महागठबंधन को राज्यसभा में लगेगा झटका
विकाश चन्द्र पाण्डेय, पटना। रणनीतिक खामियां राजद को अभी आगे भी टीस देती रहेंगी, विशेषकर पर्दे के पीछे के उन रणनीतिकारों को, जिन पर करारी पराजय के साथ पारिवारिक विघटन का भी लांछन लग रहा है। अगर यही परिस्थिति रही और संख्या बल भी, तो बिहार विधानसभा के अगले चुनाव तक राज्यसभा में राजद का प्रतिनिधित्व शून्य हो जाएगा। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
पार्टी के तीन दशक के इतिहास में ऐसा पहली बार होगा, जो तेजस्वी यादव की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा के लिए तगड़ा झटका होगा। तेजस्वी सहित इस बार राजद के मात्र 25 विधायक हैं।
यह संख्या विधान परिषद में भी राजद की संख्यात्मक उपस्थिति कम कर देगी, जहां रिक्तियों का क्रम शुरू ही होने वाला है। अगर विधानसभा का अगला चुनाव निर्धारित समय पर हुआ, तो पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी भी इस चपेट में आ जाएंगी।
विधान परिषद में अभी राजद के 16 सदस्य हैं। उनमें नौ विधानसभा कोटे से हैं। उनमें से मो. फारूक का कार्यकाल जून, 2026 में समाप्त हो रहा। उसी के आगे-पीछे डॉ. सुनील कुमार सिंह भी सेवानिवृत्त होंगे। मो. सोहैब, मुन्नी देवी और अशोक कुमार पांडेय जुलाई, 2028 में। राबड़ी देवी, अब्दुल बारी सिद्दीकी, डॉ. उर्मिला ठाकुर और सैयद फैसल अली का कार्यकाल मई, 2030 तक है।
ऐसे में विधानसभा के अगले चुनाव से पहले राजद को नुकसान तय है। यह नुकसान समग्रता में महागठबंधन को होगा, क्योंकि कांग्रेस के डॉ. समीर कुमार सिंह और भाकपा-माले की शशि यादव की सेवानिवृत्ति से होने वाली रिक्ति को भरने के लिए सभी घटक दलों को मिलाकर भी संख्या पूरी नहीं होने वाली।
दरअसल, विधानसभा में संख्या बल के अनुपात में ही उच्च सदन में प्रतिनिधित्व मिलता है। बिहार से राज्यसभा में 16 सदस्य हैं। उनमें राजद की संख्या अभी पांच की है। उन पांच में से दो (प्रेमचंद गुप्ता, एडी सिंह) का कार्यकाल अप्रैल, 2026 में समाप्त हो रहा।
फैयाज अहमद का जुलाई, 2028 और शेष दो (प्रो. मनोज झा, संजय यादव) की कार्यावधि 2030 के अप्रैल में पूरी हो जाएगी। उन्हीं के साथ डॉ. अखिलेश प्रसाद सिंह भी सेवानिवृत्त होंगे, जो बिहार से कांग्रेस के एकमात्र सदस्य हैं। इस तरह महागठबंधन को अपनी सभी छह सीटें गंवानी पड़ सकती हैं।
दूसरों से सहयोग की गुंजाइश भी कम:
विधानसभा में एनडीए और महागठबंधन के इतर छह विधायक (पांच एआईएमआईएम और एक बसपा) हैं। समर्थन हेतु महागठबंधन आशान्वित हो सकता है, लेकिन राजनीतिक परिस्थितियां वहां भी आड़े आएंगी। बसपा को रामगढ़ में जीत सतीश सिंह यादव ने दिलाई है। रामगढ़ में राजद प्रत्याशी के रूप में जगदानंद सिंह के पुत्र पराजित हुए हैं। बसपा समर्थन करे, तो हितों का टकराव होगा।
वैसे भी बिहार में बसपा के विधायकों के सत्तारूढ़ गठबंधन के साथ चले जाने का रिकॉर्ड रहा है। एआईएमआईएम बिना शर्त समर्थन देने से रहा, क्योंकि पिछली बार उसके चार विधायकों को राजद तोड़ चुका है।
अपेक्षा के बावजूद राजद ने उसे महागठबंधन का हिस्सा भी नहीं बनाया, जबकि एआईएमआईएम उन्हीं पांच सीटों पर विजयी रहा है, जहां उसे 2020 में जीत मिली थी। स्वाभाविक है कि पूर्ववर्तियों का हश्र उसके विधायकों को सचेत करे।
राज्यसभा: बिहार से अगले वर्ष पांच रिक्तियां होंगी। जदयू-राजद से दो-दो, राष्ट्रीय लोक मोर्चा से एक। एक सीट के लिए 42 विधायकों का समर्थन चाहिए। महागठबंधन के पास अभी मात्र 35 विधायक हैं। एक भी सीट नहीं मिलनी। यह क्रम सभी सीटों को गंवाने तक चलेगा।
विधान परिषद: अगले वर्ष नौ सीटेंं रिक्त हो रहीं। जदयू की चार, भाजपा-राजद की दो-दो और कांग्रेस की एक। इस तरह महागठबंधन की तीन सीटें बनती हैं। संख्या बल से एक सीट पर वापसी संभव है। चार विधान पार्षद इस बार विधायक चुने गए हैं। उनमें एक सीट स्थानीय प्राधिकार कोटे की है।
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