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निजाम का स्‍टेटस सिंबल वाला महल, कैसे बन गया कूटनीति का केंद्र? 105 साल पुरानी हैदराबाद हाउस की कहानी

deltin33 2025-12-4 22:09:38 views 139

  



डिजिटल डेस्‍क, नई दिल्‍ली। राजधानी दिल्‍ली के दिल व इंडिया गेट के ठीक उत्तर में खड़ा- 1, अशोक रोड का हैदराबाद हाउस सिर्फ एक सरकारी गेस्ट हाउस नहीं है, बल्कि भारतीय इतिहास का वह जिंदा अध्याय है, जिसमें कभी दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति-हैदराबाद के आखिरी निजाम मीर उस्‍मान अली खान की शान-ओ-शौकत बसती थी। यहां की दीवारें उस दौर की अमीरी, रुतबे और जीवनशैली की अनगिनत कहानियां फुसफुसाती हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

इस भव्य इमारत का हर हिस्सा, हर मेहराब और हर एक पत्थर उस साम्राज्य की चमक का गवाह है, जिसकी पहचान उसके खजाने, हीरों-मोतियों और अपार वैभव से होती थी। लुटियंस की बारीकियों से तराशी गई यह संरचना सिर्फ वास्तुकला का नमूना नहीं, बल्कि राजसी विरासत और स्वतंत्र भारत की उभरती कूटनीति के संगम की जीवंत तस्वीर है। हैदराबाद हाउस आज भी उसी इतिहास, उसी वैभव और उसी छिपी हुई कहानी को अपने भीतर सुरक्षित रखे हुए खड़ा है- एकदम शांत, स्थिर और समय के प्रवाह का मौन साक्षी।

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की दो दिवसीय भारत यात्रा के दौरान हैदराबाद हाउस एक बार सुर्खियों में है। हैदराबाद हाउस बनने से लेकर सरकार के अधीन आने तक की पूरी कहानी यहां पढ़ें..
हैदराबाद हाउस बनने की क्‍या कहानी है?

जब अंग्रेजों ने साल 1911 में नई दिल्‍ली को देश की राजधानी बनाया। तब कई रियासतों ने राजधानी में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश की। हैदराबाद के निजाम की मांग सबसे अलग और सबसे साहसी थी। निजाम ने चाहा था कि उनको एक ऐसी जगह प्लॉट मिले जो उनकी शान और प्रतिष्ठा से मेल खाए। यानी कि उनका महल वायसराय हाउस ( मौजूदा राष्ट्रपति भवन) के बिलकुल पास बने।

अंग्रेजों ने यह मांग ठुकरा दी, क्योंकि वे वायसराय के घर के पास किसी भारतीय शासक को इतना बड़ा भवन बनाने की अनुमति नहीं देना चाहते थे। आखिर में सिर्फ 5 रियासतों को किंग्स वे (King\“s Way) के छोर पर, वायसराय हाउस से तीन किलोमीटर दूर प्लॉट आवंटित किए गए। ये पांच रियासतें- हैदराबाद, बड़ौदा, पटियाला, जयपुर और बीकानेर थीं।

हैदराबाद के निजाम को किंग्स वे आखिरी छोर पर प्लॉट मिला। इसी प्लॉट पर मीर उस्मान अली खान ने 1920 के दशक में एक भव्य महल (हैदराबाद हाउस) बनवाया था। उस वक्त हैदराबाद हाउस, जिसकी भव्यता वायसराय हाउसको छोड़कर किसी भी इमारत से कम नहीं थी।  

उस दौर में मीर उस्मान अली खान भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति थे। कहा जाता है- उनके खजानों में इतने मोती थे कि उससे ओलंपिक साइज स्विमिंग पूल भरा जा सकता था। उनके पास दुनिया के सबसे बड़े हीरों में एक जैकब डायमंड था, जिसे वे कागज दबाने के लिए पेपरवेट की तरह इस्तेमाल करते थे। जो शख्स पेपरवेट की जगह जैकब डायमंड का इस्तेमाल करता रहा हो, सोचो उसका दिल्‍ली का घर साधारण कैसे हो सकता था?
हैदराबाद हाउस को किसने डिजाइन किया?

