सिर्फ 13 दिन के युद्ध से घुटनों पर आया था पाकिस्‍तान: बदल गया था दुनिया का नक्‍शा, पढ़ें एक नया देश बनने की कहानी

LHC0088 The day before yesterday 18:07 views 454
  

Vijay Diwas 1971: यह वो दिन था जब जनरल अमीर अब्दुल्ला खान नियाजी के नेतृत्व वाली पाकिस्तानी सेना ने 16 दिसंबर, 1971 को ढाका में लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोरा के नेतृत्व वाली गठबंधन सेना के समक्ष बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया।



डिजिटल डेस्‍क, नई दिल्‍ली। 16 दिसंबर 1971… यह सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि भारतीय इतिहास की वह गौरवशाली दास्तान है। जिसे पढ़ते हुए आज भी रगों में रोमांच दौड़ जाता है। इस दिन की तस्वीरें आप गूगल पर खोजेंगे तो सामने भारतीय सेना का अदम्य साहस, अनुशासन और रणनीतिक दक्षता की स्वर्णिम गाथा उभर आएगी। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

1971 में पाकिस्तानी सेना की क्रूर कार्रवाइयों और दमनचक्र ने जब जंग को अनिवार्य बना दिया, तब भारत ने सिर्फ जवाब नहीं दिया, बल्कि ऐसा प्रहार किया कि दुनिया का भू-राजनीतिक नक्शा ही बदल गया। रणनीति को भी नए आयाम मिलेे। महज 13 दिनों में भारतीय सेना ने पाकिस्तान की सबसे बड़ी हार दर्ज कराई। 93 हजार से अधिक सैनिकों को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर किया और उसी क्षण दक्षिण एशिया में एक नए राष्ट्र बांग्लादेश का उदय हुआ।

वर्तमान में, दशकों बाद बांग्लादेश एक बार फिर राजनीतिक अस्थिरता, हिंसा और आर्थिक संकट की गिरफ्त में है। ऐसे समय में ‘विजय दिवस’ हमें उस ऐतिहासिक क्षण की याद दिलाता है, जब भारत ने अत्याचार की आग में झुलस रहे लोगों को स्वतंत्रता दिलाने में निर्णायक भूमिका निभाई थी और दक्षिण एशिया की शक्ति-संतुलन में अपनी निर्णायक भूमिका भी स्थापित की। यह दिन सैन्य विजय का प्रतीक के साथ ही भारत की दूरदर्शी कूटनीति, सामरिक क्षमता और मानवता के प्रति उसकी अटूट प्रतिबद्धता का स्मरण भी है।

16 दिसंबर 1971 को जो हुआ, उसकी कहानी 1947  से शुरू होती है, जब पाकिस्तान धर्म के आधार पर एक नया राष्‍ट्र बना। आज जब बांग्लादेश एक बार फिर हिंसा के कारण अशांत है, तब समझना जरूरी है कि आखिर वे कौन-से मुद्दे थे, जब पाकिस्तान अपने ही पूर्वी हिस्से को खोने की ओर बढ़ा था? आइए हम आपको बताते हैं...  
पाकिस्‍तान की वह शुरुआत, जिसने लिखा बंटना...

14 अगस्त 1947 को धर्म के आधार पर पाकिस्तान बना। इस नए नवेले देश के दो हिस्से थे- पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान। पाकिस्तान की 56% आबादी पूर्वी पाकिस्तान में रहती थी और उनकी भाषा बांग्ला थी, जबकि पश्चिमी पाकिस्तान में पंजाबी, सिंधी, बलूची और पश्तो जैसी भाषाएं बोली जाती थीं। भारत से पलायन कर पाकिस्तान पहुंचे मुस्लिम भी पश्चिमी पाकिस्तान रहते थे, जिन्हें शरणार्थी कहा जाता था।

पश्चिमी पाकिस्तान के नेताओं को बांग्ला भाषा से दिक्कत थी। उनका मानना था कि इस भाषा पर हिंदुओं का असर है। इसलिए बांग्‍ला को \“राष्ट्रीय भाषा\“ मानने से इनकार कर दिया। सरकारी कामकाज में बांग्‍ला भाषा के इस्‍तेमाल पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी गई।

