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MP के बांधवगढ़ में कबीर मेला... देश भर से श्रद्धालु पहुंचे, बाघों के गढ़ में गूंजी कबीर वाणी

Chikheang 2025-12-4 22:09:29 views 417

  

बांधवगढ़ में ताला गेट के बाहर लगी कबीरपंथियों की भीड़।  



डिजिटल डेस्क, जबलपुर। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में हर साल होने वाला कबीर मेला अगहन पूर्णिमा की सुबह शुरू हुआ जो शाम तक चला। इस दौरान देश के अलग-अलग प्रदेशों से बीस हजार से ज्यादा लोग ताला क्षेत्र में पहुंचे। इनमें से पांच हजार लोगों ने करीब 15 किलोमीटर पैदल यात्रा करके कबीर चौरा और गुफा तक पहुंचे। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में स्थित कबीर गुफा और कबीर चबूतरा के दर्शन करने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश सहित देश के विभिन्न प्रदेशों से कबीरपंथी व दर्शनार्थी यहां पहुंचे हैं। एनजीटी के निर्देशों के अनुसार इस वर्ष कबीर गुफा के दर्शन के लिए टाइगर रिजर्व क्षेत्र में यात्रा करने वाले सभी श्रद्धालुओं का पंजीकरण आनलाइन किया गया।

सुबह छह बजे से साढ़े सात बजे तक आनलाइन पंजीयन के सत्यापन के उपरांत मेला में आए सभी लोगों को टाइगर रिजर्व में प्रवेश के लिए टोकन प्रदान किए गए। इसके पश्चात सुबह साढ़े सात बजे से साढ़े 10 बजे तक कबीर गुफा में जाने के लिए प्रवेश दिया गया। शाम साढ़े तीन बजे तक सभी दर्शनार्थियों ने मेन गेट ताला से वापस लौटना शुरू कर दिया।

  
इसलिए लगता है मेला

प्रथम वंश गुरु हुजूर चूड़ामणि नाम साहेब के प्राकट्य दिवस अगहन पूर्णिमा के अवसर पर बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान में प्रति वर्ष \“बांधवगढ़ दर्शन यात्रा\“ के रूप में पारंपरिक मेला का आयोजन किया जाता है। वंश परंपरा की गद्दी में विराजमान 15 वें वंश गुरु प्रकाश मुनि नाम साहेब के सानिध्य में बड़ी संख्या में साधु-संत, महंत एवं भक्त बांधवगढ़ दर्शन यात्रा कर सदगुरु कबीर साहेब गुफा मंदिर, धर्मदास साहब एवं आमीन माता मंदिर, कबीर चबूतरा (उपदेश स्थल) कबीर तलैया के दर्शन करते हैं।
कबीर की अनेक रचनाएं बांधवगढ़ में हुई लिपिबद्ध

कबीर के शिष्य धर्मदास साहेब ने भाव पूर्वक सद्गुरु कबीर को बांधवगढ़ आने का न्योता दिया था, जिसके बाद वे विक्रम संवत् 1420 में बांधवगढ़ आए थे। कबीरपंथी हरिभाई बताते हैं कि कबीर साहित्य के ग्रंथ-बीजक, कबीर सागर, शब्दावली आदि ग्रंथों में शामिल दोहे, पद और रमैनी की रचना बांधवगढ़ में ही हुई है।

  

कबीर साहेब अपने शिष्य धर्मदास साहब, माता आमिन, श्रुतिगोपाल साहेब, हंसोबाई, चूरामणि नाम साहेब, जागु साहेब, भगवन साहेब और राजा वीरसिंह देव, रानी इंदुमती, रानी कमलावती और वीरभानु उर्फ़ रामसिंह आदि को सत्संग सुनाया करते थे। इस दौरान जब वे पद और दोहे गाते थे, तो शिष्य उन्हें लिपिबद्ध कर लेते थे।
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