द्वितीय उत्तराखंडी फिल्म अवार्ड 2025
डिजिटल डेस्क, पटना। देहरादून में आयोजित द्वितीय उत्तराखंडी फिल्म अवार्ड 2025 न केवल उत्तराखंड के क्षेत्रीय सिनेमा के लिए यादगार रहा, बल्कि इसका असर बिहार सहित देश के अन्य राज्यों तक भी देखने को मिला। वेब मल्टीमीडिया द्वारा 6 दिसंबर को हिमालयन कल्चरल सेंटर, गढ़ी कैंट में आयोजित इस भव्य समारोह ने यह साबित कर दिया कि क्षेत्रीय सिनेमा अब सीमाओं में बंधा नहीं रहा, बल्कि राष्ट्रीय सांस्कृतिक संवाद का मजबूत माध्यम बनता जा रहा है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
समारोह का उद्घाटन पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने किया। उन्होंने कहा कि गढ़वाली, कुमाऊनी और जौनसारी भाषाओं में बन रही फिल्में केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि पहाड़ की आत्मा, संस्कृति और संघर्ष की जीवंत अभिव्यक्ति हैं।
ऐसे आयोजन कलाकारों को मंच देने के साथ-साथ नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि बिहार जैसे सांस्कृतिक रूप से समृद्ध राज्य के कलाकार और दर्शक भी अब उत्तराखंडी सिनेमा को गंभीरता से देख रहे हैं, जो भारतीय क्षेत्रीय सिनेमा के लिए शुभ संकेत है।
इस आयोजन में लगभग 500 फिल्मी हस्तियों और सामाजिक-सांस्कृतिक क्षेत्र से जुड़े गणमान्य लोगों की मौजूदगी रही। अवार्ड के संस्थापक अध्यक्ष विनोद कुमार गुप्ता, अभिनेता हेमंत पांडे, निर्माता महेश राजपूत और शो के निर्देशक प्रमोद शास्त्री ने आयोजन को उत्तराखंडी सिनेमा के लिए मील का पत्थर बताया। उन्होंने कहा कि जिस तरह भोजपुरी और मैथिली सिनेमा ने बिहार की पहचान को राष्ट्रीय स्तर पर मजबूती दी है, उसी तरह उत्तराखंडी सिनेमा भी अब अपने विस्तार की ओर बढ़ रहा है।
यूएफए 2025 में इस वर्ष 14 फीचर फिल्मों को 26 श्रेणियों में सम्मानित किया गया। सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार ‘शहीद’ को मिला, जबकि सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का सम्मान देबू रावत को प्रदान किया गया। सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (पुरुष) संजू सिलोदी और सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री (महिला) शिवानी भंडारी चुनी गईं। संगीत, गीत, छायांकन, संपादन, पटकथा और अभिनय की विभिन्न श्रेणियों में कलाकारों को सम्मानित किया गया, जिससे समारोह पूरी तरह सिनेमाई महाकुंभ में बदल गया।
समारोह में पद्मश्री नरेंद्र सिंह नेगी (गढ़ रत्न) सहित कई वरिष्ठ कलाकारों को विशेष सम्मान दिया गया। उनके योगदान को याद करते हुए वक्ताओं ने कहा कि लोक संगीत और लोक कथाओं की तरह ही क्षेत्रीय फिल्में भी सांस्कृतिक सेतु का काम करती हैं। यही वजह है कि बिहार के दर्शक भी पहाड़ी फिल्मों और गीतों से भावनात्मक रूप से जुड़ाव महसूस करने लगे हैं।
बिहार के सांस्कृतिक जानकारों का मानना है कि उत्तराखंडी फिल्म अवार्ड जैसे आयोजन बिहार के कलाकारों और फिल्म निर्माताओं के लिए भी प्रेरणा हैं। जिस तरह उत्तराखंड अपनी भाषा और संस्कृति को सिनेमा के जरिए सहेज रहा है, उसी तरह बिहार में भी लोकभाषाओं और सामाजिक विषयों पर आधारित सिनेमा को बढ़ावा देने की जरूरत है।
कुल मिलाकर, देहरादून में आयोजित यह अवार्ड समारोह केवल उत्तराखंड तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसने बिहार सहित पूरे देश को यह संदेश दिया कि क्षेत्रीय सिनेमा ही भारतीय सिनेमा की असली ताकत है। |