गुमो गांव की परंपरा: यहां बेटियां पूजा में अपने मायके जरूर लौटती हैं।(फाइल फोटो)
संवाद सहयोगी, झुमरीतिलैया। कोडरमा जिले के झुमरीतिलैया के गुमो गांव में दुर्गा पूजा सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि 200 वर्षों से चली आ रही एक अनोखी परंपरा है।
इस परंपरा को निभाने के लिए विवाहित बेटियां हर साल नवरात्रि में अपने पैतृक गांव लौटती हैं। शादी के बाद ससुराल में बसने के बावजूद वे सैकड़ों किलोमीटर का सफर तय कर दुर्गा पूजा और पारंपरिक रीति-रिवाजों में शामिल होती हैं।
यह पूजा ब्रिटिश काल में परंपरा पदमा राज परिवार (रामगढ़ राजा) द्वारा शुरू की गई थी। पहले यह आयोजन गुमो राजा गढ़ में होती थी, लेकिन अब गांव के दुर्गा मंदिर में संपन्न होती है।
जब देश में जमींदारी प्रथा खत्म हुई, तो पदमा राजा परिवार ने पूजा की जिम्मेदारी गांव के सतघरवा परिवार को सौंप दी, जो आज भी पूरे श्रद्धा भाव से इसका निर्वहन कर रहा है।
नवरात्र के दौरान यहां कलश स्थापना से लेकर नवमी तक विशेष अनुष्ठान होते हैं। सबसे खास परंपरा है बलिदान की, जिसमें नवमी के दिन गांव के अलावा दूर-दराज से आए लोग भी मन्नत पूरी होने पर बकरे की बलि देते हैं।new-delhi-city-general,New Delhi City news,Signature View Apartment,apartment eviction,MCD deadline,Delhi High Court order,Mukherjee Nagar,building demolition,DDA,RWA,new-delhi-city-good--news,New Delhi City news, Signature View Apartment, DDA rent payment, Delhi Development Authority, Apartment residents rent, Flat evacuation rent, HIG flat rent, MIG flat rent, Delhi High Court order, Signature View Apartment issue,,Delhi news,Delhi news
इस दिन करीब 1000 से अधिक बकरों की बलि दी जाती है। जिसे लेकर लोगों में विशेष आस्था है। परंपरा के अनुसार पहली बलि राजा गढ़ में दी जाती है, फिर दुर्गामंडप में।
गांव के पुरोहित दशरथ पांडेय के अनुसार, यहां गुमानी देवता का वास है, जो गांव की रक्षा करते हैं। यहां की एक मान्यता यह भी है कि गांव के बेटे-बेटियों की संतान का मुंडन इसी मंदिर में कराना आवश्यक है।
खासकर बेटियां, जो अब दूसरे राज्य या शहरों में रहती हैं, वे भी अपने बच्चों का मुंडन कराने गांव लौटती हैं। मुंडन से पहले बकरे की बलि देना अनिवार्य माना जाता है, जिससे बच्चे को उत्तम स्वास्थ्य औ भविष्य का आशीर्वाद मिलता है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
इस वर्ष भी कई विवाहित महिलाएं अपने बच्चों के साथ गांव लौटी हैं। झारखंड ही नहीं, बिहार, बंगाल, महाराष्ट्र और दिल्ली जैसे राज्यों से भी दर्जनों बेटियां अपने बच्चों का मुंडन कराने गुमो पहुंची हैं।
यह परंपरा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक जुड़ाव को भी दर्शाती है।
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