दिल्ली में प्राइवेट स्कूलों की खैर नहीं: नया फीस कानून लागू, पेरेंट्स की चलेगी। फाइल फोटो
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। राजधानी के प्राइवेट स्कूलों में फीस तय करने और रेगुलेशन में ट्रांसपेरेंसी पक्का करने के लिए सरकार ने दिल्ली स्कूल एजुकेशन (फीस तय करने और रेगुलेशन में ट्रांसपेरेंसी) एक्ट, 2025 को नोटिफाई कर दिया है। असेंबली से पास होने के चार महीने बाद, इस कानून को लेफ्टिनेंट गवर्नर वीके सक्सेना की मंजूरी मिल गई। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
नए कानून से प्राइवेट स्कूल फीस कलेक्शन के हर पहलू में ट्रांसपेरेंसी और अकाउंटेबिलिटी के दायरे में आएंगे। नोटिफ़िकेशन के मुताबिक, स्कूल अब सिर्फ तय हेड्स: रजिस्ट्रेशन फीस, एडमिशन फीस, ट्यूशन फीस, एनुअल फीस और डेवलपमेंट फीस के तहत ही फीस ले सकेंगे। रजिस्ट्रेशन फीस ₹25, एडमिशन फीस ₹200 और कॉशन मनी ₹500 तय की गई है, जिसे ब्याज के साथ वापस करना होगा। डेवलपमेंट फीस एनुअल ट्यूशन फीस के 10 परसेंट से ज़्यादा नहीं होनी चाहिए।
कैपिटेशन फीस पूरी तरह बैन
कानून में साफ़ तौर पर कहा गया है कि किसी भी तरह की कैपिटेशन फीस या इनडायरेक्ट कलेक्शन पूरी तरह बैन रहेगा। स्कूलों को सभी यूज़र-बेस्ड फीस नो-प्रॉफिट, नो-लॉस बेसिस पर लेनी होगी, और सिर्फ उन स्टूडेंट्स से लेनी होगी जो संबंधित सर्विस का इस्तेमाल करते हैं। इस कानून में बताई गई फीस को गलत माना जाएगा।
स्कूल किसी भी सरप्लस को रिफंड या एडजस्ट करेंगे
स्कूलों को अब अलग-अलग आइटम के लिए अलग-अलग अकाउंट रखने होंगे, एक फिक्स्ड एसेट रजिस्टर रखना होगा, और सभी फाइनेंशियल ट्रांज़ैक्शन को ट्रांसपेरेंट तरीके से रिकॉर्ड करना होगा। पेरेंट्स से इकट्ठा किया गया फंड स्कूल चलाने वाली सोसाइटी या ट्रस्ट को ट्रांसफर नहीं किया जाएगा। अगर किसी साल सरप्लस बचता है, तो उसे या तो रिफंड कर दिया जाएगा या भविष्य की फीस में एडजस्ट कर दिया जाएगा।
स्कूल-लेवल फीस रेगुलेशन कमेटी बनाई जाएगी
कानून का दायरा सभी प्राइवेट स्कूलों पर एक जैसा लागू होगा, चाहे वे माइनॉरिटी कैटेगरी में आते हों या सरकारी ज़मीन पर नहीं बने हों। इसके अलावा, कोई भी स्कूल फीस न देने पर स्टूडेंट्स पर कोई पेनल्टी नहीं लगा पाएगा, जैसे रिजल्ट रोकना, निकालना, या एडमिशन से मना करना।
इस कानून की एक खास बात यह है कि हर स्कूल में स्कूल लेवल पर फीस रेगुलेशन कमिटी बनाई जाएगी, जिसे हर साल 15 जुलाई तक बनाना होगा। इसमें मैनेजमेंट का एक रिप्रेजेंटेटिव, शिक्षा निदेशालय का एक अधिकारी और पेरेंट्स में से लॉटरी से चुने गए पांच मेंबर होंगे, जिसमें महिलाओं, SC, ST, और सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों का रिप्रेजेंटेशन ज़रूरी होगा।
स्कूलों को 31 जुलाई तक अपना प्रस्तावित फीस स्ट्रक्चर कमिटी को जमा करना होगा, जो इसे मंज़ूरी दे सकती है या कम कर सकती है, लेकिन बढ़ा नहीं सकती। एक बार फाइनल होने के बाद, अगले तीन एकेडमिक सालों के लिए फीस फिक्स रहेगी। सरकार का दावा है कि इस कानून से प्राइवेट स्कूलों की मनमानी पर रोक लगेगी और पेरेंट्स को राहत मिलेगी। |