जागरण संवाददाता, बगहा (पश्चिम चंपारण)। बगहा के 14 वर्ष पुराने हत्या मामले में शुक्रवार को जिला जज चतुर्थ मानवेंद्र मिश्र की अदालत ने अभियुक्त चुन्नू डोम निवासी चौतरवा को आजीवन कारावास की सजा सुनाई और 10 हजार रुपये का अर्थदंड लगाया। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
अर्थदंड न देने पर छह माह का अतिरिक्त कारावास भुगतना होगा। लंबे समय से लंबित इस मामले में सबकी निगाहें अदालत पर टिकी थीं।अभियोजन पदाधिकारी जितेंद्र भारती ने अदालत को सजा देने का अनुरोध किया था। उनके अनुसार मुमताज देवी निवासी चौतरवा ने बताया था कि तीन दिसंबर 2011 को रात में वह अपने पति और बच्चों के साथ खाना खाकर दरवाजे के पास आग ताप रही थीं।
तभी अचानक होरिल डोम उर्फ मुशा डोम, विष्णु डोम, देवा डोम, चुन्नू डोम, चंचल डोम, रिपू डोम, सुनील डोम, अरविंद डोम और कुंदन डोम उनके घर पहुंचे और गाली-गलौज करने लगे।
उन्होंने और उनके पति ने गाली देने से मना किया, तो आरोपियों ने अपने-अपने घरों से लाठी, डंडा और ईंट-पत्थर लेकर फिर हमला किया। इस दौरान होरिल डोम ने अपने हाथ में लिए डंडे से उनके पति के सिर पर जोरदार वार किया, जिससे वे गंभीर रूप से घायल होकर जमीन पर गिर पड़े। सभी ने मिलकर मुमताज देवी पर भी हमला किया, जिससे उनके कंधे और हाथ में चोटें आईं।
अभियुक्तों ने उनके पति को घसीटकर लाठी-डंडों से पीटा। इस हमले के कुछ ही देर बाद उनके पति डब्लू राम उर्फ डेबा की मौत घटनास्थल पर ही हो गई। घटना का कारण यह था कि मुशा डोम को शादी-विवाह से जुड़े पुराने विवाद को लेकर उनके पति से दुश्मनी थी और सुनील डोम से घर-परिवार के झगड़े को लेकर तनाव था। सभी ने शराब पीकर एकजुट होकर यह घटना अंजाम दी।
बचाव पक्ष का दावा खारिज, अदालत ने सबूतों के अभाव को माना अहम
बहस के दौरान बचाव पक्ष ने अदालत को बताया कि केस की सूचक मुमताज देवी की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है। बचाव पक्ष ने यह भी दावा किया कि अभियुक्त चुन्नू डोम घटना के समय दिल्ली में मजदूरी कर रहा था।
विद्धान जज मानवेंद्र मिश्र ने अपने आदेश में स्टेट आफ यूपी बनाम सुधर सिंह केस का जिक्र किया। जिसमें यदि कोई व्यक्ति यह दावा करता है कि वह घटना के समय घटनास्थल पर मौजूद नहीं था, तो यह साबित करने की ज़िम्मेदारी उसी पर होती है।
इस बिंदु पर प्रतिरक्षा पक्ष की ओर से कोई भी ऐसा दस्तावेज़ी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है, जिससे यह सिद्ध हो सके कि आरोपी किसी नौकरी, उपस्थिति पंजी, वेतन पर्ची, दैनिक मजदूरी, रेल टिकट या किसी कंपनी या किसी अन्य नियोक्ता के माध्यम से कहीं कार्य कर रहा था। उसके द्वारा कोई प्रमाणित नियुक्ति पत्र, पहचान पत्र या किसी भी प्रकार का साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है।
इससे यह स्पष्ट होता है कि वह कभी भी गुड़गांव या दिल्ली में काम पर नहीं था। यहां तक कि घटना वर्ष 2011 में किसी ट्रेन का टिकट भी प्रस्तुत नहीं किया गया, जिससे यह माना जा सके कि आरोपी कभी दिल्ली गया हो।
सात गवाहों को अदालत में किया गया प्रस्तुत
दस्तावेज़ों के अवलोकन में यह सामने आया है कि अभियोजन पक्ष की ओर से कुल सात गवाहों को अदालत में प्रस्तुत किया गया है। इनमें झुमरी देवी, सुजीत राम, धर्मेश राम, अनुसंधानकर्ता अतानु दत्ता, पोस्टमार्टम करने वाले चिकित्सक डॉ. अशोक कुमार तिवारी, सूचक मुमताज देवी और रेशमी देवी शामिल हैं। सभी गवाहों ने अपने-अपने बयान अदालत के समक्ष दर्ज कराए हैं।
अभियोजन पक्ष ने मामले को प्रमाणित करने के लिए कई महत्वपूर्ण दस्तावेज भी कोर्ट में दाखिल किए हैं। इसमें मृतक डब्लू राम डोम की पोस्टमार्टम रिपोर्ट, प्राथमिकी दर्ज करने के लिए दिया गया आवेदन, आवेदन पर किया गया आदेश, प्राप्त हुई औपचारिक रिपोर्ट तथा पोस्टमार्टम रिपोर्ट से संबंधित अभिलेख शामिल हैं। वहीं, दूसरी ओर बचाव पक्ष ने भी अपनी ओर से चार गवाह अदालत में प्रस्तुत किए हैं। अदालत में दोनों पक्षों द्वारा प्रस्तुत गवाही और दस्तावेज़ों के आधार पर मामले की सुनवाई की है।
गैर जमानती वारंट जारी करने पर हुए थे हाजिर
दो जून को अदालत ने अनुसंधानक अतानु दत्ता, डा. ए.के. तिवारी के खिलाफ जारी गैर-जमानती वारंट के बावजूद उपस्थित न होने पर उनकी गिरफ्तारी का आदेश जारी किया था। बगहा एसपी को निर्देश दिए गए कि उन्हें गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया जाए। |