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Dussehra 2025: भारत की इन जगहों पर नहीं होता रावण दहन, कहीं करते हैं पूजा, तो कहीं मनाते हैं शोक

cy520520 2025-10-2 16:01:40 views 1105

  कहां नहीं जलाते रावण का पुतला? (Picture Courtesy: Freepik)





लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और भारत में बड़े ही हर्षोल्लास हिंदू त्योहार है। इस दिन पूरे देश में रावण के पुतले जलाकर बुराई की हार का जश्न मनाया जाता है और मेलों का आयोजन करके इस उत्सव (Dussehra 2025) को धूमधाम से मनाया जाता है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

बच्चों से लेकर बड़ों तक सभी मेले में रावण दहन देखने आते हैं और झूले झूलते हैं। हालांकि, हैरानी की बात यह है कि भारत के कुछ ऐसे भी समुदाय और गांव हैं जहां यह त्योहार नहीं मनाया जाता। जी हां, सुनकर आश्चर्य हो सकता है, लेकिन इसके पीछे कई सांस्कृतिक मान्यताएं भी हैं। आइए जानें इस बारे में।


मंदसौर (मध्य प्रदेश)

मंदसौर जिले के कुछ गांवों में दशहरा न मनाने की परंपरा सदियों पुरानी है। ऐसा माना जाता है कि यहां के लोग रावण की पत्नी मंदोदरी का मायका होने का दावा करते हैं। इसलिए, वे रावण को अपना दामाद मानते हैं और उसके पुतले को जलाना अपमानजनक समझते हैं। इसके बजाय, वे रावण की शिव भक्ति का सम्मान करते हैं और इस दिन शोक मनाते हैं।

  


बिसरख (उत्तर प्रदेश)

गौतम बुद्ध नगर जिले में स्थित बिसरख गांव के लोग खुद को रावण का वंशज मानते हैं। लोक कथाओं के अनुसार, यह गांव रावण का जन्मस्थान है। इसलिए, दशहरे के दिन यहां रावण का पुतला नहीं जलाया जाता, बल्कि उसकी पूजा की जाती है।
अमरावती (महाराष्ट्र)

अमरावती जिले के गढ़चौरी क्षेत्र के आदिवासी समुदाय के लोग रावण को अपना पूर्वज मानते हैं। उनकी मान्यता है कि रावण एक महान विद्वान और शिवभक्त थे। इसलिए, वे दशहरा नहीं मनाते और न ही रावण का पुतला जलाते हैं। उनके लिए यह दिन रावण के सम्मान और याद का है।


बैजनाथ (हिमाचल प्रदेश)

कांगड़ा जिले में स्थित बैजनाथ के लोगों की स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, रावण ने यहां शिव की तपस्या की थी और उन्हें प्रसन्न किया था। इस कारण से, यहां के लोग रावण के लिए श्रद्धा रखते हैं और दशहरे के दिन रावण दहन नहीं करते। वे रावण दहन को अशुभ मानते हैं।
काकिनाडा (आंध्र प्रदेश)

काकिनाडा शहर के कुछ हिस्सों में भी रावण के लिए श्रद्धा देखी जाती है। यहां कुछ समुदाय रावण को एक महान पंडित और योगी के रूप में याद करते हैं। इसलिए, वे दशहरे के उत्सव में भाग नहीं लेते और न ही रावण का पुतला जलाते हैं।



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