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झारखंड विधानसभा नियुक्ति घोटाला में नया मोड़, जांच एजेंसी की सुप्रीम कोर्ट में हस्तक्षेप याचिका

Chikheang 2025-10-13 12:05:51 views 1252

  

झारखंड विधानसभा नियुक्ति घोटाले की जांच में नया मोड़। सांकेतिक फोटो



राज्य ब्यूरो, रांची। झारखंड विधानसभा नियुक्ति घोटाले की सीबीआई जांच आरंभ हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट में जांच एजेंसी ने इस संबंध में एक हस्तक्षेप याचिका दाखिल किया है।

नियुक्तियों में घोर अनियमितता का मामला 2003 में झारखंड विधानसभा गठन के तुरंत बाद शुरू हुआ, जब नियमों की अनदेखी कर सैकड़ों अवैध नियुक्तियां की गईं।

सीबीआई की हस्तक्षेप याचिका में झारखंड हाईकोर्ट के 23 सितंबर 2024 के उस आदेश पर रोक हटाने की मांग की गई है, जिसमें जांच को लेकर स्टे आर्डर दिया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा सचिवालय की अपील पर इस जांच पर रोक लगा दी थी। इस घोटाले की जड़ें गहरी हैं। 2005-2007 के बीच पूर्व स्पीकर इंदर सिंह नामधारी के कार्यकाल में 274 नियुक्तियां हुईं, जिनमें से 70 प्रतिशत एक ही जिले के उम्मीदवारों को तरजीह दी गई। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

इसी तरह पूर्व स्पीकर आलमगीर आलम के कार्यकाल में 324 अवैध नियुक्तियां की गईं। शशांक शेखर भोक्ता पर भी मनमानी प्रोन्नतियों का आरोप है। इन नियुक्तियों में योग्यता की बजाय पक्षपात और रिश्वतखोरी का बोलबाला रहा।

एक वायरल सीडी में इन अनियमितताओं की बातचीत रिकार्ड हुई, जो बाद में सबूत बनी। इसे सबसे पहले विधानसभा में विधायक सरयू राय ने उठाते हुए जांच की मांग की थी। इसके बाद जांच समिति बनी।

अब तक इसकी जांच के लिए तीन आयोग बन चुके हैं। 2012 में तत्कालीन राज्यपाल सैयद अहमद ने इसकी जांच के लिए जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद आयोग गठित किया।

2018 में आयोग ने अपनी रिपोर्ट तत्कालीन राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को सौंपी, जिसमें सीबीआइ जांच की सिफारिश की गई। रिपोर्ट में खाली उत्तर पुस्तिकाओं पर पास होने और नियमों में छेड़छाड़ का खुलासा हुआ।

इसके बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई। राज्य सरकार ने 2022 में एसजे मुखोपाध्याय गठित किया। सबसे पहले अनियमितता की जांच के लिए जस्टिस लोकनाथ आयोग का गठन किया गया था।
आरोपित पूर्व नेताओं में आलमगीर आलम अभी जेल में

इस घोटाले में आरोपित आलमगीर आलम वर्तमान में मनी लान्ड्रिंग के आरोपों में रांची के होटवार जेल में बंद हैं। ईडी ने उन्हें गिरफ्तार किया था, इसके बाद उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा।

आलमगीर के कार्यकाल की 324 नियुक्तियां घोटाले के केंद्र में है। इससे पहले नामधारी के कार्यकाल में एक खास क्षेत्र पलामू के लोगों की भर्तियां हुईं।
जिसने खाली उत्तर पत्र जमा किया, वह भी हो गया नियुक्त

नियुक्ति परीक्षाओं में जमकर खिलवाड़ हुआ। एक अभ्यर्थी ने अंग्रेजी शार्टहैंड की परीक्षा में खाली कापी जमा कर दी। उन्हें चयन सूची में जगह मिल गई। कईयों को हिंदी शार्टहैंड में शून्य नंबर मिले। नियुक्ति स्टेनोग्राफर के पद पर हो गईं।

उत्तर पुस्तिकाओं में हेरफेर या मूल्यांकन में मनमानी की गई। एक ही पेपर में जिन पांच उम्मीदवारों की कापियां खाली या अपूर्ण थीं, सभी को चयनित कर लिया गया। ड्राइवरों की भर्ती में तो हद ही हो गई।

चार ऐसे ड्राइवर बहाल कर लिए गए, जो टेस्ट में शामिल ही नहीं हुए। कुल 18 ड्राइवरों की नियुक्ति की गई। इसमें 14 टेस्ट में फेल हो गए थे। आयोग ने ऐसी कई अनियमितताओं को उजागर किया।

नियुक्ति के दौरान जमकर नेताओं के करीबियों को पद बांटे गए। इसमें सभी दलों के नेता सम्मिलित थे, जिन्होंने अपने करीबियों को नियुक्त कराने में सफलता पाई।
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