डच प्रोफेसर विलियम वॉन शिंडल ने ‘ए हिस्ट्री ऑफ बांग्लादेश’ में लिखा- \“पश्चिमी पाकिस्तान के पंजाबी नेता मानते थे कि पाकिस्तान की भाषा सिर्फ उर्दू हो सकती है।\“  

मार्च 1948 में ढाका गए जिन्ना ने खुलेआम एलान किया था- \“पाकिस्तान की राजकीय भाषा सिर्फ उर्दू होगी। जो भी इसका विरोध करेगा, वह पाकिस्तान का दुश्मन होगा।\“ यहीं से पूर्वी पाकिस्तान की नाराजगी ने विद्रोह का रूप लेना शुरू कर दिया।

  
बहुसंख्यकों को फैसले लेना का हक नहीं

ध्‍यान देने वाली बात यह है कि पश्चिमी पाकिस्तान में बांग्ला भाषा बोलने वाले लोग न के बराबर थे। डच प्रोफेसर विलियम वॉन शिंडल ने अपनी किताब \“ए हिस्ट्री ऑफ बांग्लादेश\“ में लिखा,\“ पश्चिमी पाकिस्तान में रहने वाले पश्चिमी पंजाब के मुसलमान ही देश के लिए अच्छे-बुरे सभी फैसले करते थे। देश की बागडोर इन्‍हीं के हाथों में थी, जबकि आबादी के लिहाज से देखा जाए तो पूर्वी पाकिस्‍तान का वर्चस्‍व होना चाहिए था, लेकिन ऐसा बिल्‍कुल भी नहीं था।   
4 साल बाद शुरू हुआ भाषा आंदोलन

बांग्ला भाषा की अवहेलना ने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों को आक्रोश से भर दिया। न भाषा उनकी, न नीतियां उनको ध्‍यान में रखकर बनाई जातीं। न उनके दुख-दर्द और समस्‍यों को ख्‍याल रखा जाता। हद तब हो गई, जब भाषा की मांग को लेकर साल 1952 में भाषा आंदोलन हुआ और कई छात्रों की जान गई। यह आंदोलन सिर्फ भाषा का नहीं था- यह पहचान, संस्कृति और सम्मान का संघर्ष था। इसके साथ-साथ आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक भेदभाव के खिलाफ उठी बुलंद आवाज थी।  

पूर्वी पाकिस्‍तान में रहने वालों के हालात का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि पश्चिमी पाकिस्तान के नेता पूर्वी पाकिस्तानियों को अक्सर अपमानजनक शब्दों से पुकारते, उन्हें कमजोर और हीन मानते। अगर वे पुलिस के पास मदद के लिए जाते तो पुलिस और प्रशासन उनके खिलाफ ही कार्रवाई करता। इस सबसे लोगों का गुस्सा उबलने लगा और यही गुस्सा आगे चलकर अलग देश बांग्लादेश बन गया।
अवामी लीग और शेख मुजीबुर्रहमान का उभार

पूर्वी पाकिस्‍तानियों पर जब जुर्म हद से ज्‍यादा बढ़ गए और विरोध के स्‍वर भी बुलंद होने लगे तब पूर्वी पाकिस्तान की राजनीतिक चेतना को अवामी लीग और उसके नेता शेख मुजीबुर्रहमान ने दिशा दी। शेख मुजीबुर्रहमान यानी बांग्‍लादेश से जान बचाकर भारत में शरण लेने वाली शेख हसीना के पिता।

मुजीबुर्रहमान ने आर्थिक भेदभाव, राजनीतिक असमानता और विकास की कमी के खिलाफ आवाज उठाई। इस कारण में पश्चिमी पाकिस्‍तान के नेताओं की आंखों में चुभने लगे। साल 1965 की भारत-पाकिस्‍तान जंग के बाद शेख मुजीबुर्रहमान ने स्‍पष्‍ट मांग रखी कि दोनों प्रांतों के आर्थिक विकास में एकरूपता जरूरी है। इससे खफा पश्चिमी पाकिस्‍तान के नेताओं ने उन्हें 1968 में ‘अगरतला षड्यंत्र’ केस में फंसा दिया गया। उन पर भारत के साथ मिलकर पाकिस्तान तोड़ने का आरोप लगाया गया।

