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Vijayadashami 2025: कब और क्यों मनाया जाता है दशहरा? यहां पढ़ें धार्मिक महत्व

deltin33 2025-9-29 21:22:31 views 1263

  Vijayadashami 2025 Date: दशहरा का धार्मिक महत्व





आचार्य नारायण दास (आध्यात्मिक गुरु, मायाकुंड, ऋषिकेश)। विजयदशमी विजयगाथा का शाश्वत महापर्व है। यह केवल अधर्म पर धर्म की विजय का द्योतक नहीं, अपितु मानव जीवन की आत्मयात्रा को दैदीप्यमान करने वाल प्रमुख स्तंभ है।

यह महापर्व हमें स्मरण कराता है कि जब मनुष्य धर्म से विमुख होकर इंद्रियों के मोहपाश में बंध जाता है, तब उसका रूप रावण जैसा हो जाता है, परंतु जब वही इंद्रियां संयम और सदाचार के अधीन हो जाती हैं, तब मनुष्य दशरथ बनकर अपने हृदय-आंगन में ज्ञानरूपी श्रीराम, वैराग्यरूपी लक्ष्मण, विवेकरूपी भरत और विचाररूपी शत्रुघ्न को प्रतिष्ठित करता है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें



श्रीराम-रावण युद्ध मानव-चेतना में घटित होने वाला शाश्वत द्वंद्व है, सत्य और असत्य का, धर्म और अधर्म का तथा प्रकाश और अंधकार का। श्रीराम के धनुष की टंकार का उद्देश्य केवल रावण की लंका को ध्वस्त करना नहीं था, अपितु यह प्राणीमात्र के अंतःकरण में विद्यमान अहंकार, क्रोध, लोभ और अज्ञान के दुर्गों को चूर-चूर करने का दिव्य आह्वान था।

विजयादशमी आत्मशुद्धि का महायज्ञ है। यह पर्व हमें आत्मावलोकन का अवसर प्रदान करता है-दशानन रावण के दस मुख काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह, मत्सर आदि विकारों के प्रतीक हैं, जो हमारे ही भीतर छिपे दानव हैं। इन विकारों के दहन का संकल्प ही दशहरे का वास्तविक मर्म है।



श्रीमद्भगवद्गीता का अमर उद्घोष यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति…... हमें यह बोध कराता है कि जब भी अधर्म अपनी चरम सीमा को प्राप्त होता है, तब दिव्य शक्ति का अवतरण अनिवार्य है। किंतु यह शक्ति बाहर से नहीं आती, वह हमारे अंतःकरण के आत्मबल और विवेक से ही समुद्भूत होती है।

यही कारण है कि नवरात्र की शक्ति-साधना के पश्चात विजयदशमी का समुत्सव संपन्न होता है। छत्रपति शिवाजी महाराज के विजय-प्रस्थान का प्रेरक प्रसंग इस दिन की गौरवगाथा को और भी दिव्य बना देता है। यह पर्व हमें स्मरण कराता है कि धर्म की प्रतिष्ठा हेतु केवल आध्यात्मिक साधना ही नहीं, वरन शौर्य, पराक्रम और अटल संकल्प भी अनिवार्य हैं।



ऋग्वेद का वाणी-विभूषित सूक्त संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम् विजयदशमी की सामूहिक चेतना का अमर संदेश है। रामलीला के मंच पर जब समाज का प्रत्येक वर्ग एकजुट होकर धर्म की विजय का उत्सव मनाता है, तब रावण का पुतला केवल अधर्म का प्रतीक नहीं रहता, वरन यह घोषणा बन जाता है कि असत्य कितना ही भौतिकरूप से बलशाली क्यों न हो, उसका अंत सुनिश्चित है।

विजयदशमी आत्म-अरण्य में बसे रावण का दहन करने का महाव्रत है। यह हमें प्रेरणा देता है कि हम अहंकार और लोभ के मार्ग को त्यागकर सत्य, धर्म और नैतिकता का पथ अपनाएं। यही आत्मविजय धर्म की वास्तविक विजय है।



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