घर बैठे होगी मानसिक रोग की पहचान, मिलेगा उपचार और परामर्श, IIT-IIM के एक्सपर्ट बना रहे डिजिटल मनोचिकित्सा तंत्र

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उन्नत डिजिटल मनोचिकित्सा तंत्र (ऐप और इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म) विकसित कर रहे हैं एक्सपर्ट।



अनूप कुमार सिंह, नई दिल्ली। हाल ही में पानीपत में एक महिला ने चार बच्चों की हत्या कर दी। जांच में पता चला कि उसे सुंदर बच्चे पसंद नहीं थे। इसी तरह के कई मामले सामने आ चुके हैं जिनमें मनोविज्ञानी मानते हैं कि ऐसे लोग मानसिक रूप से बीमार हो सकते हैं। उनका यह भी कहना कि अगर कोई मानसिक बीमार है तो कुछ न कुछ लक्षण ऐसे दिखते हैं जिसे परिवार या आस-पड़ोस पहचान तो लेते हैं लेकिन उपचार के लिए कोई प्रयास नहीं किया जाता है। इसकी वजह से मनोरोग की समस्या बढ़ रही है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

इसे देखते हुए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली के मनोचिकित्सा विभाग मानसिक रोग के उपचार की दिशा में बड़ा बदलाव लाने जा रहा है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) और भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) के विशेषज्ञ के साथ मिलकर एम्स कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) आधारित ऐसा उन्नत डिजिटल मनोचिकित्सा तंत्र (ऐप और इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म) विकसित कर रहे हैं, जो न सिर्फ व्यक्ति की मनोवृत्ति व मनोस्थिति की समय रहते पहचान करेगा, बल्कि उसके समुचित इलाज का प्रबंध भी करेगा। पीड़ित के स्वजन घर बैठे मोबाइल फोन, कंप्यूटर लैपटाप से अपनी मानसिक समस्या पर दूर-दराज के विशेषज्ञों से खुलकर बात कर सकेगा, उपचार व परामर्श ले सकेगा।

इस संयुक्त शोध परियोजना का उद्देश्य एआइ की मदद से मानसिक रोगों की पहचान को सरल, तेज और दूर-दराज क्षेत्रों तक पहुंचाना है। यही नहीं मानसिक रोग चिकित्सा प्रबंध के लिए चिकित्सक, मनोविज्ञानी और शोधार्थी एप के डाटा का उपयोग मानसिक रोग उपचार की बेहतरी के लिए कर सकेंगे। इसका नेतृत्व एम्स के प्रो. डा. कौशिक सिन्हा देब व प्रो. डा. नंद कुमार कर रहे हैं। इसे एम्स की डिजिटल-साइकाइट्री लैब में ट्रायल के बाद अब इसे उपयोग के लिए तैयार किया जा रहा है। इसकी सफलता के साथ भारत मानसिक रोग पहचान और उपचार के डिजिटल भविष्य का नेतृत्वकर्ता हो जाएगा।
कैसे काम करेगी

प्रो. डा. कौशिक सिन्हा देब के अनुसार एम्स में तैयार यह डिजिटल मनोचिकित्सा तंत्र के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य सेवा घर-घर पहुंचेगी जो मानव व्यवहार, आवाज, चेहरे के हावभाव, मोबाइल-कंप्यूटर उपयोग पैटर्न व दूसरी दैनिक गतिविधियों को गोपनीय ढंग से समझकर शुरुआती मानसिक रोग संकेतों की पहचान करेगा। बताया कि इसमें एआइ आधारित कई स्तरों वाली जांच प्रणाली विकसित की जा रही है, जो अवसाद, चिंता, बाइपोलर विकार व स्मृति से जुड़े रोग शुरुआती चरण में ही पकड़ लेगी।

एआई उनका विश्लेषण कर उन्हें विशेषज्ञ चिकित्सकों तक पहुंचाएगा। वे परीक्षण व रोग की पहचान कर संबंधित को परामर्श और उपचार देंगे। यह प्रणाली गोपनीयता सुनिश्चित करती है और व्यक्ति की पहचान या जानकारी उजागर नहीं होने देती। व्यक्ति को बिना अस्पताल गए, बिना भीड़ में जाए विशेषज्ञ परामर्श व उपचार मिल जाता है। दावा किया कि यह देश में मानसिक स्वास्थ्य उपचार-परामर्श की सबसे बड़ी रुकावट डर, दूरी और सामाजिक झिझक को समाप्त कर देगा।
क्यों जरूरी है यह तकनीक

राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण अनुसार देश में हर सात में से एक व्यक्ति (करीब 21 करोड़) जिनमें बच्चे, युवा, महिला, पुरुष और बुजुर्ग शामिल हैं, किसी न किसी मानसिक दिक्कत, चिंता, अवसाद, तनाव या गंभीर मानसिक विकार से प्रभावित है। अधिकतर इन्हीं मानसिक पीड़ा में वर्षों जीते और उसी के साथ विदा भी ले लेते हैं। वे मदद लेने की हिम्मत नहीं जुटा पाते या फिर उन्हें मदद नहीं मिल पाती।

डा. कौशिक सिन्हा देब बताते हैं कि चिंताजनक यह कि मानसिक समस्या से प्रभावित लोगों में से लगभग 80 प्रतिशत उपचार तक नहीं पहुंच पाते। कारण, निजता का भय, समाज की सोच, शर्म, परिवार का दबाव, अस्पतालों की दूरी, आर्थिक कठिनाइयां और समय की कमी। इसे ही दूर करने को एम्स इस डिजिटल तंत्र का विकास कर रहा है। जो इस बड़ी समस्या का समाधान है, जहां मरीज अपने मोबाइल फोन-कंप्यूटर से विशेषज्ञ परामर्श व उपचार ले सकेंगे।
प्रमुख तथ्य

-समय रहते रोग की पहचान

-विशेषज्ञ से तुरंत सलाह

-बार-बार अस्पताल आने की जरूरत कम

-मरीज की पूर्ण निजता की सुरक्षा

-ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में इलाज की समान उपलब्धता

-एप डाटा का उपयोग मानसिक रोग उपचार की बेहतरी के लिए हो सकेगा
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