बिहार चुनाव का निर्णायक दौर, अब जनता के हाथ सत्ता की चाबी
सुनील राज, पटना। बिहार विधानसभा चुनाव में प्रचार का दौर थम चुका है। अब बारी जनता की है, जो मंगलवार को अपने घरों से निकलकर 20 जिलों की 122 विधानसभा सीटों पर अपने पसंदीदा प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करेगी। चुनाव प्रचार के दौरान हर दल ने जनता को साधने की पूरी कोशिश की, लेकिन अब असली परीक्षा मतदाता की समझदारी और उम्मीदों की होगी। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में बिहार के लोगों और बिहार की राजनीति ने कई नैरेटिव देखे। एक ओर डबल इंजन सरकार के काम, बिहार के भविष्य के उज्ज्वल बनाने के वादे के साथ घुसपैठ, जंगलराज, गोली-कनपट्टी जनता के बीच बड़ा मुद्दा बनकर उभरे तो वहीं रोजगार और कमाई की गूंज भी खूब सुनाई पड़ी।
एनडीए ने जहां विकास और स्थिरता का एजेंडा आगे रखा, वहीं महागठबंधन ने बेरोजगारी, महंगाई और शिक्षा जैसे मुद्दों पर सत्ताधारी दल को घेरा। इसके बीच ही कई सीटों पर स्थानीय समीकरण, जातीय संतुलन और नए चेहरों की एंट्री ने मुकाबले को और भी दिलचस्प बनाया।
इस चुनाव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे से लेकर अमित शाह, राजनाथ सिंह और नीतीश कुमार से लेकर तेजस्वी यादव, प्रियंका गांधी वाड्रा और असदुद्दीन ओवैसी जैसे स्टार प्रचारकों ने मैदान में अपनी पूरी ताकत दिखाई। इन नेताओं की चुनावी मौजूदगी में आरोप-प्रत्यारोप, वादे, सपने और नारों से बिहार की सियासी फिजा गरमाई रही।
परंतु अब जबकि चुनाव प्रचार थम चुका है और अब बिहार के 20 जिलों की 122 विधानसभा क्षेत्रों में मात्र मतदान का काम शेष है तो ऐसे में जनता-मतदाताओं के सामने सवाल यह है कि किसकी बातों पर भरोसा किया जाए और किसकी नीयत पर सवाल खड़े किए जाएं।
विश्लेषक भी मानते हैं कि मतदाता जब मंगलवार को वोट डालेंगे तो उनके सामने सिर्फ उम्मीदवार नहीं, बल्कि बिहार के भविष्य का बटन होगा। हर बार की तरह इस बार भी मतदाता ईवीएम पर पसंदीदा उम्मीदवार के नाम के सामने की बटन दबाने के पहले तय करेगा कि उसकी प्राथमिकता क्या है? नौकरी, रोजगार, शिक्षा, महंगाई, किसानों की कमाई, आम आदमी की आमदनी राज्य का विकास या फिर कुछ और।
कुल मिलाकर अब फैसला अब मतदाताओं के हाथ है। इसके बाद 14 को जब मतपेटियां खुलेंगी, तो यह स्पष्ट होगा कि बिहार की जनता ने किस नैरेटिव पर मुहर लगाई विकास की या बदलाव की। फिलहाल, हर सियासी गलियारे में सिर्फ एक ही सवाल गूंज रहा है कौन खरा उतरेगा मतदाता की कसौटी पर?
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