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मुख्य न्यायाधीश पर हमला, संयोग या प्रयोग ... ...

deltin55 1970-1-1 05:00:00 views 71


सोमवार को सर्वोच्च न्यायालय के भीतर एक ऐसी घटना हुई, जिसकी कल्पना भी कभी नहीं की गई होगी। मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई पर एक वकील ने जूता उछालने की कोशिश की। यह घटना उस वक्त हुई जब जस्टिस गवई की अध्यक्षता वाली बेंच वकीलों के मामलों की सुनवाई के लिए मेंशन सुन रही थी। बताया जा रहा है कि आरोपी वकील राकेश किशोर जज के डाइस के करीब पहुंचा और जूता उतारकर फेंकने की कोशिश की, हालांकि सुरक्षा कर्मियों ने समय रहते उसे रोक लिया। सुरक्षाकर्मी जब आरोपी वकील को पकड़कर बाहर ले जा रहे थे,  तब वह 'सनातन का अपमान नहीं सहेंगे' का नारा लगा रहा था। उसके नारे से सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि वह कट्टर दक्षिणपंथी मानसिकता का है, जिसके लिए संविधान मायने नहीं रखता, बल्कि धर्मांधता को वह तरजीह देता है। अब इस मामले की पूरी जांच होगी, तब पता चलेगा कि मुख्य न्यायाधीश गवई पर जूता उछालने का दुस्साहस आखिर उसने क्यों किया। हो सकता है 16 सितंबर को खजुराहो मामले में दिए फैसले से आरोपी नाराज हो, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने खजुराहो के जवारी मंदिर में भगवान विष्णु की सात फुट ऊंची मूर्ति को दोबारा स्थापित करने की याचिका को खारिज कर दिया था। तब भी कुछ वकीलों ने इस फैसले पर नाराजगी जताई थी या फिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रम में जस्टिस गवई की मां ने जाने से इंकार कर दिया, इस बात से आरोपी नाराज हो। कारण जो भी यह घटना आजाद भारत के इतिहास में एक बड़ा कलंक बन गई है और इसका जिम्मेदार सीधे-सीधे नरेन्द्र मोदी की सरकार को कहा जा सकता है।  




भाजपा पहले भी केंद्र की सत्ता में रही है, और हिंदुत्व के नाम पर नफरत फैलाने का काम उसने पहले भी किया है। बाबरी मस्जिद को तोड़ना, गुजरात दंगे इसके उदाहरण हैं। लेकिन समाज में नफरत के इजहार को लेकर एक झिझक और संकोच था। सहिष्णुता का एक महीन सा आवरण समाज पर डला हुआ था, जो अब पूरी तरह तार-तार हो चुका है। नफरत करना और उतनी ही बेशर्मी से उसका इजहार करना अब गर्व की बात हो चुकी है। संघ से प्रेरित लोग काफी अरसे से नारा देते आए हैं कि गर्व से कहो हम हिंदू हैं। पहले इस नारे को लगाने में लोग हिचकते थे। मगर अब मोदी सरकार में पूरा माहौल बदल चुका है। राहुल गांधी ने नफरत का कैरोसिन पूरे देश में छिड़के जाने का जो दावा किया था, वह सही दिखाई दे रहा है।  




देश में जातिवादी और धार्मिक आधार पर हिंसा अब भयावह रूप में सामने आ रही है। जस्टिस गवई पर हमला केवल कानून व्यवस्था का मामला नहीं है, न ही यह क्षणिक भावावेश में की गई हरकत है। बल्कि यह कई बरसों से समाज में भरी जा रही नफरत का निचोड़ है। याद रहे कि जस्टिस गवई दलित समुदाय से आने वाले दूसरे मुख्य न्यायाधीश बने हैं, लेकिन बौद्ध धर्म को मानने वाले वे पहले मुख्य न्यायाधीश हैं। हालांकि संविधान के हिसाब से न्याय की आसंदी पर बैठे व्यक्ति की धार्मिक आस्था मायने नहीं रखती है। लेकिन जब पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी वाय चंद्रचूड़ राम मंदिर के लिए दिए फैसले से पहले देवी के सामने बैठने की बात कहते हैं, अपने घर में गणपति पूजा के लिए प्रधानमंत्री मोदी को बुलाकर उसका सार्वजनिक इजहार करते हैं, तब समाज भी इस तथ्य को मानने लगता है कि न्यायपालिका में धार्मिक आस्था के लिए जगह बन चुकी है। अगर जस्टिस गवई की जगह कोई सवर्ण हिंदू इस समय मुख्य न्यायाधीश के पद पर होता, तब शायद इस तरह जूता उछालने का दुस्साहस नहीं किया जाता। लेकिन वे दलित हैं, क्या इसलिए उन पर हमले की कोशिश की गई, यह सवाल गंभीरता से विचार की मांग करता है।  




इस घटना पर कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने कहा है कि दलित और अल्पसंख्यक होना इस देश में गुनाह बना दिया गया है, उनकी इस टिप्पणी को खारिज नहीं किया जा सकता। क्योंकि दलितों और अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के मामले लगातार बढ़ ही रहे हैं। अभी एनसीआरबी के ताजा आंकड़े भी यही बता रहे हैं कि इन आंकड़ों में कोई कमी नहीं आई है। अभी उत्तरप्रदेश में ही मानसिक तौर पर विक्षिप्त एक दलित युवक की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई है। बरेली में आई लव मुहम्मद कहने पर ऐसा बवाल चल रहा है कि जुमे की नमाज के बाद लोगों से सीधे घर जाने की अपील की गई। ओडिशा में देवी विसर्जन के दौरान सांप्रदायिक हिंसा भड़क गई। ये सारी घटनाएं भले छिटपुट दिखें और इनमें व्यापक तौर पर जान-माल का नुकसान न हो, लेकिन समाज को जो दीर्घकालिक नुकसान हो चुका है, अब उसकी भरपाई होनी चाहिए। इस तरह के नुकसान का सिलसिला अगर बढ़ता रहे तो फिर वाकई वैसा ही हिंदुस्तान बन जाएगा, जिसकी कोशिश में पिछले सौ सालों से संघ लगा हुआ है। मोहन भागवत हिंदू समाज की एकजुटता की बात कहें या मुसलमानों को साथ लेकर चलने की बात कहें, असल में संघ एक सवर्ण मानसिकता में पगा हुआ मनुवादी भारत बनाने की कोशिश में है। जिसमें अल्पसंख्यक, दलित, पिछड़ी जाति के लोग, महिलाएं सब सवर्ण पुरुषों के रहमोकरम पर रहें। अगर उन्होंने अच्छा व्यवहार किया तो इसे सौभाग्य समझें और अगर उत्पीड़न सहना पड़े तो पिछले जन्म के कर्मों का फल, इस तरह का देश बनाने की कोशिश में संघ लगा है। अब समाज को सोचना होगा कि उसे संविधान वाला देश चाहिए या फिर ऐसा देश जहां मुख्य न्यायाधीश की गरिमा भी दांव पर लगा दी गई है।






Deshbandhu



Chief Justice of IndiaCJI BR GavaiSupreme CourtpoliticsBJP leader









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