पोल्की जूलरी: इतिहास, महत्व और पहचान
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। भारत में हमेशा से ही गहनों का खास महत्व रहा है। राजा- महाराजाओं के दौर से लेकर मॉर्डन दुनिया तक आभूषण हमेशा से साज-सज्जा का एक अहम हिस्सा रहे हैं। ये गहने न सिर्फ महिलाओं की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं, बल्कि शान-ओ-शौकत भी दिखाते हैं। पोल्की जूलरी ऐसी ही एक खास कारगरी है, जो लंबे समय से गहनों की शान बनी हुई है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
शाही आकर्षण और प्राचीन गुणवत्ता की वजह से पोल्की गहने सदियों से लोकप्रिय आभूषण शैलियों में से एक रहे हैं। यह एक क्लासिक डिजाइन है, जो फैशन एक्सेसरी से बढ़कर एक सदियों पुरानी परंपरा है। यही वजह है कि अनुष्का शर्मा और प्रियंका चोपड़ा से लेकर सोनम कपूर-आहूजा और राधिका अंबानी तक ने अपनी शादी के खास मौके के लिए पोल्की के खूबसूरत आभूषणों को ही चुना। ऐसे आज कहानी गहनों की इस सीरीज में हम जानेंगे पोल्की के गहनों की इसी खासियत और इसके सदियों पुराने इतिहास के बारे में-
पोल्की आखिर है क्या?
पोल्की एक बिना तराशा और बिना पॉलिश किया हुआ हीरा है, जिसका इस्तेमाल पूरी तरह नेचुरल तरीके से किया जाता है। इस पर किसी तरह का कोई फिजिकल या केमिकल ट्रीटमेंट नहीं किया जाता। आमतौर पर इसका इस्तेमाल ओरिजिनल रूप में ही किया जाता है। अक्सर इसकी खुरदुरी सतह पर ही पॉलिश की जाती है और इसे स्टोन की मूल संरचना के अनुसार ही काटा जाता है। यही कारण है कि इसका कोई भी हिस्सा एक जैसा नहीं होता। हर एक पोल्की अपने आप में खास और अनोखा होता है।
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पोल्की गहनों का इतिहास
बात करें पोल्की के इतिहास की, तो वास्तव में, यह कटे हुए हीरों के सबसे पुराने रूपों में से एक है, जिसकी उत्पत्ति बहुत समय पहले भारत में ही हुई थी। वहीं, अगर पोल्की आभूषणों की उत्पत्ति की बात करें, तो इसकी शुरुआत मुगल शासकों के समय में देखी जा सकती है। इस दौरान सोने के फ्रेम में जड़े बिना तराशे हीरों यानी पोल्की का इस्तेमाल राजघरानों और शासकों को सजाने के लिए किया जाता था।
यह वह समय था जब सम्राट और रानियां बिना तराशे हीरों को पसंद करते थे, क्योंकि उनका मानना था कि इससे सौभाग्य आता है। समय के साथ यह राजपूत और मुगल राजघरानों में सौंदर्य के साथ-साथ धन और प्रतिष्ठा का प्रतीक भी बन गया था। बाद में यह राजपूत शाही संस्कृति का भी एक हिस्सा बन गया। राजस्थान, विशेष रूप से बीकानेर शहर, पोल्की शिल्पकला का केंद्र माना जाता है, जहाँ कारीगर पीढ़ियों से इस परंपरा को आगे बढ़ाते रहे हैं।
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क्यों खास हैं पोल्की जूलरी?
अन्य रत्नों की तुलना में पोल्की बेहद आकर्षण होता है, क्योंकि इसका इस्तेमाल बिना तराशे या काटे किया जाता है। इस तरह ये आधुनिक मशीन से काटे गए हीरों की तुलना में अपनी प्राकृतिक चमक बनाए रखते हैं। चूंकि ये हीरों का सबसे शुद्ध रूप होते हैं, पोल्की बेहद महंगे होते हैं। साथ ही इससे बनने वाले आभूषणों को अक्सर कीमती पत्थरों और मोतियों से सजाया जाता है, जिसके इसकी कीमत बढ़ जाती है।
कैसे बनती है पोल्की जूलरी?
पोल्की शब्द का अर्थ है बिना तराशे हुए हीरे, जो अपने सबसे शुद्ध बिना किसी छेड़छाड़ के संरक्षित होते हैं। पोल्की आभूषणों का निर्माण एक जटिल और सदियों पुराना शिल्प है। इसके हर एक आभूषण पूरी तरह से हाथों से बनाए जाते हैं। कारीगर बिना तराशे हुए हीरों को लाख और सोने की फॉइल के बेस पर जड़ते हैं, जिसके पीछे अक्सर मीनाकारी का काम होता है। आधुनिक हीरों के विपरीत, पोल्की रत्नों को न तो काटा जाता है और न ही उनमें कोई पॉलिश की जाती है, जिससे उनकी प्राकृतिक सुंदरता बनी रहती है।
यह आभूषण शैली कुशल कारीगरों की कई पीढ़ियों से चली आ रही है, खासकर राजस्थान, गुजरात और हैदराबाद जैसे हिस्सों में। यह कारीगरी आज भी फल-फूल रही है और अपनी सुंदरता और शाही आकर्षण के लिए बहुमूल्य भारतीय विरासत का आधार बना हुआ है।
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पोल्की जूलरी बनाने में कितना समय लग सकता है?
पोल्की जूलरी की इस कला को बनाने बहुत ज्यादा स्किल और लगन की जरूरत होती है। इसकी डिजाइन काफी जटिल होती है और इसकी जटिलता के आधार पर हर एक पीस को तैयार करने में कई दिन या महीने लग सकते हैं।
कैसे करें असली पोल्की की पहचान?
इन दिनों बाजार में मिलावट का दौर जारी है। ऐसे में गहने खरीदते समय भी असली और नकली की पहचान करना जरूरी है। खासकर पोल्की जूलरी की सही पहचान बेहद जरूरी होती है। पोल्की लेते समय उसके खुरदरे, अनरिफाइंड रूप और गहरी चमक पर गौर करें। असली पोल्की में प्राकृतिक अनियमितताएं और समावेशन (inclusions) होते हैं। इसके विपरीत नकली पोल्की की सतह पूरी तरह समतल और शाइनी नजर आती है। नकली पोल्की के आभूषण में कई बार कांच का इस्तेमाल भी किया जाता है।
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