विचार: हमारी पहचान हमारे गांव

LHC0088 2025-12-10 19:07:15 views 779
  



सच्चिदानंद जोशी। जब भी आधुनिक विकास की चर्चा होती है तो हमारे मानस पटल पर बडे शहर, ऊंची इमारतें, विस्तृत महानगरीय परिसर, औद्योगिक गलियारे, फ्लाईओवर, मेट्रो ट्रेन और तीव्र गति से बढ़ते शहरी तंत्र की छवियां आती हैं, लेकिन संयुक्त राष्ट्र द्वारा हाल में ही प्रकाशित रिपोर्ट “वर्ल्ड अर्बनाइजेशन प्रोस्पेक्ट -2025” के आंकडे किसी और बात की ओर इशारा करते नजर आते हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

यह रिपोर्ट संकेत करती है कि लोकप्रिय धारणाओं के विपरीत, ग्रामीण जनसंख्या न तो विलुप्त हो रही है और न ही अप्रासंगिक हो रही है; बल्कि भारत और चीन जैसे देशों में ग्रामीण आबादी अब भी महत्वपूर्ण, स्थिर और भविष्य की जनसांख्यिकीय संरचनाओं की निर्णायक घटक बनी हुई है।

ग्रामीण परिवेश के प्रति झुकने वाले ये वैश्विक आंकडे, भारत की अपनी सांस्कृतिक नीतियों और विगत कुछ समय से की जा रही पहलों के साथ उल्लेखनीय रूप से संगत दिखाई देते हैं। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा वर्ष 2021 में प्रारम्भ की गई ‘मेरा गांव मेरी धरोहर’ (MGMD) पहल इस व्यापक वैश्विक विमर्श को राष्ट्रीय संदर्भ में नई दिशा प्रदान करती है। यह पहल प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के उस संदेश से प्रेरित है, जिसमें उन्होंने रेखांकित किया है कि “हमारी धरोहर पर गर्व तथा विकास के लिए हर संभव प्रयास - ये 21वीं सदी के विकसित भारत के दो प्रमुख स्तंभ हैं।”
ग्रामीण-शहरी द्वैत से परे उभरता एक नया परिदृश्य

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट इस धारणा को स्पष्ट रूप से पुनर्परिभाषित करती है कि मानव बस्तियों का परिदृश्य केवल “ग्रामीण बनाम शहरी” जैसी द्विआधारी संरचना तक सीमित नहीं है। वर्ष 2025 में विश्व की कुल जनसंख्या का लगभग 45 प्रतिशत भाग शहरों में निवास करता है- जो बीसवीं सदी के मध्य की तुलना में एक उल्लेखनीय वृद्धि है और अनुमान है कि 2050 तक वैश्विक जनसंख्या वृद्धि का दो-तिहाई हिस्सा शहरी क्षेत्रों में केंद्रित होगा।

इसके बावजूद, रिपोर्ट इस बात पर बल देती है कि एशिया सहित विश्व के अनेक क्षेत्रों में कस्बे और ग्रामीण बस्तियां अब भी करोड़ों लोगों को आश्रय प्रदान कर रही हैं। अतः सार्वभौमिक शहरी प्रव्रजन की वह धारणा, जिसके आधार पर विकास का वैश्विक विमर्श लंबे समय से संचालित हो रहा है, अब तथ्यात्मक रूप से प्रासंगिक नहीं रहा। समकालीन परिदृश्य एक ऐसे नियोजन की ओर संकेत कर रहा है, जिसमें ग्रामीण क्षेत्र, कस्बे, और छोटे नगर- सभी मानव बसावट महत्वपूर्ण स्तंभ के रूप में सह-अस्तित्व में रहेंगे।

दुनिया की सबसे अधिक जनसंख्या वाले भारत और चीन के उदाहरण इस परिवर्तनशील प्रवृत्ति को और भी स्पष्ट करते हैं। रिपोर्ट में उपलब्ध आंकड़े यह बताते हैं कि हैं कि भारत की लगभग 44 प्रतिशत और चीन की लगभग 40 प्रतिशत जनसंख्या वर्तमान में कस्बों यानि छोटे नगरों में निवास करती है। बड़े महानगरों से भिन्न ये कस्बे उस जनसांख्यिकीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं, जहां ग्रामीण सांस्कृतिक विरासत और उभरती शहरी आकांक्षाएं एक-दूसरे के साथ गुंथी हुई हैं।

