बगैर औपचारिक शिक्षा के सीखा गणित, ट्रिनिटी कॉलेज से फेलोशिप पाने वाले पहले भारतीय

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22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में मनाया जाता है।  



एजुकेशन डेस्क, नई दिल्ली: श्रीनिवास रामानुजन को पूरी दुनिया में उनकी प्रतिभा और गणित विषय में उनके असाधारण योगदान के लिए जाना जाता है। रामानुजन ने संख्या सिद्धांत, अनंत श्रेणियों और गणितीय सूत्रों के क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया है। गणित में उनकी खोज ने इस विषय को एक नया रूप दिया है। इसके साथ ही उन्होंने 3900 से ज्यादा गणितीय सूत्र और प्रमेय विकसित किए हैं। यही नहीं उन्होंने साल 1914 में पाई के लिए इनफिनिटी सीरीज का सूत्र भी खोजा था। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

खास बात यह है कि रामानुजन ने कभी-भी गणित विषय के लिए औपचारिक शिक्षा नहीं ली। गणित विषय के प्रति उनकी रुचि ही थी कि आज वह इसके लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं।

दरअसल हर साल 22 दिसंबर को रामानुजन जयंती को \“राष्ट्रीय गणित दिवस\“ के रूप में मनाया जाता है। ऐसे में आइये जानते हैं, गणित विषय में उनकी उपलब्धियों और जिंदगी से जुड़े कुछ अन्य पहलुओं के बारे में।
गरीबी में बीता बचपन

श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर, 1887 को तमिलनाडु में बेहद ही सामान्य परिवार में हुआ था। रामानुजन का बचपन बेहद ही गरीबी में बीता है। परिवार की माली हालत ठीक नहीं थी, जिसके कारण उन्होंने कभी भी गणित विषय के लिए औपचारिक शिक्षा नहीं ली। गणित विषय में उन्हें सबसे ज्यादा रुचि थी, जिसके कारण वह अन्य विषयों में असफल होते रहे और कॉलेज की पढ़ाई उन्हें बीच में ही अधूरी छोड़नी पड़ी।
गणित में थी रुचि

श्रीनिवास रामानुजन को आज पूरी दुनिया में गणित विषय में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए याद किया जाता है। परिवार की आर्थिक स्थिति सही न होने के बावजूद भी उन्होंने कभी भी अपने हालातों और सपनों से समझौता नहीं किया। उन्होंने गणित की कई किताबें स्वयं पढ़कर अनेक गणितीय सूत्र खोजे और गणित विषय में प्रयोग किए।
इंग्लैंड में मिली प्रसिद्धि

रामानुजन ने गणित में अपनी खोज जारी रखी और अपने द्वारा खोजे गए गणितीय सुत्रों को इंग्लैंड के प्रसिद्ध प्रोफेसर जी.एच हार्डी को भेजे। प्रोफेसर जी.एच रामानुजन की प्रतिभा से बहुत ज्यादा प्रभावित हुए और उन्होंने रामानुजन को इंग्लैंड बुलाया। फिर क्या था रामानुजन के सपनों को एक उड़ान मिली और उन्होंने वहां जाकर गणित में कई खोजें की जिसके बाद वह पूरी दुनिया में प्रसिद्ध को गए।
कैंब्रिज से की पढ़ाई

एक समय था जब उन्हें परिवार की आर्थिक तंगी और परीक्षाओं में असफल होने के कारण कॉलेज की पढ़ाई अधूरी छोड़नी पड़ी थी। लेकिन गणित में उनकी खोज ने उन्हें कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से स्नातक करने का मौका दिया। उन्होंने साल 1916 में ट्रिनिटी कॉलेज कैंब्रिज से स्नातक की डिग्री हासिल की और गणित विषय में रिसर्च के लिए उन्हें रॉयल सोसायटी में शामिल किया गया। इसके साथ ही उन्हें साल 1918 में ट्रिनिटी कॉलेज से फेलोशिप मिली और यह फेलोशिप पाने वाले वह पहले भारतीय थे।

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