पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की बैठक (फाइल फोटो)।
राज्य ब्यूरो, रांची। झारखंड और बिहार के बीच परिसंपत्तियों के बंटवारे को लेकर लंबित मामलों पर एक बार फिर चर्चा तेज होने वाली है। आगामी पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की बैठक में यह मुद्दा प्रमुख एजेंडे के रूप में रखा जाएगा। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
इसे ध्यान में रखते हुए झारखंड के वित्त विभाग ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। अधिकारी संबंधित दस्तावेज और बकाया आंकड़ों को अंतिम रूप देने में जुटे हैं, ताकि बैठक में राज्य के पक्ष को मजबूती से रखा जा सके।
गृह विभाग भी ले जाएगा अपना प्रस्ताव
इस बैठक में केवल वित्त विभाग ही नहीं, बल्कि गृह विभाग के अधिकारी भी अपने-अपने प्रस्ताव लेकर शामिल होंगे। माना जा रहा है कि सुरक्षा, प्रशासनिक दायित्वों तथा पहले से लंबित मामलों पर समन्वय बनाने के लिए गृह विभाग अपने सुझाव प्रस्तुत करेगा। इन प्रस्तावों को अंतिम रूप देने के लिए अधिकारी राजधानी दिल्ली पहुंचेंगे, जहां बैठक का आयोजन प्रस्तावित है।
दोनों राज्यों के बीच पहले भी हो चुकी कई दौर की बातचीत
बिहार और झारखंड के बीच परिसंपत्ति बंटवारा विवाद नया नहीं है। राज्य विभाजन के 24 वर्षों बाद भी कई संस्थानों की संपत्तियों, बकाया राशि और दायित्वों पर सहमति नहीं बन सकी है। हालांकि, पिछले वर्षों में केंद्र सरकार के हस्तक्षेप के बाद दोनों राज्यों के अधिकारी एक मंच पर बैठकर समाधान तलाशने को तैयार हुए हैं।
पूर्व में हुई बैठकों में कई बिंदुओं पर सहमति बनी है, लेकिन कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न अब भी शेष हैं। इस बार की बैठक इसलिए अहम मानी जा रही है क्योंकि उम्मीद जताई जा रही है कि कई मुद्दों पर निर्णायक निर्णय हो सकता है।
इन संस्थानों के बंटवारे पर लंबे समय से विवाद
बैठक में जिन संस्थानों के कार्यों और दायित्वों के बंटवारे पर चर्चा होने वाली है, उनमें मुख्य रूप से ये शामिल हैं:
- बिहार स्टेट फाइनांशियल कारपोरेशन
- खादी एंड विलेज इंडस्ट्रीज बोर्ड
- बिहार स्टेट क्रेडिट एंड इन्वेस्टमेंट कारपोरेशन
- बिहार राज्य आवास बोर्ड
- बिहार स्टेट बैकवर्ड क्लासेस फाइनांश एंड डेवलपमेंट कारपोरेशन
- बिहार हिल एरियाज लिफ्ट इरिगेशन कारपोरेशन
- बिहार स्टेट फूड एंड सिविल सप्लाइज कॉर्पोरेशन लिमिटेड
-
इन संस्थानों की परिसंपत्तियों, चल-अचल संपत्तियों, बकाया देनदारियों तथा भविष्य के दायित्वों को लेकर दोनों राज्यों के बीच लंबे समय से असहमति बनी हुई है। झारखंड का कहना है कि विभाजन के समय उसके हिस्से की संपत्तियों और देनदारियों का सही मूल्यांकन नहीं हुआ, जबकि बिहार का तर्क है कि कई मामलों में वास्तविक आंकड़ों को ध्यान में नहीं रखा गया।
निर्णायक मोड़ लाने की उम्मीद
केंद्र सरकार की निगरानी में होने वाली इस बैठक से उम्मीद की जा रही है कि दोनों सरकारें अब किसी ठोस निष्कर्ष पर पहुंचेंगी। यदि सहमति बनी, तो 20 से अधिक वर्षों से लंबित यह विवाद समाधान की दिशा में आगे बढ़ सकेगा। |