कुमार गौरव, रांची । अबकी बार सक्रिय मानसून ने जहां झारखंड की भूमि को तर-बतर कर दिया तो दूसरी ओर इसका सीधा असर लगातार बढ़ रही ठंड के तौर पर भी देखा जा रहा है। जलवायु में पर्याप्त नमी बनी हुई और उत्तर पश्चिमी क्षेत्र से होकर बहने वाली हवा मौसम को शुष्क बना रही है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
इस कारण ठंड का असर इस वर्ष एक माह पूर्व ही शुरु हो गया है। साथ ही प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में सक्रिय ला-नीना स्थिति बनने के कारण भी इस वर्ष ठंड का असर बढ़ने की संभावना है, जो कि फरवरी 2026 के अंत तक बना रहेगा।
मार्च 2026 के दूसरे सप्ताह से ला-नीना के कमजोर पड़ने के बाद ठंड का असर कम होता जाएगा। बता दें कि ला-नीना प्रशांत महासागर के भूमध्यरेखीय क्षेत्र में एक प्राकृतिक घटना है, जो समुद्र की सतह के तापमान को सामान्य से अधिक ठंडा कर देती है।
ला-नीना के दौरान पूर्वी हवाएं मजबूत हो जाती हैं, जिससे गर्म पानी पश्चिम की ओर प्रवाहित होता है और पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में ठंडा पानी ऊपर आता है। इसका असर झारखंड के सभी जिलों में देखने को मिलेगा। दिसंबर माह में ला-नीना की संख्या में वृद्धि के संकेत हैं। जिस कारण पश्चिमी विक्षोभ के सक्रिय होने की पूरी संभावना है।
किस तरह होता है ला-नीना का असर
मौसम विज्ञानी अभिषेक आनंद बताते हैं कि मध्य और पूर्वी भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से 0.5 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक ठंडा हो जाता है। सामान्य से अधिक मजबूत पूर्वी हवाएं (ट्रेड विंड्स) प्रशांत महासागर के पश्चिमी हिस्से की ओर चलती हैं।
ये हवाएं प्रशांत महासागर के पश्चिमी भाग में गर्म पानी जमा करती हैं और पूर्वी भाग (दक्षिण अमेरिका की ओर) में गहरे ठंडे पानी को सतह पर ले आती हैं। महासागर की सतह के तापमान में इस बदलाव से वायुमंडलीय दबाव पैटर्न में भी बदलाव आता है।
उन्होंने बताया कि दिसंबर माह में ला-नीना का असर बढ़ेगा, जिस कारण उत्तर पश्चिमी क्षेत्र से ठंडी हवा बहनी शुरू हो जाएगी और तापमान गिरेगा।
पिछले पांच वर्षों के दौरान नवंबर माह के ठंड के आंकड़े को देखें तो पता चलता है कि सबसे अधिक ठंड 4 नवंबर 2022 को डाल्टनगंज में पड़ी थी। इस दिन न्यूनतम तापमान 7.5 डिग्री सेल्सियस रिकार्ड किया गया था।
वहीं, इस वर्ष रांची में 14 नवंबर को 9.4 डिग्री जबकि 16 नवंबर को 9.7 डिग्री सेल्सियस रिकार्ड किया गया है, जो कि पिछले पांच वर्षों के दौरान रांची का सबसे कम तापमान है।
जिले में अब तक नहीं हुआ कंबल वितरण
मौसम विज्ञान केंद्र रांची द्वारा जारी पूर्वानुमान में जहां ठंड का असर बढ़ने की संभावना जताई जा रही है तो दूसरी ओर जिला प्रशासन या किसी भी गैर सरकारी संगठनों के द्वारा अब तक जरुरतमंदों के बीच कंबल का वितरण नहीं किया गया है।
अल्बर्ट एक्का चौक के पास बड़ी संख्या में लोग प्लास्टिक ओढ़कर रतजगा करते दिखे तो कुछ कुछ दुकानदार निजी स्तर पर लकड़ी और इधर-उधर बिखरे प्लास्टिक कचरे को जलाकर ठंड से राहत पाते दिखे।
अब तक जिला प्रशासन के द्वारा न तो अलाव की व्यवस्था हुई है और न ही बेघरों के लिए कोई व्यवस्था, जिससे बेघरों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। हमारी टीम ने फिरायालाल चौक होते हुए स्टेशन रोड तक की पड़ताल की और पाया कि कहीं भी लोगों को कंबल का वितरण नहीं किया गया है।\
