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Delhi Blast: एनसीआर में 200 किलो अमोनियम नाइट्रेट अब भी लापता, जांच एजेंसियां तलाश में जुटीं

deltin33 2025-11-14 23:37:01 views 652
  



अनूप कुमार सिंह, नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में 200 किलो अमोनियम नाइट्रेट अब भी मौजूद है। जांच एजेंसियां इसकी तलाश कर रही हैं। दिल्ली के लाल किले के पास हुए आतंकी हमले के बाद शेष बची अमोनियम नाइट्रेट की बरामदबी के लिए ताबड़तोड़ कार्रवाई की जा रही है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

ब्लास्ट वेव के आधार पर हुई फोरेंसिक और ब्लास्ट विशेषज्ञों की संयुक्त जांच में विशेषज्ञों ने पाया कि आतंकी डाॅ. उमर नबी ने लाल किला से देश को दहलाने के लिए 80 किलो के करीब अमोनियम नाइट्रेट का इस्तेमाल किया था। अब उनकी बड़ी चिंता फरीदाबाद से 3200 किलो अमोनियम नाइट्रेट में से 2,923 किलो जब्त होने के बाद बचे 200 किलो विस्फोटक की तलाश करने की है।

दरअसल, फोरेंसिक जांच ने वजन और रासायनिक पैटर्न से यह प्रमाणित कर दिया है कि कार में रखा गया 80 किलो एएनएफओ मिश्रण इसी गायब सामग्री का हिस्सा था। लाल किला विस्फोट के बाद बचा यह ‘गायब हिस्सा’ किस आतंकी स्लीपर सेल के पास कहां है, यह जानने के लिए ताबड़तोड़ कार्रवाई की जा रही है।

सूत्रों के अनुसार, फोरेंसिक और ब्लास्ट विशेषज्ञों ने संयुक्त जांच में लाल किला के पास अंजाम दिए गए आतंकी विस्फोट में विस्फोटक की मात्रा और उसमें ट्रिगर के तौर पर इस्तेमाल बूस्टर की मात्रा से यह निष्कर्ष निकाला है। जांच में ब्लास्ट वेव 75 किलो पेंटाएरिथ्रिटाल टेट्रानाइट्रेट (पीईटीएन) विस्फोट के बराबर आंकी गई, जो इस जांच का मुख्य बिंदु है।

इस संबंध में बताया जा रहा है कि आतंकी डाॅ. उमर नबी की कार में विस्फोटक 80 किलो किलो अमोनियम नाइट्रेट फ्यूल ऑयल (एएनएफओ) को ट्रंक और रियर (पीछे) सीट में बराबर फैलाकर रखा गया था। हाई-ग्रेड बूस्टर से डेटोनेट किया गया। जो बताता है कि ऑपरेशन में शामिल आतंकी तकनीकी रूप से सक्षम थे क्योंकि जरा सी लापरवाही अर्थ का अनर्थ कर सकती थी।

इसकी पुष्टि ब्लास्ट वेव से बने 1.12 मीटर के क्रेटर, वाहन के मेटल-टुकड़ों की दिशा और नमूनों की रासायनिक जांच से साफ हुआ कि ‘इंप्रोवाइज्ड एस्प्लोसिव डिवाइस’ (आइईडी) को ‘पूरी तरह पेशेवर तरीके से असेंबल’ होने से भी होती है। सूत्रों के अनुसार, रिपोर्ट में साफ लिखा है कि विस्फोटक 80 एएनएफओ आधारित आइईडी था, जिसमें हाई-ग्रेड बूस्टर लगाया गया था। विशेषज्ञ बताते हैं कि 95:5 अनुपात में तैयार एएनएफओ साधारण नहीं होता।

यह ‘तेज और स्थिर डिटोनेशन’ देने के लिए बनाया जाता है और हाई-ग्रेड बूस्टर तभी इस्तेमाल होते हैं, जब इन्हें इस्तेमाल कराने वाला समूह या व्यक्ति तकनीकी दक्षता और उच्च-ग्रेड संसाधन, दोनों तक पहुंच रखता हो और प्रयोग की समझ रखता है।

सूत्र बताते हैं कि इन जानकारियों के सामने आने के बाद जांच अब तीन प्रमुख दिशाओं में आगे बढ़ रही है, विस्फोटक की आपूर्ति श्रृंखला कौन चला रहा है, यह किस बड़े नेटवर्क का हिस्सा हैं और जीएसएम आधारित रिमोट ट्रिगर किसी के निर्देश पर सक्रिय किया गया या यह अचानक किसी दुर्घटना के कारण हुआ।

बताया कि मामले की जांच सेंट्रल फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (सीएफएसएल), एनआइए फोरेंसिक विंग और डीआरडीओ ब्लास्ट-मैटेरियल यूनिट मुख्य रूप से यह जांच कर रही हैं। जांच एनआइए के नेतृत्व में हो रही है।

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