कफ सीरप मामले में बड़ों पर हाथ डालने से पहले होमवर्क कर रहीं एजेंसियां, गैंग्स्टर एक्ट की कार्रवाई के लिए लिखे पत्र

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राज्य ब्यूरो, लखनऊ। : काेडीन युक्त कफ सीरप की अवैध सप्लाई के मामले में आरोपियों की गिरफ्तारी में तेजी लाने के साथ ही एसआइटी व खाद्य सुरक्षा व औषधि प्रशासन विभाग (एफएसडीए) साक्ष्यों की कड़ियां भी जोड़ रहा है। एफएसडीए विभिन्न फर्मों पर छापेमारी के दौरान बरामद दस्तावेजों का अध्ययन कर रहा है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

खासकर कफ सीरप की अवैध सप्लाई में दवा कंपनियों के आपसी कनेक्शन व पकड़े गए आरोपियों की उनमें भूमिका को भी देखा जा रहा है। ताकि मामले में संदेह के घेरे में आए बड़ों के विरुद्ध भी कार्रवाई शुरू की जा सके। पूर्वांचल के एक पूर्व सांसद समेत पूरे मामले में कुछ अधिकारियों की भूमिका भी सवालों के घेरे में रही है।

मामले के मुख्य आरोपित वाराणसी निवासी शुभम जायसवाल व उसके कुछ साथियों के दुबई भाग निकलने के बाद पुलिस की कार्यशैली पर भी सवाल उठे थे। आईजी कानून-व्यवस्था एलआर कुमार की अध्यक्षता में गठित एसआइटी के सामने उनका प्रत्यर्पण कराने की भी चुनौती है।

शुभम व उसके सहयोगियों के विरुद्ध भी साक्ष्य संकलन की प्रक्रिया तेज की गई है। नशे के इस काले कारोबार की कमर तोड़ने के लिए लाइसेंस निरस्त किए जाने के साथ ही एनडीपीएस एक्ट व भारतीय न्याय संहिता के तहत मुकदमे दर्ज कर आरोपियों की गिरफ्तारी की जा रही है। आरोपियों के विरुद्ध गैंग्स्टर एक्ट के तहत कार्रवाई के लिए जिलाधिकारियों को पत्र भी लिखे गए हैं।

कोडीन युक्त कफ सीरप व एनडीपीएस श्रेणी की दवाओं के अवैध कारोबार व डायवर्जन करने वाले सिंडीकेट की जड़ें उत्तर प्रदेश के अलावा उत्तराखंड, झारखंड, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश समेत अन्य राज्यों से जुड़ी हैं। एफएसडीए ने दो माह में अभियान के तहत 31 जिलों में 133 फर्मों पर छापेमारी की है। छह अधिक फर्म संचालक गिरफ्तार भी किए गए हैं।

एफएसडीए की आयुक्त डॉ. रोशन जैकब का कहना है कि कोडिन युक्त कफ सिरप की अवैध सप्लाई से जुड़ी फर्मों के विरुद्ध जांच लगातार जारी है। एफएसडीए की कार्रवाई केवल लाइसेंस रद्द करने तक सीमित नहीं है। बल्कि मुकदमे दर्ज कराकर कड़ी कार्रवाई सुनिश्चित कराई जा रही है।

मुख्यमंत्री के निर्देश पर 52 जिलों में 332 औषधि विक्रय प्रतिष्ठानों के दस्तावेजों व भंडारण की जांच की गई है। जांच में सामने आया कि कई औषधि प्रतिष्ठान अस्तित्व में हीं नहीं हैं। उन फर्मों का उपयोग केवल बिलिंग प्वाइंट के रूप में किया जा रहा था। कई प्रतिष्ठानों में भंडारण की पर्याप्त व्यवस्था भी नहीं थी।

332 औषधि विक्रय प्रतिष्ठानों में से 133 प्रतिष्ठानों द्वारा संगठित रूप से इन औषधियों का गैर चिकित्सकीय उपयोग के लिए अवैध डायवर्जन किया जा रहा था। लखनऊ, कानपुर, लखीमपुर खीरी, बहराइच से कफ सीरप नेपाल तथा वाराणसी व गाजियाबाद से बांग्लादेश भेजा जा रहा था। डा.जैकब के अनुसार छोटे व्यापारियों को बेवजह परेशान न किए जाने के निर्देश भी दिए गए हैं।  

इन शहरों में फैला था काला कारोबार  

वाराणसी, जौनपुर, कानपुर नगर, गाजीपुर, लखीमपुर खीरी, लखनऊ, बहराइच, बिजनौर, प्रयागराज, प्रतापगढ़, सीतापुर, सोनभद्र, बलरामपुर, रायबरेली, संतकबीरनगर, हरदोई, भदोही, अमेठी, श्रावस्ती, सिद्धार्थनगर, उन्नाव, बस्ती, अंबेडकरनगर, आजमगढ़, सहारनपुर, बरेली, सुल्तानपुर, चंदौली, मीरजापुर, बांदा व कौशांबी।
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