  
रही-सही कसर 1970 के चुनाव ने पूरी कर दी

साल 1970 में पाकिस्तान में हुए आम चुनाव में अवामी लीग ने पूर्वी पाकिस्तान की 169 में से 167 सीटें जीतीं। सत्ता का जनादेश साफ था- शेख मुजीबुर्रहमान प्रधानमंत्री बनेंगे, लेकिन सैन्य तानाशाह याह्या खान और जुल्फिकार अली भुट्टो पूर्वी पाकिस्तान को सत्ता देने के खिलाफ थे। याह्या खान ने सत्ता हस्तांतरण टाल दिया। फिर क्‍या था- पूर्वी पाकिस्तान में गुस्सा फूट पड़ा। 7 मार्च 1971 को ढाका के रेसकोर्स मैदान में बंगबंधु ने ऐतिहासिक भाषण दिया- यहीं से पूर्वी पाकिस्तान की स्वतंत्रता तय हो गई।
पाकिस्‍तान के टुकड़े होने से रोकने के लिए बाथरूम में बातचीत

पाकिस्‍तान के आलाकमान को समझ आने लगा था कि हालत दिन-ब-दिन बिगड़ते जा रहे हैं।  15 मार्च 1971 को याह्या खान ढाका पहुंचे। शेख मुजीबुर्रहमान से एकांत में बातचीत करना चाहते थे, इसलिए दोनों की बैठक के लिए बाथरूम में दो कुर्सियां डाली गईं। यहां बातचीत हुई, लेकिन यह बैठक भी निष्फल रही। एक और कोशिश हुई। 19 मार्च, 1971 को भुट्टो ढाका पहुंचे। फिर तीनों मिले, माहौल हल्का करने की कोशिश हुई। भुट्टो और मुजीब में थोड़ी सहमति बनी, लेकिन यह बहुत कम समय तक टिक पाई।

  
23 मार्च: पूर्वी पाकिस्‍तान में ‘विरोध दिवस’, सब बदल गया

23 मार्च को अवामी लीग ने स्वतंत्रता का झंडा फहरा दिया। पश्चिमी पाकिस्तान की नजर में यह सीधी बगावत थी। ढाका टीवी ने पाकिस्‍तान का राष्ट्रगान बजाने से इनकार कर दिया। घर–घर में बांग्लादेश के झंडे लगे थे। पाकिस्तानी सेना ने अवामी लीग को \“अलगाववादी संगठन\“ घोषित कर दिया।

यह भी पढ़ें- पाकिस्‍तान को बंटने से रोकने के लिए बाथरूम में मिले थे दो नेता, आखिर बांग्लादेश बनाने की जरूरत क्यों पड़ी थी?
ऑपरेशन सर्चलाइट: वह नरसंहार जिसने एक राष्ट्र को जन्म दिया

याह्या खान ने पहले से ही बी-प्‍लान के तौर पर बंगालियों पर सैन्य कार्रवाई का पूरा खाका तैयार कर लिया था। 25 मार्च की रात पाक सेना ने ढाका में ‘ऑपरेशन सर्चलाइट’ शुरू किया। इसमें सादे कपड़ों में आए सैनिकों ने रातोंरात ढाका को खून से लाल कर दिया।

अवामी लीग के नेताओं को मारा गया। ढाका यूनिवर्सिटी को श्मशान बना दिया गया। छात्रों को कतार में खड़ा कर गोली मारी गई। हिंदुओं और बुद्धिजीवियों को निशाना बनाया गया। महिलाओं की इज्‍जत लूटी गई। छोटी-छोटी बच्चियों का रेपकर हत्‍या कर दी गई। गलियों में लोग नहीं, लाशों के ढेर लगे थे। नालियों में पानी की जगह खून बह रहा था।

शर्मीला बोस ने लिखा है कि छात्रों को टॉर्चर के बाद अपने साथियों के शव दफनाने के लिए मजबूर किया गया। शेख मुजीब को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें मारने का आदेश नहीं था- क्योंकि पाक सेना नहीं चाहती थी कि वह शहीद बनें।
बांग्लादेश बनने से पहले भारत में क्या हो रहा था?

