Shani Chalisa: शनिदेव को कैसे प्रसन्न करें?
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में शनिदेव को कर्मफल दाता कहा जाता है। शनिदेव की पूजा करने से व्यक्ति को जीवन में सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही करियर और कारोबार में व्याप्त परेशानी दूर हो जाती है। इस दिन व्यक्ति आर्थिक स्थिति के अनुसार अन्न, वस्त्र और धन का दान करते हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
ज्योतिषियों की मानें तो शनिदेव कर्म के अनुसार फल देते हैं। इसके लिए व्यक्ति को सदैव अच्छे कर्म करने चाहिए। बुरे कर्म करने वालों को शनिदेव दंडित करते हैं। शनिदेव की कृपा बरसने से व्यक्ति अपने जीवन में खूब तरक्की करता है।
अगर आप भी शनिदेव की कृपा पाना चाहते हैं, तो शनिवार के दिन भक्ति भाव से न्याय के देवता की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय शनि चालीसा का पाठ करें। वहीं, पूजा के बाद काले चीजों का दान करें।
शनि चालीसा
दोहा
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥
चौपाई
जयति जयति शनिदेव दयाला ।
करत सदा भक्तन प्रतिपाला।।
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै ।
माथे रतन मुकुट छवि छाजै।।
परम विशाल मनोहर भाला ।
टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला।।
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके ।
हिये माल मुक्तन मणि दमके।।
कर में गदा त्रिशूल कुठारा ।
पल बिच करैं आरिहिं संहारा।।
पिंगल, कृष्णों, छाया, नन्दन ।
यम, कोणस्थ, रौद्र, दुख भंजन।।
सौरी, मन्द, शनि, दश नामा ।
भानु पुत्र पूजहिं सब कामा।।
जा पर प्रभु प्रसन्न है जाहीं ।
रंकहुं राव करैंक्षण माहीं।।
पर्वतहू तृण होई निहारत ।
तृण हू को पर्वत करि डारत।।
राज मिलत बन रामहिं दीन्हो ।
कैकेइहुं की मति हरि लीन्हों।।
बनहूं में मृग कपट दिखाई ।
मातु जानकी गई चतुराई।।
लखनहिं शक्ति विकल करि डारा ।
मचिगा दल में हाहाकारा।।
रावण की गति-मति बौराई ।
रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई।।
दियो कीट करि कंचन लंका ।
बजि बजरंग बीर की डंका।।
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा ।
चित्र मयूर निगलि गै हारा।।
हार नौलाखा लाग्यो चोरी ।
हाथ पैर डरवायो तोरी।।
भारी दशा निकृष्ट दिखायो ।
तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो।।
विनय राग दीपक महं कीन्हों ।
तब प्रसन्न प्रभु है सुख दीन्हों।।
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी ।
आपहुं भरे डोम घर पानी।।
तैसे नल परदशा सिरानी ।
भूंजी-मीन कूद गई पानी।।
श्री शंकरहि गहयो जब जाई ।
पार्वती को सती कराई।।
तनिक विलोकत ही करि रीसा ।
नभ उडि़ गयो गौरिसुत सीसा।।
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी ।
बची द्रौपदी होति उघारी।।
कौरव के भी गति मति मारयो ।
युद्घ महाभारत करि डारयो।।
रवि कहं मुख महं धरि तत्काला ।
लेकर कूदि परयो पाताला।।
शेष देव-लखि विनती लाई ।
रवि को मुख ते दियो छुड़ई।।
वाहन प्रभु के सात सुजाना ।
जग दिग्ज गर्दभ मृग स्वाना।।
जम्बुक सिंह आदि नखधारी ।
सो फल जज्योतिष कहत पुकारी।।
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं ।
हय ते सुख सम्पत्ति उपजावैं।।
गर्दभ हानि करै बहु काजा ।
गर्दभ सिद्घ कर राज समाजा।।
जम्बुक बुद्घि नष्ट कर डारै ।
मृग दे कष्ट प्रण संहारै।।
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी ।
चोरी आदि होय डर भारी।।
तैसहि चारि चरण यह नामा ।
स्वर्ण लौह चांजी अरु तामा।।
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं ।
धन जन सम्पत्ति नष्ट करावै।।
समता ताम्र रजत शुभकारी ।
स्वर्ण सर्व सुख मंगल कारी।।
जो यह शनि चरित्र नित गावै ।
कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै।।
अदभुत नाथ दिखावैं लीला ।
करैं शत्रु के नशि बलि ढीला।।
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई ।
विधिवत शनि ग्रह शांति कराई।।
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत ।
दीप दान दै बहु सुख पावत।।
कहत रामसुन्दर प्रभु दासा ।
शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा।।
दोहा
पाठ शनिश्चर देव को, की हों विमल तैयार ।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार।।
शनि देव की आरती
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूर्य पुत्र प्रभु छाया महतारी॥
जय जय श्री शनि देव।
श्याम अंग वक्र-दृष्टि चतुर्भुजा धारी।
नी लाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥
जय जय श्री शनि देव।
क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥
जय जय श्री शनि देव।
मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥
जय जय श्री शनि देव।
देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी॥
जय जय श्री शनि देव भक्तन हितकारी।।
जय जय श्री शनि देव।
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