हैदराबाद के निजाम और बड़ौदा के गायकवाड़ ने अपने दिल्ली स्थित घरों की डिजाइन प्रसिद्ध ब्रिटिश वास्तुकार एडविन लुटियंस से ह बनवाई। लुटियंस वही वास्तुकार थे, जिन्होंने राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट तक नई दिल्ली की आत्मा को आकार दिया।

निजाम की इच्छा के बावजूद लुटियंस ने हैदराबाद हाउस को वायसराय हाउस जैसा नहीं बनाया। लुटियंस ने इस भवन को एक अनूठे \“तितली\“ (Butterfly) के आकार में बनाया। इसमें बीच में एक गुंबद (dome) है। सममित पंखों की तरह संरचनाएं 55 डिग्री के कोण पर फैली हुई हैं और सामने एक शाही प्रवेश मार्ग है।
हैदराबाद हाउस बनाने में कितनी लागत लगी?

1920 के दशक में इस भव्य इमारत को बनाने पर 2,00,000 पाउंड खर्च हुए थे, जोकि उस समय के हिसाब से बहुत ज्‍यादा कीमत थी।
यूरोपीय शैली वाला भारतीय महल

  • हैदराबाद हाउस यूरोपीय शैली वाला भारतीय महल है।
  • यूरोपीय वास्तुकला, जिसमें मुगल नुमा झरोखे- एक सांस्कृतिक मिश्रण।
  • इसमें 36 विशाल कमरे हैं।
  • मेहराबदार गलियारों, आंगनों और फव्वारों से सजा आंतरिक हिस्सा।
  • सामने ‘डोम अथॉरिटी’ वाला विशाल हॉल।
  • ऊपर फ्लोरेंटाइन शैली, रोम के पैंथियन से प्रेरित मेहराबें।


लुटियंस ने महल में एक जनाना (महिलाओं के लिए आरक्षित क्षेत्र) भी डिजाइन किया था। जनाना यानी गोलाकार आंगन के चारों ओर बने 12 से 15 छोटे-छोटे कमरे।

लॉर्ड हार्डिंग ने हैदराबाद हाउस का मुआयना करते हुए लिखा था-


\“प्रत्येक कमरा घोड़े के अस्तबल जितना बड़ा था और अंदर सिर्फ एक सादा बिस्तर रखा था। पर गर्म और ठंडे पानी की टोंटियों के नीचे महिलाएं बैठकर स्नान करती थीं।


  

लुटियंस ने दिल्ली में कई महलों की डिजाइनिंग की, लेकिन हैदराबाद हाउस सबसे भव्य था। या फिर यह कहा जाए कि राष्ट्रपति भवन के बाद दूसरी सबसे शानदार इमारत थी। इसकी भव्यता सिर्फ दिखावा नहीं थी। यह निजाम के शाही दर्जे- 21-गन सेल्यूट और उनके राजनीतिक महत्व का प्रतीक था।
आजादी के बाद बदली किस्मत

  • 1947 में आजादी के बाद जब रियासतों के विलय की प्रक्रिया शुरू हुई, तो हैदराबाद ने सबसे अंत तक भारत में शामिल होना स्वीकार नहीं किया।
  • 1948 के ऑपरेशन पोलो के बाद राज्य का भारत में विलय हुआ और निजाम का प्रभाव धीरे-धीरे कम होता गया।


  

दिल्ली स्थित हैदराबाद हाउस उनके उपयोग में नहीं रहा। आखिर में यह भारत सरकार के अधिकार में आ गया। फिर 1974 में विदेश मंत्रालय ने इसे पूरी तरह अपने अधीन ले लिया। इसके बाद से महल नई भूमिका -  भारत के कूटनीतिक हृदय के रूप में इस्तेमाल होने लगा।
हैदराबाद हाउस: भारत की कूटनीति का नया केंद्र

1940 के दशक का यह शाही महल जो कभी निजाम का स्टेटस सिंबल था, अब दुनिया के सबसे ताकतवर नेताओं का स्वागत करता है। 1970 के बाद से हैदराबाद हाउस भारत के प्रधानमंत्री के आधिकारिक भोज, विदेशी राष्ट्राध्यक्षों की मीटिंग और उच्चस्तरीय द्विपक्षीय वार्ता का प्रमुख स्थल बन गया।

यहां आयोजित कार्यक्रमों में शामिल हुए राष्‍ट्राध्‍यक्ष

  • बिल क्लिंटन
  • जॉर्ज बुश
  • गॉर्डन ब्राउन
  • बराक ओबामा
  • शिंजो आबे
  • व्लादिमीर पुतिन
  • शी चिनफिंग
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