अप्रैल 1971 के पहले सप्ताह में ही 10 लाख शरणार्थी भारत आ गए। असम, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा शरणार्थियों से भर गए। इस नरसंहार की खबरें भारत पहुंच रही थीं। चीनी, नमक, केरोसिन और पीने के पानी तक की किल्‍लत होने लगी। भारत पर आर्थिक, सामाजिक और सुरक्षा का संकट बढ़ता जा रहा था। तब भारत की प्रधानमंत्री  इंदिरा गांधी थीं और वे स्थिति को लेकर बेहद सतर्क थीं। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मंच पर इसे उजागर किया, लेकिन दुनिया चुप थी।

  

नरसंहार के बाद छिपते-छुपाते अवामी लीग के वरिष्ठ नेता ताजुद्दीन अहमद बॉर्डर आए, वहां से BSF से मदद मांगकर भारत पहुंचे और अपने लोगों को बचाने की गुहार लगाई। इंदिरा गांधी ने मदद का भरोसा दिया, लेकिन रणनीति बेहद सोच-समझकर बनाई जा रही थी।
जब दुनिया चुप थी, भारत ने कदम उठाया

नवंबर 1971 तक भारत आने वाले शरणार्थियों की संख्या एक करोड़ पार हो गई। मुक्ति वाहिनी लड़ रही थी, लेकिन अकेली जीत नहीं सकती थी। भारत को कदम उठाना पड़ा। 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने पश्चिमी सीमा पर हमला किया, यही भारत के युद्ध में उतरने का क्षण बन गया। मुक्ति वाहिनी को प्रशिक्षण और सहयोग दिया।
13 दिन की जंग: विश्व इतिहास का सबसे तेज निर्णायक युद्ध

फिर क्‍या था- भारतीय सेना तीनों मोर्चों पर कूदी- थलसेना, वायुसेना, नौसेना।13 दिनों में पाकिस्तान की रीढ़ टूट गई। ढाका में जनरल नियाजी ने 93,000 सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण किया। यह इतिहास का सबसे बड़ा सैन्य सरेंडर था।  16 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश का जन्म हुआ। इस पूरे घटनाक्रम में इंदिरा गांधी ने रणनीतिक, सैन्य और कूटनीतिक- तीनों स्तर पर नेतृत्व किया।

आज 54 साल बाद बांग्लादेश फिर हिंसा की चपेट में है। इस बार कहानी अलग है, लेकिन डरावनी भी।राजनीतिक दलों के बीच खूनी झड़पें हो रही हैं। पाकिस्तानी चरमपंथी संगठनों की घुसपैठ बढ़ गई है। कई विशेषज्ञ मानने लगे हैं कि एक बार फिर वही खतरा मंडरा रहा है- जब एक राष्ट्र को उसकी भाषा, पहचान और लोकतंत्र से दूर कर दिया जाता है, तो इतिहास खुद को दोहराने के लिए मजबूर हो जाता है।
अब बारी सवाल की-

  • क्या बांग्लादेश फिर \“एक और पाकिस्तान\“ बनने की ओर बढ़ रहा है?
  • क्‍या 1971 की कुर्बानियां फिर एक बार इस देश को बचा लेंगी?
यह भी पढ़ें- जब 120 जवानों ने 4000 पाकिस्‍तानी सैनिकों को खदेड़ा, छोड़ने पड़े थे टैंक-तोप और वाहन ; क्‍या है लोंगेवाला युद्ध की कहानी?
like (0)
LHC0088Forum Veteran

Post a reply

loginto write comments
LHC0088

He hasn't introduced himself yet.

410K

Threads

0

Posts

1310K

Credits

Forum Veteran

Credits
137267

Get jili slot free 100 online Gambling and more profitable chanced casino at www.deltin51.com, Of particular note is that we've prepared 100 free Lucky Slots games for new users, giving you the opportunity to experience the thrill of the slot machine world and feel a certain level of risk. Click on the content at the top of the forum to play these free slot games; they're simple and easy to learn, ensuring you can quickly get started and fully enjoy the fun. We also have a free roulette wheel with a value of 200 for inviting friends.