पं. महामना मदन मोहन मालवीय ज‍िन्‍होंने रखी सर्वव‍िद्या की राजधानी काशी ह‍िन्‍दू व‍िश्‍वव‍िद्यालय की बुन‍ियाद

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त‍िथ‍ि अनुसार 12 द‍िसंबर को उनकी जयंती के उपलक्ष्‍य में बीएचयू व‍िश्‍वनाथ मंद‍िर में रुद्राभ‍िषेक कार्यक्रम का भी आयोजन क‍िया गया।



जागरण संवाददाता, वाराणसी। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक पं. महामना मदन मोहन मालवीय की जयंती 12 दिसंबर (त‍ि‍थ‍ि अनुसार) को दीक्षा समारोह के रूप में मनाई जा रही है। इस अवसर पर बीएचयू के संस्थापक के तौर पर काशी को सर्वविद्या की राजधानी बनाने की दिशा में दीक्षा समारोह की शुरुआत महामना की स्मृतियों से हुई। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

आयोजन की शुरुआत उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण करके की गई। इसके पूर्व, सुबह नौ बजे विश्वनाथ मंदिर में बाबा विश्वनाथ के रुद्राभिषेक का आयोजन किया गया। भारतीय तिथि के अनुसार भारत रत्न महामना पं. मदन मोहन मालवीय जी का जन्मदिवस होने के कारण परिसर भी महामना की स्मृतियों को सहेजने में जुटा रहा। त‍िथ‍ि के अनुसार 12 द‍िसंबर को उनकी जयंती के उपलक्ष्‍य में बीएचयू व‍िश्‍वनाथ मंद‍िर में रुद्राभ‍िषेक कार्यक्रम का भी आयोजन क‍िया गया।  

महामना मदन मोहन मालवीय जी (1861-1946) एक महान शिक्षाविद, स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार और समाज सुधारक थे, जिन्हें काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) की स्थापना के लिए जाना जाता है। उनका उद्देश्य छात्रों को देश सेवा के लिए तैयार करना था। उन्हें \“महामना\“ की उपाधि से सम्मानित किया गया। उन्होंने \“सत्यमेव जयते\“ को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और \“द लीडर\“, \“अभ्युदय\“ जैसे अखबारों के माध्यम से पत्रकारिता में सक्रिय रहे। उन्हें मरणोपरांत 24 दिसंबर 2014 को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान \“भारत रत्न\“ से सम्मानित किया गया।

महामना मदन मोहन मालवीय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रणेता थे और इस युग के आदर्श पुरुष माने जाते थे। वे भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्हें महामना की सम्मानजनक उपाधि से विभूषित किया गया। पत्रकारिता, वकालत, समाज सुधार, मातृ भाषा तथा भारतमाता की सेवा में अपना जीवन अर्पित करने वाले इस महामानव ने जिस विश्वविद्यालय की स्थापना की, उसमें उनकी परिकल्पना ऐसे विद्यार्थियों को शिक्षित करके देश सेवा के लिए तैयार करने की थी, जो देश का मस्तक गौरव से ऊँचा कर सकें।  

मालवीय जी का जन्म प्रयागराज में 25 दिसम्बर 1861 को पं. ब्रजनाथ और मूनादेवी के यहाँ हुआ था। वे अपने माता-पिता के कुल सात भाई-बहनों में पाँचवें पुत्र थे। उन्होंने श्रीमद्भागवत की कथा सुनाकर अपनी आजीविका अर्जित की। पाँच वर्ष की आयु में उन्हें उनके माता-पिता ने संस्कृत भाषा में प्रारंभिक शिक्षा लेने हेतु पण्डित हरदेव धर्म ज्ञानोपदेश पाठशाला में भर्ती कराया, जहाँ से उन्होंने प्राइमरी परीक्षा उत्तीर्ण की।

इसके बाद वे एक अन्य विद्यालय में भेज दिए गए, जिसे प्रयाग की विद्यावर्धिनी सभा संचालित करती थी। यहाँ से शिक्षा पूर्ण कर वे इलाहाबाद के जिला स्कूल पढ़ने गए। यहीं उन्होंने मकरन्द के उपनाम से कविताएँ लिखनी प्रारंभ की। उनकी कविताएँ पत्र-पत्रिकाओं में खूब छपती थीं और लोग उन्हें चाव से पढ़ते थे।

1879 में उन्होंने म्योर सेंट्रल कॉलेज (इलाहाबाद विश्वविद्यालय) से मैट्रिकुलेशन (दसवीं की परीक्षा) उत्तीर्ण की। हैरिसन स्कूल के प्रिंसिपल ने उन्हें छात्रवृत्ति देकर कलकत्ता विश्वविद्यालय भेजा, जहाँ से उन्होंने 1884 में बी.ए. की उपाधि प्राप्त की।

महामना मदन मोहन मालवीय का जीवन और कार्य आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं। उनकी शिक्षाएँ और सिद्धांत आज के युवाओं के लिए मार्गदर्शक हैं। वे न केवल एक महान शिक्षाविद थे, बल्कि एक ऐसे समाज सुधारक भी थे, जिन्होंने अपने जीवन को समाज के उत्थान के लिए समर्पित किया। उनकी जयंती पर आयोजित कार्यक्रमों में उनकी शिक्षाओं को याद किया गया और उनके योगदान को सराहा गया। महामना मदन मोहन मालवीय की जयंती पर आयोजित दीक्षा समारोह ने उनके जीवन और कार्यों को पुनः जीवित किया और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना।
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