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महादेव में रमीं स्पेन की मारिया, काशी को बनाया कर्मभूमि, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से मिलेगी उपाधि

cy520520 2025-10-6 07:36:23 views 615

  भारतीय संस्कृति से प्रभावित होकर पिछले 13 वर्षों से संस्कृत का अध्ययन कर रही हैं।





मुकेश चंद्र श्रीवास्तव, वाराणसी। स्पेन की रहने वाली मारिया रूइस ने काशी को ही कर्मभूमि बना लिया है। बचपन से ही भारतीय संस्कृति को समझने और महसूस करने की ललक उन्हें यहां खींच लाई। पिछले 13 वर्षों से वह संस्कृत के गहन अध्ययन और शोध में जुटी हैं। अब आठ अक्टूबर को संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के दीक्षा समारोह में उन्हें ‘पूर्व मीमांसा’ में शोध के लिए उपाधि प्रदान की जाएगी। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

मारिया ने विश्वविद्यालय के पूर्व मीमांसा विभाग से \“अर्थवादाधिकरणस्य समीक्षात्मक अध्ययनम\“ विषय पर शोध किया है। इसमें वेदों के अर्थवाद खंड की प्रचलित गलत व्याख्याओं का समाधान देने का प्रयास किया है। यह शोध उन्होंने प्रो. कमलाकांत त्रिपाठी के निर्देशन में पूरा किया है। शास्त्री और आचार्य स्तर पर भी उन्होंने इसी विषय का अध्ययन कर गोल्ड मेडल प्राप्त किया था।



स्पेन निवासी मारिया बताती हैं कि उनकी माता व दो भाई स्पेन में ही रहते हैं। मारिया उनलोगों से मिलने के लिए साल में एक बार वहां जाती है। हालांकि वह बनारस में ही रहना चाहती हैं। यहां पर वह रहकर संस्कृत पर और कार्य करेंगी। इस समय धर्म से संबंधित पुस्तकों का अंग्रेजी अनुवाद व संशोधन कर रही हैं।

मारिया अपने शोधग्रंथ का संक्षिप्त अंग्रेजी संस्करण भी तैयार कर रही हैं, ताकि इसे प्रकाशित कर विदेश में मीमांसा दर्शन का प्रसार कर सकें। वह इसे स्पेनिश भाषा में भी लिखना चाहती हैं। अंग्रेजी और स्पेनिश के साथ हिंदी, संस्कृत पर समान अधिकार रखने वालीं मारिया किसी से मिलती हैं तो बातचीत की शुरुआत हाय-हैलो नहीं बल्कि ‘महादेव’ संबोधन से करती हैं।



किसी से फोन पर भी बात होती है तो फोन रिसिव व काटते समय ‘महादेव’ ही बोलती हैं। मारिया को पूर्वमीमांसा दर्शन में पीएचडी की उपाधि प्राप्त होने जा रही है। उन्होंने वेदों के अर्थवाद खंड पर अपना शोधकार्य पूर्ण किया है। इस विषय पर अनुसंधान किया, जिससे वेदों के कुछ अंशों की प्रचलित गलत व्याख्याओं के प्रति लोगों को जागरूक किया जा सके।

वर्तमान में वे अपने शोधग्रंथ के संक्षिप्त अंग्रेज़ी संस्करण पर कार्य कर रही हैं, ताकि उसे प्रकाशन हेतु प्रस्तुत किया जा सके। उन्हें अंग्रेज़ी और स्पेनी भाषाओं में मीमांसा दर्शन पर लेखन करने का अनुरोध प्राप्त हुआ है, जिससे इस विषय का प्रसार विदेशों में भी किया जा सके।



मारिया बचपन से ही विभिन्न भाषाओं को जानने की जिज्ञासा रखती हैं। एक बार बनारस घुमने आई थी तो यहां की संस्कृति से बहुत प्रभावित हुई थीं। बनारस में आने को वह बाबा विश्वनाथ की कृपा मानती हैं। मारिया के अनुसार वह भारतीय लोगों को इस विषय का अध्ययन करने के लिए प्रेरित करना चाहती हैं, जिसे आजकल बहुत कम लोग पढ़ते हैं।

शास्त्रों का पारंपरिक पद्धति से अध्ययन करना इस समय देश के लिए अत्यंत आवश्यक है। कहा कि उन्होंने संस्कृत और पूर्वमीमांसा दर्शन का अध्ययन भाषावैज्ञानिक रुचि के कारण प्रारंभ किया। बहुत से लोग यह सोचते हैं कि मीमांसा शास्त्र केवल कर्मकांड और वैदिक यज्ञों से संबंधित है, परंतु यह सत्य नहीं है। इस शास्त्र में वाक्य-रचना, शब्दों के परस्पर संबंध, तथा पाठ-विवेचन के नियमों पर अत्यंत रोचक ग्रंथ मिलते हैं, जो आज के समय में भी अत्यंत उपयोगी हैं।



मारिया बताती हैं कि उनके शोध में शास्त्रों के अनुसार विधि के अर्थ का व्यापक अध्ययन किया गया है। मुझे यह अत्यंत रोचक लगता है कि संस्कृत साहित्य में इस विषय पर इतना गहन विचार हुआ है कि जब हम किसी आज्ञावाचक वाक्य को सुनते हैं तो वह हमें कार्य करने के लिए किस प्रकार प्रेरित करता है। इन प्रश्नों के उत्तर खोजने के लिए उन्होंने जैमिनि सूत्रों पर शबरस्वामी की भाष्य तथा मंडन मिश्र की विधि विवेक का भी गहन अध्ययन और विश्लेषण किया।



क्या है मीमांसा सिद्धांत

मीमांसा के सिद्धांत आधुनिक युग में भी अत्यंत उपयोगी हैं, क्योंकि वे हमें यह सिखाते हैं कि जैसे वाक्य में प्रत्येक शब्द का अपना एक उद्देश्य और कार्य होता है, और वह अन्य शब्दों से विशिष्ट प्रकार का संबंध रखता है, वैसे ही समाज में प्रत्येक व्यक्ति की भी एक भूमिका और उत्तरदायित्व होता है। जब प्रत्येक व्यक्ति अपने नियमों के अनुसार अपना कार्य करता है, तभी समाज भी उसी प्रकार सामंजस्यपूर्ण रूप से चलता है, जैसे शब्द मिलकर एक वाक्य बनाते हैं।



मारिया का मानना है कि लोगों को भारत के धर्मशास्त्रों जैसे महान ज्ञान-भंडार की सराहना करनी चाहिए और उसके सिद्धान्तों का पालन करना चाहिए। उन्होंने कहा, “यह आजकल बहुत लोकप्रिय नहीं है, परंतु पूरा विश्वास है कि सामाजिक नियमों का पालन करने में उस अराजक जीवन से अधिक स्वतंत्रता है, जिसमें कोई नियम न हो।” मारिया बताती हैं कि उनको बचपन से ही जिज्ञासा थी कि शब्द व और अर्थ का संबंध क्या कैसे होता है, इसे जानें। कारण कि इस प्रश्न का उत्तर पश्चिम देशों में नहीं मिल रहा था।
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