Diwali 2025: कब लगेगी अमावस्या? अर्धरात्रि में मां काली की निशीथ पूजा, सिद्ध होंगे तंत्र-मंत्र...

cy520520 2025-10-20 14:36:44 views 1240
  

प्रस्तुतीकरण के लिए सांकेतिक तस्वीर का प्रयोग किया गया है।



जागरण संवाददाता, वाराणसी। ज्योति पर्व दीपावली कार्तिक अमावस्या तिथि में प्राप्य प्रदोष काल में सोमवार को मनाई जाएगी। घर-मंदिरों से लेकर सड़क-चौराहों तक प्रकाश बिखरेगा। घर-घर में श्रीसमृद्धि की देवी मां लक्ष्मी, बुद्धि प्रदाता गणेश का पूजन-अर्चन होगा। अमावस्या दोपहर बाद 2:56 बजे से लग रही है जो 21 अक्टूबर मंगलवार की शाम 4:26 बजे तक रहेगी। काशी के विद्वानों के अनुसार प्रदोषकालिक अमावस्या 20 अक्टूबर को मिलने से दीपावली इसी दिन मनाई जाएगी। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

  
हर ओर छाएगा प्रकाश, प्रदोष काल में मिलेगा स्थिर वृष लग्न, होगा पूजन

  

काशी हिंदू विश्वविद्यालय ज्योतिष विभाग के आचार्य डा. सुभाष पांडेय ने बताया कि प्रदोष काल यानी सूर्यास्त के बाद से 2:24 मिनट तक का समय लक्ष्मी-गणेश पूजन के लिए शुभ होता है। सोमवार को सूर्यास्त काशी के पंचांग मेें स्थानीय समयानुसार 5:41 बजे होगा। भारतीय मानक समयानुसार (आइएसटी) सूर्यास्त 5:26 बजे का पूर्वानुमान है। बंग समुदाय निशीथ काल में मां काली की पूजा कर सुख-समृद्धि व कल्याण का आशीष पाएंगे।


पूजन विधान


पूरे दिन नक्त व्रत रहते हुए घर की विधिवत साफ-सफाई कर उसे पुष्पों, रंगोलियों व दीपमालिकाओं से अलंकृत करें। घर के आंगन या पूजागृह में आटे से चौका पूर कर मां की चौकी स्थापित करें। उस पर मां लक्ष्मी व भगवान गणेश की नई प्रतिमाएं स्थापित कर उन्हें नूतन वस्त्रादि, मिष्ठान्न, खील-बताशों व नवान्नों का भोग लगाएं तथा विधिवत पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करें। देव विग्रहों के समक्ष दीपमालिकाएं सजाएं। इस दिन उलूक दर्शन को भी शुभ माना गया है। अतएव मां लक्ष्मी की प्रतिमा यदि उलूक वाहन समेत हो तो अच्छा है।


पूजनोपरात करें उल्कामुख दर्शन


मां लक्ष्मी व गणेश के पूजनोपरांत दोनों हाथों में दीपक लेकर दक्षिणाभिमुख होकर पितरों को दीप दिखाएं। इसे उल्काभिमुख दर्शन कहते हैं। मान्यता है कि इससे पितृलोक में आए पितरों के स्वलोक गमन का मार्ग प्रकाशित होता है।


मंदिरों व सरोवरों में करें दीपदान


मां लक्ष्मी-गणेश के पूजनोपरांत निकटतम मंदिरों व सरोवर तटों पर दीपदान करें और नक्त व्रत का पारण करें। अर्धरात्रि यानी निशीथ काल में महाकाली के पूजन व अमावस जागरण का विधान है।


साभ्यंग स्नान व हनुमत दर्शन से आरंभ होगा दिवस


सोमवार की प्रात: रूप चौदस है, इस दिन साभ्यंग स्नान यानी सूर्योदय से पूर्व पूरे शरीर में तैल की मालिश कर स्नान करने और सजने-संवरने का विधान है। स्नानादि के पश्चात प्रात: काल यम के नाम तर्पण करें व हनुमान जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में मंदिरों में हनुमानजी का दर्शन कर आशीर्वाद लेना चाहिए।


स्थिर लग्न में लक्ष्मी पूजन का उत्तम मुहूर्त


ख्यात ज्योतिषाचार्य काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. चंद्रमौलि उपाध्याय के अनुसार दीपावली पर लक्ष्मी पूजन प्रदोष काल में स्थिर लग्न के समय करना चाहिए। स्थिर लग्न वृष सायं 7:10 बजे से रात 9:06 बजे तक है। यह 1:56 घंटा का मुहूर्त घरों-प्रतिष्ठानों में श्रीसमृद्धि कामना से लक्ष्मी पूजन के लिए उत्तम है।

उन्होंने बताया कि अमावस्या को एक स्थिर लग्न सोमवार को दोपहर में भी मिलेगा जो दोपहर बाद 2:34 से आरंभ होकर अपराह्न 4:05 बजे तक रहेगा। चूंकि अमावस्या इसी बीच 2:56 बजे लगेगी अतङ अत्यावश्यक परिस्थितियों में वाणिज्यादिक संस्थानो में मां लक्ष्मी व गणेश पूजन के लिए 2:56 बजे से चार बजे तक इस लग्न का भी प्रयोग किया जा सकता है। अर्धरात्रि में निशीथ पूजन के लिए स्थिर लग्न सिंह रात्रि में 2:34 बजे से भोर के 4:05 बजे तक मिलेगा।



करें सहस्त्रविष्णुनाम, श्रीसूक्त या कनकधारा का पाठ

  


बीएचयू के पूर्व विभागाध्यक्ष व श्रीकाशी विद्वत परिषद के संगठन मंत्री प्रो. विनय पांडेय ने बताया कि दीपावली के दिन मां लक्ष्मी का पूजन करते समय श्रीविष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए क्योंकि जहां विष्णु भगवान का पाठ होता है, वहां मां लक्ष्मी स्वयं उपस्थित रहती हैं। पूजन के समय श्रीसूक्त अथवा कनकधारा स्तोत्र का भी पाठ किया जा सकता है। यदि साधक को इन मंत्राें या पाठों की जानकारी न हो तो ‘ॐ महालक्ष्म्यै नम:’ मंत्र के साथ भी पूजन किया जा सकता है।
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