क्यों बॉडी नहीं बना पा रही ‘सनशाइन विटामिन’ (Picture Courtesy: Freepik)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। विटामिन-डी की कमी आज एक बड़ी समस्या बन चुकी है, जिससे ज्यादातर भारतीय जूझ रहे हैं। इसके कारण कमजोर इम्युनिटी, हड्डियां कमजोर होना, मांसपेशियों में दर्द और उदासी जैसे लक्षण (Vitamin-D Deficiency Symptoms) नजर आते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इतनी धूप होने के बावजूद भारतीयों में विटामिन-डी की कमी क्यों पाई जाती है? विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
दरअसल, इसके पीछे कोई एक कारण (Factors behind Vitamin-D Deficiency) जिम्मेदार नहीं है। ऐसे कई फैक्टर्स हैं, जो हमारे शरीर में विटामिन-डी के लेवल को प्रभावित करते हैं। आइए जानें किन वजहों से शरीर में विटामिन-डी की कमी हो सकती है।
धूप में कम जाना
विटामिन-डी का सबसे अच्छा सोर्स धूप है, लेकिन आज की लाइफस्टाइल में लोगों का समय घर या ऑफिस के अंदर ही बीतता है। इसके अलावा, धूप से बचने के लिए स्कार्फ, पूरी बाजू के कपड़े, सनस्क्रीन का ज्यादा इस्तेमाल भी विटामिन-डी के अब्जॉर्प्शन को रोकते हैं। बढ़ते प्रदूषण के कारण भी लोग बाहर कम निकलते हैं और विटामिन-डी की कमी हो सकती है।
डाइट में विटामिन-डी की कमी
नेचुरली विटामिन-डी से भरपूर फूड्स काफी सीमित मात्रा में हैं। साल्मन, ट्यूना, मैकरेल जैसी मछलियां, अंडे, कॉड लिवर ऑयल और कुछ मशरूम में विटामिन-डी नेचुरली पाया जाता है। कुछ फोर्टिफाइड फूड्स में विटामिन-डी होता है, जैसे- दूध, ऑरेंज जूस आदि। डाइट में इन फूड्स की कमी के कारण भी यह समस्या होती है।
त्वचा का रंग
त्वचा में मौजूद मेलेनिन पिगमेंट सूरज की किरणों के अब्जॉर्प्शन को प्रभावित करता है। डार्क स्किन में मेलेनिन ज्यादा होता है, जो सूरज की किरणों से रक्षा करता है, लेकिन साथ ही विटामिन-डी बनाने में बाधा भी बनता है। सलिए, गहरे रंग की त्वचा वाले लोगों को हल्के रंग की त्वचा वाले लोगों की तुलना में ज्यादा समय तक धूप में रहने की जरूरत होती है।
उम्र का प्रभाव
उम्र बढ़ने के साथ शरीर की विटामिन-डी बनाने की क्षमता कम होने लगती है। बुजुर्ग व्यक्तियों की त्वचा पतली हो जाती है और किडनी विटामिन-डी को एक्टिव रूप में बदलने में कम सक्षम हो जाती है।
मोटापा
विटामिन-डी एक फैट सॉल्युबल विटामिन है। शरीर में ज्यादा फैट के कारण यह विटामिन फैट सेल्स में अब्जॉर्ब हो जाता है। इसलिए मोटापे से ग्रस्त लोगों में विटामिन-डी की कमी का जोखिम ज्यादा होता है।
मेडिकल कंडीशन और दवाएं
कुछ स्वास्थ्य स्थितियां शरीर की विटामिन-डी को अब्जॉर्बशन या परिवर्तित करने की क्षमता को प्रभावित करती हैं। इनमें सीलिएक रोग, क्रोहन रोग, सिस्टिक फाइब्रोसिस, किडनी या लीवर डिजीज शामिल हैं। इसके अलावा, कुछ दवाएं जैसे एंटी-सीजर, एंटी-फंगल और ग्लुकोकोर्टिकॉइड्स भी विटामिन-डी के मेटाबॉलिज्म को बाधित कर सकती हैं।
मौसम और ज्योग्राफिकल कंडीशन
जो लोग भूमध्य रेखा से दूर उत्तरी या दक्षिणी क्षेत्रों में रहते हैं, वहां सर्दियों के महीनों में सूरज की किरणें तिरछी पड़ती हैं। इससे यूवी-बी किरणें कमजोर पड़ जाती हैं, जिससे विटामिन-डी का प्रोडक्शन कम होता है। भारत में भी सर्दियों के मौसम में धूप कमजोर होने के कारण विटामिन-डी का स्तर गिर सकता है।
प्रेग्नेंसी और ब्रेस्ट फीडिंग
प्रेग्नेंट और ब्रेस्ट फीड कराने वाली महिलाओं में विटामिन-डी की जरूरत बढ़ जाती है। अगर मां में विटामिन-डी की कमी हो, तो शिशु भी इससे प्रभावित हो सकता है।
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