राज्य ब्यूरो, लखनऊ। प्रदेश में चल रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) अभियान में जिन मतदाताओं के न तो खुद और न ही उनके माता-पिता या दादा-दादी के नाम वर्ष 2003 की मतदाता सूची में मिलेंगे उनका ब्योरा एक अलग रजिस्टर में दर्ज किया जाएगा। चुनाव आयोग इन्हें नोटिस देने से पहले एक बार फिर वर्ष 2003 की मतदाता सूची में इनका या इनके परिवार का नाम खोजने की कोशिश करेगा। कम से कम नोटिस जारी हों इसके लिए चुनाव आयोग कवायद कर रहा है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
वर्ष 2027 के विधान सभा चुनाव से पहले मतदाता सूची को पूरी तरह अद्यतन और त्रुटिरहित बनाने के लिए चल रही एसआईआर की प्रक्रिया बेहद महत्वपूर्ण है। अभियान के तहत चुनाव आयोग ने मतदाताओं को तीन श्रेणियों में बांटकर सत्यापन प्रक्रिया अधिक स्पष्ट बना रहा है।
पहली श्रेणी में वे मतदाता शामिल किए गए हैं जिनके नाम वर्ष 2003 की मतदाता सूची में पहले से दर्ज हैं। इनका रिकार्ड उपलब्ध होने के कारण इनका सत्यापन सबसे सरल है। इन्हें कोई भी प्रमाण पत्र नहीं देना होगा।
दूसरी श्रेणी उन लोगों की है जिनके अपने नाम तो 2003 की सूची में नहीं हैं, लेकिन उनके माता-पिता या दादा-दादी के नाम सूची में मौजूद हैं। ऐसे मामलों में परिवार के पुराने रिकार्ड के आधार पर सत्यापन हो जाएगा। इस श्रेणी के भी मतदाताओं को कोई भी प्रमाण पत्र नहीं देना होगा।
तीसरी श्रेणी के मतदाता जिनके न तो स्वयं के नाम और न ही उनके माता-पिता या दादा-दादी के नाम 2003 की मतदाता सूची में मिलते हैं। चुनाव आयोग तीसरी श्रेणी में शामिल मतदाताओं को नोटिस जारी करने से पहले एक बार फिर वर्ष 2003 की सूची में उनके या उनके परिवार के नाम खोजने की कोशिश करेगा। आयोग का उद्देश्य किसी भी वास्तविक पात्र नागरिक का नाम सूची से न छूटने देना है। |