इनसे जानिए ठंड के सितम का हाल
सासाराम निवासी शिवपूजन फिरायालाल चौक स्थित दुर्गा मंदिर में अपनी सेवा देते हैं और वहीं दिनभर रहकर साफ सफाई और अन्य कार्यों में अपना योगदान भी देते हैं। उन्होंने कहा कि पिछले कई वर्षों से वह इसी जगह पर रह रहे हैं और पास के ही दुकान के बरामदे पर रात बिताते हैं। गर्मी का मौसम तो किसी तरह कट जाता है लेकिन वर्षा और ठंड के मौसम में परेशानी बढ़ जाती है।
सासाराम निवासी राजबली दास कहते हैं कि पिछले दस वर्षों से वह फिरायालाल चौक पर रह रहे हैं। रहने को मकान नहीं है और किसी दुकान के बरामदे पर ही रात काटते हैं। ठंड के मौसम में परेशानी अधिक बढ़ जाती है। इस वर्ष हमलोगों को कंबल नहीं मिला तो प्लास्टिक व बोरियां ओढ़कर रात काट रहे हैं। उन्होंने जिला प्रशासन से कंबल दिए जाने की मांग की है।
बच्चे और बुजुर्गों का विशेष रखें ख्याल
ठंड के मौसम में हार्ट और न्यूरो से संबंधित बीमारियों से जूझ रहे लोगों को विशेष सतर्क रहने की आवश्यकता हाेती है। रिम्स में ब्रेन स्ट्रोक से लेकर सर्दी, खांसी और जुकाम के मरीज बढ़ रहे हैं। लोगों को ठंडी हवा से भी सचेत रहने की आवश्यकता है।
रिम्स के न्यूरोसर्जन डा. विकास कुमार बताते हैं कि ब्रेन स्ट्रोक के जहां मरीज एक या दो आते थे, अब 3 से 4 आ रहे हैं। ऐसे में लोग ठंड में अपने सिर को अच्छी तरह से ढंककर रखें। छोटे छोटे बच्चों को भी पूरी तरह से गर्म कपड़े पहनाकर रखें।
मौसम विज्ञानी से सीधी बातचीत
सवाल : अबकी बार समय से पूर्व ठंड का असर शुरू हो गया, क्या कारण है?
मौसम विज्ञानी : ला-नीना का असर शुरू हो गया है और झारखंड में उत्तर पश्चिमी क्षेत्र से ठंडी हवाओं का झोंके का असर पूरे राज्य में देखने को मिलने लगा है।
सवाल : क्या पर्यावरण में बदलाव का असर भी कारक है?
मौसम विज्ञानी : बेशक, पर्यावरण विशेषकर प्रकृति के साथ हो रहे छेड़छाड़ ने मौसम में परिवर्तन लाया है। लोग स्वार्थवश प्लास्टिक को इस्तेमाल में लाते हैं जो कि प्रकृति के लिए घातक है। आमतौर पर लोग ठंड के मौसम में प्लास्टिक जलाने से भी गुरेज नहीं करते।
सवाल : प्लास्टिक जलाने का पर्यावरण पर कितना असर होता है?
मौसम विज्ञानी : प्लास्टिक जलाने के बाद उससे उत्पन्न घातक विषैली गैस पर्यावरण चक्र के लिए घातक हो जाती हैं।ठंड के मौसम में वाष्पीकरण की प्रक्रिया धीमी हो जाती है और विषैली गैस ऊपर जाने के बजाए एक ही जगह संघनित होकर रह जाती हैं जो हर लिहाज से खतरनाक है।
सवाल : पर्यावरण में संतुलन बनाए रखने के लिए क्या उपाय किए जाएं?
मौसम विज्ञानी : पर्यावरण में संतुलन बनाए रखने के लिए पौधारोपण के साथ साथ जलस्तर को भी सुधारने की प्रक्रिया अमल में लाई जाए ताकि रांची समेत आसपास के क्षेत्रों की मिट्टी में नमी बनी रहे। शहर का विस्तार हो और बड़े बड़े बनने वाले भवनों में वाटर हार्वेस्टिंग को सख्ती से अनुपालन कराया जाए।
सवाल : आमतौर पर देखा जाता है कि जल्दी ठंड का असर शुरू हो तो जल्द समाप्त भी हो जाता है?
मौसम विज्ञानी : इस बार ऐसा नहीं होगा। ला-नीना के असर के कारण दिसंबर से ठंड का जबरदस्त असर बढ़ेगा और फरवरी माह तक रहेगा। मार्च में असर घटेगा। |