संयुक्त रूप से भारत और चीन में 1.2 अरब से अधिक लोग कस्बों में रहते हैं, जो वैश्विक कस्बाई आबादी के 40 प्रतिशत से अधिक का प्रतिनिधित्व करता है। यह कोई गौण आंकड़ा नहीं है; यह विश्व जनसंख्या संरचना में उन मध्यम और छोटे बस्तियों की केंद्रीय भूमिका को इंगित करता है, जिन्हें पारंपरिक विमर्श में अक्सर या तो हाशिए पर रखा जाता रहा है या फिर महानगरों के साथ जोड़ दिया जाता है।

इसके अतिरिक्त विगत दशकों में तेज शहरी वृद्धि के बावजूद, दोनों देशों में अब भी 20 करोड़ से अधिक लोग ग्रामीण क्षेत्रों में बसते हैं। इस रिपोर्ट की महत्वपूर्ण बात यह भी है कि इन आबादियों के 2050 तक अपेक्षाकृत स्थिर बने रहने का अनुमान है। यह तथ्य इस धारणा को निर्णायक रूप से खारिज करता है कि ग्रामीण जीवन “शहरी विस्तार” द्वारा समाप्त हो जाने वाला है।

इसके विपरीत, ग्रामीण क्षेत्र अपनी जनसंख्यकीय स्थिरता तथा सांस्कृतिक, आर्थिक और पारिस्थितिक महत्त्व के कारण एशिया की व्यापक सामाजिक संरचना के एक सुदृढ़ और निरंतर प्रासंगिक अंग आज भी और भविष्य में भी रहेंगे।

वर्ल्ड अर्बनाइजेशन प्रोस्पेक्ट -2025” के आंकडे आश्वस्त करते हैं कि भविष्य केवल शहरी विस्तार का नहीं, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों का भी है। ग्रामीण प्रदेश भौगोलिक इकाइयों के साथ-साथ सांस्कृतिक और आर्थिक तंत्र के रूप में राष्ट्रीय विकास की दिशा को निरंतर प्रभावित करते रहेंगे।
भारत के गांव: सभ्यतागत स्मृति के भंडार

भारत के संदर्भ में यह निष्कर्ष विशेष महत्व रखता है, क्योंकि भारतीय गांव ऐतिहासिक रूप से हमारी सभ्यतागत स्मृति के भंडार रहे हैं । ग्रामीण भारत भाषाई विविधताओं, लोकज्ञान, अनुष्ठान, परंपराओं, कला-शिल्प, स्थापत्य शैलियों, पाक कला तथा सामाजिक-सांस्कृतिक संस्थाओं का वह जीवंत संसार है, जो सहस्राब्दियों में विकसित और परिमार्जित हुआ है।

जब वैश्विक विमर्श ग्रामीण जीवन के महत्व का पुनर्मूल्यांकन कर रहा है, तब भारत के गांव अतीत के अवशेष नहीं, बल्कि निरंतर विकसित होते सांस्कृतिक परिदृश्य के रूप में उभरते हैं।

यद्यपि भारत को परंपरागत रूप से गांवों का देश कहा जाता रहा है और कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था इसकी विशेष पहचान रही है, पर पिछले दशकों में तीव्र शहरीकरण एक स्पष्ट प्रवृत्ति के रूप में सामने आया है। भारत के कई शहर वैश्विक रैंकिंग में प्रमुख स्थान प्राप्त कर रहे हैं। “स्मार्ट सिटी” जैसी परियोजनाओं ने शहरी अधोरचना को नए आयाम दिए हैं, जिसके परिणामस्वरूप ग्रामीण आबादी का शहरों की ओर प्रव्रजन बढ़ा है।

इसी प्रकार, AMRUT तथा AMRUT 2.0, प्रधानमंत्री आवास योजना और प्रधानमंत्री गतिशक्ति जैसी पहलों ने छोटे नगरों की वृद्धि को अभूतपूर्व गति प्रदान की है। तीव्र शहरीकरण के संभावित दुष्परिणामों को देखते हुए ही 2003 में डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम ने ‘PURA’ (Provision of Urban Amenities in Rural Areas) का विचार प्रस्तुत किया था जो एक ऐसा पहल था जो ग्रामीण क्षेत्रों को शहरी सुविधाओं से सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रयोग था।

