भारत समेत कई देशों में GPS स्पूफिंग की घटनाओं में बढ़ोतरी, IATA ने दी चेतावनी

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उड़ानों पर बढ़ा जीपीएस खतरा।  



डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। वैश्विक एयरलाइंस समूह इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (आइएटीए) ने उड़ानों के दौरान जीपीएस स्पूफिंग और जैमिंग की बढ़ती घटनाओं पर गंभीर चिंता जताते हुए पायलटों और एयरलाइंस को अधिक सतर्क रहने की सलाह दी है।

हालांकि संगठन ने स्पष्ट किया है कि इन घटनाओं के पीछे किसी तरह की साजिश नहीं है, बल्कि यह संघर्ष क्षेत्रों के आसपास एयरस्पेस प्रबंधन के तहत की जाने वाली एक सामान्य सैन्य प्रतिक्रिया का नतीजा है।

दुनिया की लगभग 80 प्रतिशत हवाई यातायात का प्रतिनिधित्व करने वाला आइएटीए 360 एयरलाइंस का वैश्विक संगठन है, जिसमें भारत की एयर इंडिया, एयर इंडिया एक्सप्रेस, इंडिगो और स्पाइसजेट भी शामिल हैं। हाल के महीनों में दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, अमृतसर, हैदराबाद, बेंगलुरु और चेन्नई जैसे प्रमुख भारतीय हवाई अड्डों पर जीपीएस स्पूफिंग और इंटरफेरेंस की घटनाएं सामने आई हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

जिनेवा में आइएटीए के महानिदेशक विली वॉल्श ने कहा कि इन मामलों में वैश्विक स्तर पर लगातार बढ़ोतरी देखी जा रही है, ऐसे में उड़ान संचालन के दौरान पायलटों को अतिरिक्त सतर्कता बरतने की जरूरत है।

संगठन के सेफ्टी एंड सिक्योरिटी के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट (ऑपरेशन) निक कैरीन के अनुसार, पहले ऐसे मामले मुख्य रूप से मध्य एशिया तक सीमित थे, लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद पूर्वी यूरोप में इनकी संख्या बढ़ी और अब भारत व वेनेजुएला जैसे देशों में भी ऐसी घटनाएं दर्ज की जा रही हैं।
क्या कहता है आइएटीए का डाटा?

आइएटीए के आंकड़ों के मुताबिक, प्रति 1,000 उड़ानों पर जीपीएस गड़बड़ी की दर 2022 में 31 थी, जो 2024 में बढ़कर 56 हो गई और 2025 में इसके 59 तक पहुंचने का अनुमान है। ये आंकड़े फ्लाइट डाटा एक्सचेंज (एफडीएक्स) से लिए गए हैं, जो ग्लोबल एविएशन डेटा मैनेजमेंट (जीएडीएम) कार्यक्रम के तहत एक समेकित और डी-आइडेंटिफाइड डाटाबेस है। संगठन का कहना है कि एफडीएक्स ठोस डाटा के आधार पर सुरक्षा जोखिमों की पहचान और उन्हें कम करने में अहम भूमिका निभाता है।
जीपीएस स्पूफिंग और इसकी वजह

आइएटीए के अनुसार, जीपीएस या ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (जीएनएसएस) स्पूफिंग और जैमिंग के दौरान गलत सिग्नल भेजकर विमान के नेविगेशन सिस्टम को भ्रमित किया जाता है।

अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (आइसीएओ) इसे रेडियो फ्रीक्वेंसी इंटरफेरेंस का एक रूप मानता है। संगठन ने दोहराया कि युद्धक्षेत्रों के आसपास सैन्य गतिविधियों के दौरान ऐसी तकनीकों का उपयोग नागरिक विमानों को निशाना बनाने के लिए नहीं किया जाता, लेकिन सैन्य प्रतिक्रिया के दायरे में आने से यात्री विमान प्रभावित हो सकते हैं। बेहतर समन्वय, संवाद और तकनीकी उपायों से इन जोखिमों को कम किया जा सकता है।

भारत में दो साल में 1951 मामले सामने आए भारत में जीपीएस इंटरफेरेंस की बढ़ती घटनाओं पर सरकार ने भी चिंता जताई है। नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने हाल ही में लोकसभा को बताया कि नवंबर 2023 से अब तक दो वर्षों में विमानों के जीपीएस सिस्टम में दखलअंदाजी के 1,951 मामले दर्ज किए गए हैं।

(समाचार एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)
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