जागरण संवाददाता, भुवनेश्वर। ओडिशा के लोगों ने आज कार्तिक पूर्णिमा का पर्व बड़े ही श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया।इस अवसर पर सुबह-सुबह राज्यभर के विभिन्न जलाशयों में ‘बोइता बंदाण’ अनुष्ठान किया गया। लोगों ने समुद्र, नदियों और तालाबों में पान, सुपारी, फूल और दीयों से सजे हाथों से बने छोटे-छोटे नौकाओं को जल में प्रवाहित किया। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
प्रदेश भर में मौजूद नदी व जलाशयों के किनारे मानो आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा। ऐसे में भीड़ को देखते हुए प्रशासन ने सुरक्षा के लिए तमाम नदी घाट व जलाशयों के पास पुलिस बल तैनात किया था। केवल जलाशय ही नहीं, बल्कि राज्यभर के मंदिरों में भी श्रद्धालुओं की भीड़ को ध्यान में रखते हुए विशेष व्यवस्थाएं की गई थी।
छोटी नौकाएं बहाकर पूजा-अर्चना
लोगों ने सुबह पारंपरिक ‘अका मा बोई’ गीत गाते हुए नावों को जल में प्रवाहित किया। यह गीत नाविकों की समुद्री यात्रा के दौरान उनकी सुरक्षा के लिए प्रार्थना के रूप में गाया जाता है, ताकि पवित्र कार्तिक माह में अर्जित पुण्य से उन्हें आशीर्वाद प्राप्त हो। इस बोइता बंदाण उत्सव के साथ कार्तिक माह का समापन होता है।
राजधानी भुवनेश्वर में लाखों की संख्या में श्रद्धालु बोइत बंदाण उत्सव में भाग लेने के लिए बिंदुसागर सरोवर, कुआखाई नदी, हाईटेक, दया नदी के साथ विभिन्न तालाहों में एकत्र होकर जलाशयों में नाव बहाई।इस दौरान पूरी रात आतिशबाजी एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम से पूरा माहौल उत्सवमय बन गया।
इस बीच, कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लाखों श्रद्धालु पवित्र नगरी पुरी पहुंचे। वे भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा के प्रसिद्ध ‘सोनावेश’ या ‘राजाधिराज वेश’ के दर्शन किए। आधीरात से ही समुद्र तट (महोदधि) और पंचतीर्थ तालाबों में भारी भीड़ देखी गई, जहां श्रद्धालुओं ने कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर छोटी-छोटी नावें जल में प्रवाहित किया।
जलाशयों में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़
ऐतिहासिक नरेंद्र पोखरी में बुधवार को कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर पारंपरिक बोइत बंदाण (नौका उत्सव) मनाने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु एकत्र हुए। इस पवित्र अवसर पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ ने प्रार्थनाएं अर्पित कीं और सदियों पुरानी परंपरा के तहत छोटी-छोटी नौकाएं जल में प्रवाहित कीं, जो ओडिशा की समृद्ध समुद्री विरासत का प्रतीक है।
गौरतलब है कि पुरी, कटक या भुवनेश्वर ही नहीं बल्कि ओडिशा भर में उल्लासपूर्वक मनाया जाने वाला पारंपरिक बोइत बंदाण उत्सव ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन श्रद्धालु नदियों, तालाबों और समुद्र तटों के पास एकत्र होकर केले के तने, कागज और थर्माकोल से बनी छोटी-छोटी नौकाएं जल में प्रवाहित करते हैं।
यह परंपरा ओडिशा के प्राचीन समुद्री व्यापारिक संबंधों की याद दिलाती है, जो कभी जावा, सुमात्रा और बाली जैसे दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों तक फैले थे। यह उत्सव रंगों और भक्ति से सराबोर वातावरण बनाता है, जब श्रद्धालु भजन गाते हुए जल में दीयों से सजी छोटी नौकाएं प्रवाहित करते हैं, जिससे एक अद्भुत दृश्य उत्पन्न होता है।
समुद्री अतीत को किया याद
यह आयोजन केवल धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि ओडिशा के गौरवशाली समुद्री अतीत और प्राचीन ओडिया नाविकों और व्यापारियों की परंपरा को भी श्रद्धांजलि है। कार्तिक पूर्णिमा, जो कार्तिक माह की पूर्णिमा को मनाई जाती है, हिंदू पंचांग के सबसे पवित्र दिनों में से एक मानी जाती है।
इस दिन भगवान कार्तिकेय, जो भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र हैं, का जन्म भी हुआ था।पूरे भारत में यह दिन धार्मिक श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है लोग दीप जलाते हैं, मंदिर सजाते हैं और धार्मिक मेलों का आयोजन करते हैं।
ओडिशा में कार्तिक पूर्णिमा के साथ बोइत बंदाण का उत्सव मनाया जाता है, जो राज्य की समृद्ध समुद्री विरासत और गहरी सांस्कृतिक परंपराओं को और सशक्त करता है। |