गंगा नदी। (जागरण)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन ने नदी से जुड़े जीवों की विलुप्तप्राय प्रजातियों की सुरक्षा के लिए वास्तविक समय निगरानी प्रणाली, डिजिटल आर्द्रभूमि ट्रैकिंग और वैज्ञानिक उपकरणों से संबद्ध तकनीक-आधारित अभियान शुरू किया है।
अधिकारियों ने कहा है कि यह कदम डाटा-समर्थित निर्णय लेने की ओर बदलाव का प्रतीक है और ऐसे समय में उठाया जा रहा है, जब नदी के कई हिस्से पारिस्थितिकी तंत्र से संबंधित समस्याओं का सामना कर रहे हैं। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के उप महानिदेशक नलिन कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि नई प्रणालियां उन कमियों को दूर करने के लिए हैं जिन पर पहले ध्यान नहीं दिया गया था। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
उन्होंने कहा, \“\“प्रौद्योगिकी हमें उस लक्ष्य को मजबूत करने में मदद कर रही है जो हमेशा से हमारा मुख्य उद्देश्य रहा है - वैज्ञानिक सटीकता और सामुदायिक भागीदारी के साथ गंगा और उसकी पारिस्थितिक विरासत की रक्षा करना।\“\“
उन्होंने बताया कि मिशन ने वन्यजीव बचाव और पुनर्वास के लिए जीपीएस से जुड़े प्रोटोकाल भी शुरू किए हैं, जिससे एक डिजिटल रजिस्ट्री बनाई गई है जो बचाए गए जीवों को ट्रैक करती है और अधिकारियों को उनकी रिकवरी पर नजर रखने में मदद करती है।
उत्तर प्रदेश के राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य के गराईटा केंद्र में एक अभियान शुरू किया गया है, जहां राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन ने \“स्मार्ट\“ (विशिष्ट, मापन योग्य, प्राप्त करने योग्य, प्रासंगिक, समयबद्ध) पैट्रोलिंग शुरू की है।
यह एक ऐसी एक प्रणाली है जो डिजिटल रूप से क्षेत्र विशेष में होने वाली गतिविधि को रिकार्ड करती है और वास्तविक समय में घडि़याल, कछुए और डाल्फिन जैसी प्रजातियों पर नजर रखती है। एक नई \“स्मार्ट\“ लैब अब पैट्रो¨लग मार्गों का मानचित्रण कर रही है, फील्ड डाटा का विश्लेषण कर रही है और कमियों को चिह्नित कर रही है।
अधिकारियों के अनुसार, इससे प्रतिक्रिया समय में सुधार हो रहा है और अग्रिम पंक्ति के कर्मचारियों की जवाबदेही मजबूत हो रही है। उन्होंने बताया कि गंगा के किनारे स्थित आर्द्रभूमियों पर जीआइएस (भौगोलिक सूचना प्रणाली) और रिमोट सेंसिंग का उपयोग करके निरंतर डिजिटल निगरानी रखी जा रही है।
ये उपकरण अतिक्रमणों की पहचान करने, भूमि उपयोग में बदलावों का पता लगाने और यह आकलन करने में मदद कर रहे हैं कि गाद हटाने या वनस्पतियों को पुनर्जीवित करने जैसे पुनस्र्थापन कार्य प्रभावी हो रहे हैं या नहीं।
परियोजना से जुड़े विज्ञानियों ने कहा कि नई प्रणाली एजेंसियों को फील्ड सर्वेक्षणों पर निर्भर रहने के बजाय अधिक सटीक योजना बनाने में भी मदद करेगी। इस अभियान के तहत विलुप्तप्राय प्रजातियों की गतिविधियों, उनके पाए जाने वाले संभावित स्थानों का अध्ययन करने के लिए रेडियो और ध्वनिक टेलीमेट्री, पीआइटी टैग और जीपीएस उपकरणों की उच्च-स्तरीय ट्रैकिंग प्रणालियां भी तैनात की जा रही हैं।
कछुओं के स्थानों की मैपिंग करने और डाल्फिन के उन हॉटस्पॉट की पहचान करने के लिए रिमोट सेंसिंग उपकरणों का उपयोग किया जा रहा है, जिन्हें सख्त सुरक्षा की आवश्यकता है। अधिकारियों ने कहा कि अनियमित रेत खनन, औद्योगिक गतिविधियों और जीवों के आवास के नुकसान से नदी के पारिस्थितिक तंत्र पर पड़ रहे दबाव को देखते हुए व्यापक जन भागीदारी बेहद जरूरी है।
(समाचार एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ) |