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Ayush University: एड़ी, गर्दन व कमर के दर्द का होगा दाह कर्म, मिलेगी राहत, स्वर्ण, रजत, लौह, ताम्र व पंचलौह की गरम शलाकाएं देंगी दर्द को चुनौती

Chikheang 2025-11-20 17:37:38 views 853

  

महायोगी गुरु गोरखनाथ आयुष विश्वविद्यालय। जागरण  



जागरण संवाददाता, गोरखपुर। महायोगी गुरु गोरखनाथ आयुष विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग ने अग्निकर्म (दाहकर्म) से दर्द का उपचार शुरू किया है। इस प्रक्रिया में स्वर्ण, रजत, लौह, ताम्र व पंचलौह की शलाकाओं को गरम कर दर्द वाले हिस्से को दग्ध किया जाएगा। इससे एड़ी, गर्दन व कमर समेत शरीर के किसी भी अंग के दर्द को आसानी से विदा कर दिया जाएगा। इस विधि से उपचार बुधवार को शुरू कर दिया गया। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

रोगी के एड़ी के दर्द (वात कंटक) का उपचार कर रहे आयुर्वेद चिकित्सक डा. रमाकांत द्विवेदी ने बताया कि यह प्रक्रिया पूरी तरह सुरक्षित व प्रभावी है। इससे किसी प्रकार के संक्रमण का खतरा भी नहीं रहता। वात कंटक, सर्वाइकल (मन्या स्तंभ) व कमर का दर्द (कटिग्रह) का आसान उपचार है अग्निकर्म। यह पंचकर्म के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण व प्रभावी थेरेपी है। इसके जरिये रोगियों को दर्द से मुक्त किया जाता है।

यह प्रक्रिया सुनने में पीड़ादायक लग सकती है लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। आयुर्वेद में जोड़ों के दर्द को \“वात प्रधान व्याधि\“ माना गया है, जिसमें सुबह के समय अधिक जकड़न और दर्द का अनुभव होता है। इसे ठीक करने के लिए पंचकर्म में अग्निकर्म विधि का उल्लेख है, जिसमें पांच लौह शलाकाओं का उपयोग कर दर्द वाले बिंदु पर गोलाकार रेखा या बिंदु जैसा दाहकर्म किया जाता है।

एड़ी के दर्द में लौह शलाका, नाजुक अंगों पर स्वर्ण शलाका, सर्वाइकल में रजत शलाका, कमर दर्द में पंच लौह शलाकाओं का उपयोग किया जाता है। ये शलाकाएं शरीर के अंगों के तापमान के अनुसार उपयोग की जाती हैं।

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आयुर्वेद चिकित्सक डा. लक्ष्मी अग्निहोत्री ने बताया कि लंबे समय तक कठोर जूते या हाईहील सैंडिल पहनने से एड़ी में दर्द की समस्या उत्पन्न होती है। इस स्थिति में रोगी को पैर में कांटे जैसी चुभन महसूस होती है। इस अवसर पर स्टाफ नर्स प्रिया त्रिपाठी भी उपस्थित रहीं।

अग्निकर्म व क्षारसूत्र की होगी पढ़ाई
आयुष विश्वविद्यालय में \“पीजी डिप्लोमा इन क्षारकर्म\“ का दो वर्षीय पाठ्यक्रम शुरू कर दिया गया है। इसके लिए आवेदन पत्र विश्वविद्यालय के वेबसाइट पर जारी कर दिया गया है। कुलपति डा. के रामचंद्र रेड्डी ने बताया कि इस कोर्स में मुख्य रूप से क्षार सूत्र विधि से पाइल्स, फिस्टुला, भगंदर जैसे रोगों का उपचार करने की पढ़ाई कराई जाएगी।

बीएमएस कर चुके लोग इसके लिए आवेदन कर सकते हैं। इसके अलावा अग्निकर्म डिप्लोमा के लिए भी आवेदन मांगे गए हैं। छह माह का डिप्लोमा कोर्स करने के बाद विद्यार्थी अग्निकर्म में प्रवीण हो जाएंगे।
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