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डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (यूएससीआइआरएफ) ने ट्रंप प्रशासन से पाकिस्तान के साथ मिलकर उसके ईशनिंदा कानून में संशोधन करने या उसे निरस्त करने का आग्रह किया है। आयोग ने कहा कि इस कानून का व्यापक दुरुपयोग देखने को मिल रहा है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
इसके कारण भीड़ द्वारा हमले किए जाने और लोगों को अवैध रूप से जेल में डालने की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं। यह कानून ईसाइयों, अहमदिया मुसलमानों और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ते खतरों का मुख्य कारण बना हुआ है।
उल्लेखनीय है कि हाल ही में तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) पर प्रतिबंध लगाया गया है। यह कट्टरपंथी संगठन ईशनिंदा कानून के प्रविधानों का बचाव करने के नाम पर भीड़ जुटाने और हिंसा फैलाने के लिए जाना जाता है। इस पर प्रतिबंध लगाए जाने के कुछ हफ्ते बाद ही अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग की ओर से यह आग्रह किया गया है।
आयोग ने कहा कि टीएलपी ने \“\“धार्मिक अल्पसंख्यकों को डराने और उन पर हमला करने के लिए हिंसक भीड़ को उकसाया है। यहां तक कि ईशनिंदा कानूनों के उल्लंघन के लिए मौत की सजा की भी मांग की है।\“\“
आयोग ने कहा कि इन कार्रवाइयों ने लंबे समय से पाकिस्तान के गैर-मुस्लिम समुदायों और अहमदिया लोगों को खतरे में डाला है। अहमदिया लोगों को तो देश में मुस्लिम ही नहीं माना जाता है। आयोग ने कहा कि इस तरह की लामबंदी ने ऐसा माहौल बनाने में मदद की है जिसमें \“\“अक्सर असत्यापित\“\“ आरोप लगाए जाते हैं जो दंगे भड़का सकते हैं और लक्षित हत्याओं का सबब बन सकते हैं।
आयोग के उपाध्यक्ष आसिफ महमूद ने कहा, \“\“धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करने वाले दोषियों को जवाबदेह ठहराना धर्म या आस्था की स्वतंत्रता का एक प्रमुख घटक है। धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा या उकसावे का इस्तेमाल कभी भी राजनीतिक या नागरिक भागीदारी का वैध रास्ता नहीं है। राजनीतिक दल या राजनीतिक गतिविधि की आड़ में छिपे लोग अगर हिंसा की बात करें तो उन्हें जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।\“\“
ईशनिंदा के आरोपों से जुड़ी कानूनी सजाओं के अलावा आयोग ने उस व्यवस्था के गंभीर सामाजिक परिणामों पर भी प्रकाश डाला है जहां आरोपों को अक्सर हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाता है। इसने कहा कि पाकिस्तानी नागरिकों ने ईशनिदा के आरोपों का इस्तेमाल आपसी रंजिश एवं व्यक्तिगत विवादों को निपटाने के लिए किया है, जिससे अक्सर हत्याएं और भीड़ द्वारा हिंसा होती है जिसका धार्मिक अल्पसंख्यकों पर गंभीर असर पड़ता है।
आयोग ने अमेरिका से आग्रह किया कि वह विशिष्ट सुधारात्मक कदमों को प्रोत्साहित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम (आइआरएफए) के तहत इस्लामाबाद के साथ एक बाध्यकारी समझौते पर विचार करे। इन उपायों में ईशनिंदा के आरोप में कैद व्यक्तियों की रिहाई, कतिपय संगठनों से जुड़े दुर्व्यवहारों पर अंकुश लगाना और अंतत: देश के ईशनिंदा कानूनों को निरस्त करना शामिल है।
(समाचार एजेंसी आइएएनएस के इनपुट के साथ) |