दोबारा नहीं होगी टीबी!... बस, जीन परिवर्तन के आधार पर लें दवा, शोध ने जगाई नई उम्मीद

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मेरठ में टीबी उन्मूलन की दिशा में एक महत्वपूर्ण शोध हुआ है। (प्रतीकात्मक फोटो)



जागरण संवाददाता, मेरठ। टीबी उन्मूलन का लक्ष्य हासिल करने की दिशा में इस शोध ने नई उम्मीद जगाई है। चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के फार्मेसी विभाग की प्रोफेसर डा. वैशाली पाटिल और केआर मंगलम विश्वविद्यालय गुरुग्राम की प्रोफेसर डा. सरोज ने शरीर में पाए जाने वाले नैट-2 जीन पर अध्ययन कर निष्कर्ष दिया है कि टीबी के उपचार में व्यक्तिगत डोजिंग ( प्रिसिजन मेडिसिन) ज्यादा प्रभावी है। इस जीन परिवर्तन के आधार पर अलग-अलग कैटेगरी में दवाएं देने से मरीजों में दोबारा टीबी संक्रमण का खतरा न्यूनतम रह जाएगा। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

लिवर को भी नुकसान नहीं पहुंचेगा। शोध टीम ने टीबी मरीज का डिजिटल हेल्थ रिकार्ड बनाने की सलाह दी है, जिसमें संपूर्ण जीनोम या विशिष्ट जीन पैनल की आनुवांशिक जानकारी, बीमारी की हिस्ट्री, जीवनशैली और कारकों का विवरण और नैट-2 जीन का परीक्षण शामिल होगा। शोधार्थी डा. वैशाली पाटिल ने बताया कि टीबी के हर मरीज में कारण, लक्षण, संक्रमण की गंभीरता और दवाओं पर प्रतिक्रिया अलग-अलग हो सकती है। इसलिए एक जैसी दवा सभी मरीजों के लिए हमेशा प्रभावी नहीं रहती। ऐसे में व्यक्तिगत डोजिंग (प्रिसिजन मेडिसिन) की आवश्यकता बढ़ रही है।

शोध के लिए नैट-2 जीन की थ्री डी संरचना का अध्ययन किया गया है। एआई टूल के जरिए शोध में फार्माकोजीनोमिक्स यानी शरीर का दवा के साथ व्यवहार और म्यूटेशन इंफारमैटिक्स को एकीकृत करके पता किया गया कि जीन में होने वाले परिवर्तन किस प्रकार दवा के असर को प्रभावित करते हैं। यह जीन प्रोटीन डाटा बैंक से लिया गया है। टीबी के लिए सामान्य तौर पर चार दवाओं वाला रेजिमेन आइसोनियाजिड, रिफांपिसिन, पिराजिनामाइड, इथामबुटोल उपयोग किया जाता है। रेजिस्टेंस टीबी के लिए आल-ओरल शार्ट और लांग रेजिमेन प्रयोग किए जाते हैं। जिनमें आधुनिक दवाएं बेडाक्विलीन, लिनेजोलिड शामिल हैं। उपचार के लिए डाट्स तकनीक प्रयोग की जा रही है।

नैट-2 जीन दवाओं की सक्रियता करता है तय
शोधार्थी ने बताया कि शरीर में टीबी की दवा आइसोनियाजिड के एसिटिलेशन प्रक्रिया को नैट-2 जीन नियंत्रित करता है। यह जीन एक एंज़ाइम है, जो दवा को तोड़कर शरीर में उसकी सक्रियता तय करते हैं। नैट-2 जीन के अलग-अलग प्रकार लोगों को फास्ट, इंटरमीडिएट, या स्लो एसीटिलेटर्स बनाते हैं। स्लो एसीटिलेटर व्यक्तियों में दवा धीरे टूटती है। जिससे इनके शरीर में दवा की मात्रा बढ़ने से लिवर को भारी नुकसान हो सकता है।

फास्ट एसीटिलेटर लोग दवा को बहुत तेजी से पचाते हैं, जिससे दवा का स्तर कम होने से उपचार की प्रभावशीलता घट सकती है। इसलिए नैट-2 जीन मरीजों में दवा की सही खुराक, सुरक्षा और व्यक्तिगत डोजिंग (प्रिसिजन मेडिसिन) उपचार तय करने में अहम भूमिका निभा सकता है। यह शोध जर्नल ड्रग डिस्कवरी टुडे में प्रकाशित हुआ है। इसमें फार्माकोलाजी, टाक्सिकोलाजी और फार्मास्यूटिक्स से संबंधित शोध प्रकाशित होते हैं।
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