सरकार ने बुधवार को वो आदेश वापस ले लिया, जिसमें देश में बिकने वाले हर स्मार्टफोन में \“संचार साथी\“ साइबर सुरक्षा ऐप पहले से इंस्टॉल करना जरूरी किया गया था। अब कंपनियां अपने फोन में इसे जबरदस्ती प्री-इंस्टॉल करके देने की बाध्यता नहीं है। दोपहर में जारी बयान में कहा गया कि यह फैसला इसलिए लिया गया, क्योंकि पिछले 24 घंटों में ही छह लाख से ज्यादा लोगों ने ऐप डाउनलोड किया है और ऐप के यूजर्स की संख्या तेजी से बढ़ रही है। यानी सरकार का कहना है कि बिना अनिवार्य किए भी लोग खुद ही बड़ी संख्या में यह ऐप इंस्टॉल कर रहे हैं।
सरकार ने कहा कि प्री-इंस्टॉलेशन का आदेश इसी प्रक्रिया को तेज करने के लिए था। यह फैसला दो दिनों के विरोध के बाद लिया गया। विपक्षी नेता और नागरिक कार्यकर्ता सड़कों पर उतरे। उन्होंने कहा कि यह आदेश निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है और ऐप से लोगों की जासूसी हो सकती है, जो 2021 के पेगासस जासूसी कांड की याद दिलाता है।
बयान में इस बात की भी पुष्टि की गई है, जो संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कल कहा था और आज सुबह संसद में दोहराया था- ऐप को अन-इंस्टॉल भी किया जा सकता है।
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इसमें कहा गया, “सभी नागरिकों को साइबर सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से, सरकार ने सभी स्मार्टफोन पर संचार साथी ऐप पहले से इंस्टॉल करना अनिवार्य कर दिया है। यह ऐप सुरक्षित है और साइबर दुनिया में मौजूद खतरनाक तत्वों से नागरिकों की मदद के लिए बनाया गया है। यूजर्स की सुरक्षा के अलावा इसका कोई और काम नहीं है... और वे इस ऐप को हटा भी सकते हैं।“
इससे पहले आज सिंधिया ने लोकसभा में कहा, “संचार साथी ऐप के साथ जासूसी न तो संभव है और न ही होगी। और मैं इसे किसी भी दूसरे ऐप की तरह हटा सकता हूं... क्योंकि लोकतंत्र में हर एक नागरिक को यह अधिकार है। हमने इसे सभी के लिए सुलभ बनाने के लिए यह कदम उठाया है।“
BJP नेता ने कहा, “ऐप की सफलता जनता की भागीदारी पर आधारित है। लेकिन अब जनता से मिले फीडबैक के आधार पर हम व्यवस्था में बदलाव लाने के लिए तैयार हैं।“ |