सीईटी रैकेट का पर्दाफाश, भर्ती प्रक्रिया को बदनाम करने की थी साजिश। फाइल फोटो
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। हरियाणा में नौकरी की तलाश कर रहे युवाओं से पैसे ऐंठने वाले एक बड़े रैकेट का खुलासा हुआ है। आरोप है कि यह पूरा खेल हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग (एचएसएससी) द्वारा आयोजित सामान्य पात्रता परीक्षा (सीईटी) के नाम पर चल रहा था। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
खास बात यह है कि इस कथित रैकेट में हाई कोर्ट का एक कर्मचारी भी शामिल पाया गया, जिस पर अदालत में लंबित मुकदमों को प्रभावित करने के लिए पैसे लेने का आरोप लगाया गया है। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच, जिसमें जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्रा और जस्टिस रोहित कपूर शामिल थे, ने इस मामले को बेहद गंभीर मानते हुए सभी दस्तावेजों को सीलबंद लिफाफे में रजिस्ट्रार जनरल को सौंपने के आदेश दिए हैं ताकि उचित जांच और कार्रवाई की जा सके।
ऐसे हुआ खुलासा यह मामला तब सामने आया जब सीईटी में अपनाई गई सामान्यीकरण (नार्मलाइजेशन) प्रक्रिया को चुनौती दी गई। 2 सितम्बर को, एकल पीठ ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी थी कि परीक्षा का परिणाम अभी घोषित ही नहीं हुआ है।
इसके बाद, असंतुष्ट याचिकाकर्ताओं ने वकील अंकुर सिधर के माध्यम से डिवीजन बेंच में अपील दायर की। अपील में एचएसएससी के चेयरमैन पर गंभीर आरोप लगाते हुए पवन कुमार को प्रोफार्मा प्रतिवादी बनाया गया।
सुनवाई के दौरान अदालत के सामने यह खुलासा हुआ कि प्रोफार्मा प्रतिवादी, जो हाई कोर्ट का ही कर्मचारी है, सीईटी अभ्यर्थियों से पैसे लेकर उन्हें अदालत में सफलता का भरोसा दिला रहा था। कोर्ट के समक्ष राज्य सरकार ने कुछ इंटरनेट मीडिया पोस्ट और उनके स्क्रीनशाट्स भी प्रस्तुत किए। new-delhi-city-general,New Delhi City news,firecracker businesses Delhi,Supreme Court firecracker order,green firecrackers manufacturing,firecracker sale ban Delhi,Fireworks Manufacturers Association,Delhi air pollution,firecracker industry India,Diwali firecrackers Delhi,New Delhi City,Delhi news
इससे पता चला कि आरोपित ने बड़ी संख्या में अभ्यर्थियों से क्यूआर कोड के माध्यम से पैसे एकत्र किए। इस पर डिवीजन बेंच ने स्पष्ट किया कि यह कोर्ट उन तथ्यों को नजरअंदाज नहीं कर सकता जो हमारे सामने लाए गए हैं। यह एक गंभीर मामला है और अदालत इस पर अपनी आंखें बंद नहीं कर सकती।
हरियाणा के अतिरिक्त महाधिवक्ता संजीव कौशिक ने अदालत को बताया कि यह पूरा घटनाक्रम एक बड़े षड्यंत्र का हिस्सा है। इसका उद्देश्य न केवल उम्मीदवारों से पैसे वसूलना था, बल्कि भर्ती प्रक्रिया को बदनाम करना भी था।
उन्होंने कहा कि आरोपित हाई कोर्ट कर्मचारी कोर्ट के साथ अपने संबंध का दावा कर सामान्यीकरण प्रक्रिया से संबंधित याचिका में अभ्यर्थियों की जीत सुनिश्चित करने का दावा करता था। इसके लिए उनसे आर्थिक लाभ लिया गया।
इस पर डिवीजन बेंच ने अपील को खारिज करते हुए यह माना कि जब कोई परीक्षा अलग-अलग पारियों में आयोजित की जाती है, तो विभिन्न प्रश्न पत्रों के कारण उम्मीदवारों के बीच समानता सुनिश्चित करने के लिए सामान्यीकरण की प्रक्रिया एक वैध और स्वीकार्य विधि है।
कोर्ट ने निर्देश दिया कि राज्य सरकार द्वारा प्रस्तुत सभी सामग्री को सीलबंद लिफाफे में रजिस्ट्रार जनरल को सौंपा जाए, ताकि इस मामले की पारदर्शी जांच और उचित कानूनी कार्रवाई हो सके।
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