इन परिवर्तनों के बावजूद, यह सच्चाई है कि भारत की आत्मा उसके गांवों में ही रहती है । तीव्र शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के बावजूद, हमारे गांव भारतीय अस्मिता के मूल संवाहक हैं। वैश्विक स्तर पर सांस्कृतिक और ज्ञान परंपरा की भूमि के रूप में भारत की जो पहचान है, उसका केंद्र गांव ही हैं। अतः इस ग्राम्य विरासत का संरक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण है।
मेरा गांव मेरी धरोहर: ग्रामीण भारत का एक जीवंत सांस्कृतिक मानचित्रण

इस संदर्भ में “मेरा गांव मेरी धरोहर” जैसी पहल दूरदर्शी और प्रासंगिक बन जाती है। “राष्ट्रीय सांस्कृतिक मानचित्रण मिशन” के अंतर्गत प्रारम्भ किया गया यह प्रकल्प विश्व के सबसे व्यापक सांस्कृतिक दस्तावेज़ीकरण प्रयासों में से एक है। देश के लगभग 6.32 लाख गांवों को समाहित करने वाला यह पोर्टल भारत के गांवों को जोडने का प्रयास है।

इसका उद्देश्य प्रत्येक गांव की सांस्कृतिक प्रोफ़ाइल का विस्तृत दस्तावेज़ीकरण करना है, जिसमें उसका इतिहास, पर्व-त्योहार, पारंपरिक भोजन, विश्वास-मान्यताएं, धरोहर स्थल, पारम्परिक आभूषण, वेशभूषा, पारंपरिक ज्ञान, कला एवं शिल्प सहित जनसांख्यिकीय प्रोफाइल भी सम्मिलित है। गांव के सांस्कृतिक प्रोफाइल के अतिरिक्त “मेरा गांव मेरी धरोहर” देश के विशिष्ट गांवों और विकास खंडों का ऑडिaयो-वीडियो दस्तावेज़ीकरण भी उपलब्ध कराता है, जिससे भारत की सांस्कृतिक विविधता की अधिक समृद्ध, दृश्य और कथात्मक जानकारी मिल सके।
वैश्विक पुनर्मूल्यांकन और भारत का सांस्कृतिक उत्तर

जब विश्व जनसांख्यिकीय परिवर्तन के दौर में ग्रामीण जीवन के महत्व को एक बार पुनः समझ रहा है, तब भारत “मेरा गांव मेरी धरोहर” के माध्यम से ग्रामीण विरासत को अभिलेखित व संरक्षित करते हुए विकास की मुख्यधारा में उसे एकीकृत करते हुए भविष्य की दिशा का निर्माण कर रहा है। यह एक ऐसा प्रयास है जो हमें हमारी जड़ों से जोड़ते हुए, उस औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति दिलाने में भी सफला होगा जिसकी गिरफ्त में हमारा देश स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भी कई वर्षो तक रहा है।

संयुक्त राष्ट्र की “वर्ल्ड अर्बनाइजेशन प्रोस्पेक्ट -2025” रिपोर्ट का सार यह है कि हमारे गांव न केवल वर्तमान में, बल्कि भविष्य में भी हमारे समाज के प्रमुख घटक रहेंगे और “मेरा गांव मेरी धरोहर” भारत द्वारा इसी संदेश का दूरदर्शी, सुसंगत व भविष्योन्मुखी प्रत्युत्तर प्रस्तुत करता है।
like (0)
LHC0088Forum Veteran

Post a reply

loginto write comments
LHC0088

He hasn't introduced himself yet.

410K

Threads

0

Posts

1310K

Credits

Forum Veteran

Credits
133193

Get jili slot free 100 online Gambling and more profitable chanced casino at www.deltin51.com, Of particular note is that we've prepared 100 free Lucky Slots games for new users, giving you the opportunity to experience the thrill of the slot machine world and feel a certain level of risk. Click on the content at the top of the forum to play these free slot games; they're simple and easy to learn, ensuring you can quickly get started and fully enjoy the fun. We also have a free roulette wheel with a value of 200 for inviting friends.