सांकेतिक तस्वीर
जागरण संवाददाता, मुजफ्फरपुर। श्री कृष्ण मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (एसकेएमसीएच) में शव को रखने के लिए डीप फ्रीजर की सुविधा नहीं है। यहां पूर्व से रखे गए चार डीप फ्रीजर सालों से खराब पड़े हैं, लेकिन इसे ठीक कराने के लिए अब तक आधा दर्जन बार पत्र लिखे गए, लेकिन सालों से इसे ठीक नहीं कराया गया। ऐसे में शवों को सुरक्षित रखना बड़ा संकट बना है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
पोस्टमार्टम कक्ष में आधुनिक उपकरणों का अभाव है, जिससे हादसों या अज्ञात शवों की शिनाख्त तक सुरक्षित रखने में परेशानी होती है। एसकेएमसीएच में डीप फ्रीजर के अभाव में अमानवीय तरीके से शव को रखा जाता है। एसकेएमसीएच में इस प्रकार का अभाव चिकित्सा सुविधाओं की कमी पर सवाल खड़े करता है।
सरकारी निर्देशों की उड़ रहीं धज्जियां
लावारिस शवों को बिना डीप-फ्रीजर के 72 घंटे तक सुरक्षित रखे जाने का दावा कर रहा एफएमटी (फॉरेंसिक मेडिसिन एंड टाक्सिकोलाजी) विभाग और एसकेएमसीएच ओपी पुलिस सरकारी दिशा-निर्देशों की धज्जियां उड़ा रहे हैं।
दो-दो पोस्टमार्टम गृह के बाद भी शीतगृह की व्यवस्था अब तक नहीं हो सकी है। आमतौर पर यहां 10-15 शव लावारिस हालत में रहते हैं। सड़ी-गली लाशों को एकत्र कर एसकेएमसीएच ओपी पुलिस की ओर से 20-25 दिन बाद लावारिस शवों की अंत्योष्टि हो रही है।
छह महीने बाद ही हुआ खराब, नहीं किया सही
बताया जा रहा है कि वर्ष 2016 में बिहार चिकित्सा सेवाएं एवं आधारभूत संरचना विकास निगम (बीएमएसआइसीएल) की ओर से करीब 16 लाख की लागत से एक डीप-फ्रीजर छह शव रखने वाला दिया गया था। छह माह बाद ही वह खराब हो गया।
आधा दर्जन बार प्राचार्य को पत्राचार किया गया, लेकिन कारगर साबित नहीं हो सका। एक-दो बार बनने के बाद वह खराब हो गया। पोस्टमार्टम कक्ष में बिजली कटने के बाद जेनरेटर से आपूर्ति भी नहीं है। कोविड के दौरान वर्ष 2019 में जिला परिवहन पदाधिकारी ने एक-एक शव रखने वाला डीप-फ्रीजर डोनेट किया, वह भी तकनीकी कारणों से बेकार पड़ा है।
पूर्व में जांच के बाद हो चुका है विचार
वर्ष 2019 में नर कंकाल मिलने के बाद स्वास्थ्य एवं प्रशासनिक महकमे में हड़कंप मचा था। उस समय एसकेएमसीएच के प्राचार्य डॉ. विकास कुमार ने स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव के निर्देश पर लावारिस शवों को सुरक्षित रखने व उसके अंतिम संस्कार के सभी पहलुओं पर विचार करने के लिए चार सदस्यीय जांच टीम बनाई थी। मामला शांत तो हो गया, लेकिन लावारिस शवों को सुरक्षित रखने संबंधित कोई ठोस पहल नहीं की जा सकी।
ये है प्रविधान
शवों के दाह-संस्कार के लिए रोगी कल्याण समिति की ओर से दी जाने वाली राशि से शव के लिए कफन, फूल माला, लकड़ी व अन्य सामग्री की खरीद की जानी है। इसमें शवदाह गृह का
शुल्क भी शामिल होता है। वहीं, जहां शवदाह गृह नहीं है, वहां पारंपरिक तरीके से अंतिम संस्कार किया जाना है। वैसे कितनी राशि दी जाए, यह तय नहीं है। स्थानीय परिस्थिति के हिसाब से राशि दी जाती है।
अंतिम संस्कार को लेकर पुलिस व अस्पताल प्रशासन की संयुक्त रूप से जिम्मेदारी होती है। अंतिम संस्कार के पहले मृतक की एक तस्वीर भी ली जाती है ताकि बाद में जानकारी हो सके कि किस व्यक्ति का अंतिम संस्कार किया गया है। अंतिम संस्कार वाली जगह का प्रमाणपत्र जरूरी होता है। |
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