अनोखे और क्रूर तरह के बंधुआ मजदूरी के शिकार थे। मछली व्यापार को कंट्रोल करने वाले स्थानीय व्यापारियों के कर्ज और दबाव में फंसे ये परिवार हमेशा गरीबी में रहने को मजबूर थे, उन्हें सही बाजार तक पहुंच नहीं मिलती थी और वे दुर्व्यवहार के साये में जीते थे।
10 साल पहले, जनवरी 2016 में इन जिंदगी में तब टर्निंग पॉइंट आया जब एक सरकारी जांच में पूरे गांव के बंधुआ मजदूर होने की बात की पुष्टि हुई, जिसके बाद 106 लोगों को बचाया गया और 65 रिलीज सर्टिफिकेट जारी किए गए।
कहानी यहीं खत्म नहीं हुई
लेकिन ये कहानी यहीं खत्म नहीं हुई बल्कि सशक्तिकरण के साथ शुरू हुई। बचे हुए लोगों ने खुद को अमरागिरी रिहा बंधुआ मजदूर संघ (आरबीएलए) के रूप में संगठित किया, सरकारी फायदे हासिल किए और अपनी आर्थिक आजादी पक्की करने के लिए मछली-प्रोसेसिंग यूनिट जैसी जरूरी पहल शुरू कीं।
कल की चुनावी जीत सत्ता में आखिरी, बड़ा बदलाव है। पेड्डा लिंगम्मा की जीत सिर्फ एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है, यह उनके समुदाय के मजबूत इरादों की सबसे बड़ी पुष्टि है। यह इस बात का संकेत है कि बंधुआ मजदूरी के शिकार रहे लोग अब नेतृत्व की बागडोर संभाल रहे हैं और अपनी किस्मत खुद तय करने के लिए तैयार हैं।
गांव वाले, जिनमें से कई खुद पहले बंधुआ मजदूर रह चुके हैं, पेड्डा लिंगम्मा को बहुत खुशी से गले लगाते दिखे। ग्राम पंचायत के मामूली कार्यालय के सामने उनका यह सामूहिक गले मिलना, बहुत कुछ कहता है।
यह डर पर जीत है, गरिमा की वापसी है और सामुदायिक सशक्तिकर का एक मॉडल है। आज, अमरगिरी, जो कभी शोषण का प्रतीक था, भविष्य की पीढ़ियों के लिए आशा और सतत विकास की किरण बनकर खड़ा है।
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