पेड़ों की डालें रोकती हैं स्ट्रीट लाइटों की रोशनी, छंटाई को नियम आता है आड़े, दुर्घटना की आशंका
अनूप कुमार सिंह, नई दिल्ली। दिल्ली की सड़कें रात होते ही असुरक्षित हो जाती हैं। काण, सिर्फ खराब स्ट्रीट लाइट नहीं हैं, बल्कि जहां लाइट ठीक से जल भी रही हैं, वहां पेड़ों की फैली हुई डालियां उसके प्रकाश को सड़क तक आने से देती हैं। दिल्ली में स्ट्रीट लाइट को लेकर यह शिकायत आम है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
दिल्ली की हरियाली इसकी राह का रोड़ा है। समस्या पेड़ों की अनियमित छंटाई से है। पेड़ों की अनियमित छंटाई की वजह से राजधानी के कई इलाकों में अंधेरा पसरा है। स्थिति यह है कि अति विशिष्ट और विशिष्ट क्षेत्रों में भी लाइट होते हुए भी अधिकांश सड़कें अंधेरे में डूबी रहती हैं, जिससे दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ रहा है।
धरातली स्थिति यही है कि दिल्ली की सड़कों पर जहां स्ट्रीट लाइट जल रही हैं, कई स्थानों पर पेड़ों की डालियां अंधेरा बनाए हुए हैं। और जब तक विभागीय तंत्र सक्रिय नहीं होता, तब तक राष्ट्रीय राजधानी पर से ‘अंधेरे की राजधानी’ का टैग हटना कठीन है।
अति विशिष्ट और विशिष्ट क्षेत्रों में समस्या गहरी
लुटियंस दिल्ली जैसे अति विशिष्ट और विशिष्ट क्षेत्रों में यह समस्या सर्वाधिक है। बसंत कौर मार्ग टी-प्वाइंट पर पेड़ों की घनी डालियां स्ट्रीट लाइट को पूरी तरह ढक रही हैं। वहां सड़क पर लाइट की पर्याप्त रोशनी नहीं पड़ती, जिससे रात में वाहन चालकों को मुश्किल होती है। प्रेस एनक्लेव मार्ग और साकेत मेट्रो स्टेशन के पास भी यही हाल है। वेंकटरामन स्ट्रीट, वार्ड 70 में डी70/338/जेड-सिक्स पोल पर पेड़ की डाल चढ़ गई है, जिसके कारण आसपास का इलाका अंधेरे में डूबा है।
ईस्ट एवेन्यू रोड पर दर्जनभर से ज्यादा लाइटें पेड़ों की वजह से प्रभावित हैं। कालकाजी एक्सटेंशन के हिमगिरी अपार्टमेंट्स के पास तो पूरा पार्क और सड़क खतरनाक अंधेरे में है। राजा गार्डन फ्लाईओवर पर सेंट्रल वर्ज के पेड़ लाइट की सीधी रोशनी को रोक रहे हैं। इससे वहां लगातार हादसों का खतरा बना रहता है।
new-delhi-city-general,cc,Delhi University PhD supervision,PhD supervision committee,College teachers PhD role,UGC guidelines PhD,Research paper publication,PhD supervision rules,Delhi University colleges,Professor PhD supervision,Assistant professor research,Associate professor guidelines,Delhi news
जिम्मेदारी तय, लेकिन निगरानी ढीली
स्ट्रीट लाइट की विजिबिलिटी सुनिश्चित करना पीडब्ल्यूडी और एमसीडी के उद्यान (हार्टिकल्चर) विभाग की जिम्मेदारी है। मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) के अनुसार हर छह महीने में पेड़ों की छंटाई (प्रूनिंग) आवश्यक है, विशेषकर वे डालियां जो ट्रैफिक लाइट, सिग्नल, स्ट्रीट लाइट या बिजली की तारों को छू रही हों। इसके लिए संबंधित एई और जेई पर निगरानी और जिम्मेदारी तय की गई है।
वरिष्ठ अधिकारियों को मासिक निरीक्षण का दायित्व दिया गया है। पर, वास्तविकता यह है कि कागज पर बनी व्यवस्था जमीनी स्तर पर नजर नहीं आती। जब तक नागरिक शिकायतें बढ़ नहीं जाती या फिर कोई बड़ी दुर्घटना न हो जाए, तब तक कोई भी इस समस्या पर ध्यान नहीं देता। कर्तव्य पालन करना तो दूर।
नियम बनते हैं रोड़ा
दिल्ली प्रिजर्वेशन आफ ट्रीज एक्ट के तहत सिर्फ लाइट प्रूनिंग (20 सेमी तक) की अनुमति है। गहरी छंटाई (डीप प्रूनिंग) के लिए वन विभाग से अनुमति लेना अनिवार्य है। यही कानूनी पेंच देरी का कारण बनता है। एमसीडी और लोनिवि के क्षेत्रों के साथ-साथ एनडीएमसी के क्षेत्रों में भी यही दिक्कत है। अधिकारी का कहना हैं कि ‘अनुमतियों की प्रक्रिया लंबी होती है, जिसके चलते समय पर छंटाई नहीं हो पाती और सड़कें अंधेरे में डूब जाती हैं।’
लोनिवि, एमसीडी का पक्ष
लोनिवि अधिकारी ने बताया कि ‘नई एसओपी के तहत बायएनुअल प्रूनिंग को अनिवार्य किया गया है। विशेषकर ट्रैफिक लाइट, रोड साइनेज व ट्रैफिक सिग्नल के सामने पेड़ों की डाल नहीं होनी चाहिए, आड़ नहीं होनी चाहिए। दृश्यता (विजिबिलिटी) सुनिश्चित करने के लिए आटोमेटेड शेड्यूलिंग की तैयारी की जा रही है।’
एमसीडी के अधिकारी ने कहाकि ‘लाइट प्रूनिंग से करीब 80 फीसदी समस्या सुलझ सकती है। लेकिन अनुमति और संसाधनों की वजह से कभी-कभी देरी होती है।’
 |