सरकारी सिस्टम की ‘क्वालिटी मॉनिटरिंग’ पर सवाल, गेहूं बीज की नाकामी ने कृषि विभाग की कार्यशैली उजागर की

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गेहूं बीज की गुणवत्ता पर एक बार फिर सवाल



बलबंत चौधरी, छौड़ाही (बेगूसराय)। बिहार में सरकारी गेहूं बीज की गुणवत्ता पर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। बेगूसराय में किसानों को वितरित किए गए बीजों का लैब टेस्ट रिपोर्ट सामने आने के बाद पता चला है कि कई बैच अंकुरण मानक पर खरे नहीं उतरे। इस खुलासे ने न सिर्फ किसानों की मेहनत और भविष्य की उपज पर चिंता बढ़ाई है, बल्कि कृषि विभाग की मॉनिटरिंग व्यवस्था पर भी बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

दरअसल, दैनिक जागरण में खबर प्रकाशित होने के बाद विभाग ने जिन संदिग्ध गेहूं बीजों का परीक्षण कराया, उसमें 2967 बैच में मात्र 40 प्रतिशत और 187 बैच में सिर्फ 20 प्रतिशत अंकुरण पाया गया।

जबकि मानक के अनुसार गेहूं बीज का अंकुरण कम से कम 80 प्रतिशत होना चाहिए। यह अंतर यह बताने के लिए काफी है कि किसानों तक पहुंचने वाला सरकारी बीज किस स्तर का था और इसके वितरण से पहले गुणवत्ता जांच कितनी लापरवाही से की गई।

किसानों का कहना है कि खराब बीज के कारण फसल का आधा हिस्सा भी जमीन से बाहर नहीं निकल पाया, जिससे पूरी सीजन की मेहनत पर पानी फिर गया।

कई किसानों ने बताया कि वे सरकारी बीज पर भरोसा कर बड़ी मात्रा में बोआई कर चुके थे, लेकिन नतीजा बेहद निराशाजनक रहा। इससे न सिर्फ उनकी लागत डूब गई, बल्कि अगली बोआई को लेकर भी अनिश्चितता बढ़ गई है।

विशेषज्ञों के अनुसार, इतना कम अंकुरण दर सीधे-सीधे ‘स्टोरिंग, टेस्टिंग और वितरण प्रक्रिया’ में लापरवाही को दिखाता है। अगर बीज लंबे समय तक अनुचित तापमान और नमी वाले गोदामों में रखा जाए, तो उसकी गुणवत्ता प्रभावित होती है।

इसलिए यह स्पष्ट है कि केवल आपूर्ति करने वाली एजेंसियां ही नहीं, बल्कि सरकारी निगरानी तंत्र भी सवालों के घेरे में है।

खराब बीज की शिकायत बढ़ने के बाद कृषि विभाग ने संबंधित कंपनियों से जवाब तलब किया है और कहा है कि किसानों को नुकसान होने पर इसकी भरपाई के लिए कार्रवाई की जाएगी।

हालांकि किसानों का कहना है कि जब तक प्रत्येक बैच का अनिवार्य गुणवत्ता परीक्षण और सार्वजनिक रिपोर्टिंग नहीं होगी, ऐसे संकट दोबारा सामने आते रहेंगे।

इधर, कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों से सलाह दी है कि बोआई से पहले बीज अंकुरण का छोटा टेस्ट खुद करें, ताकि नुकसान से बचा जा सके। साथ ही जैविक खेती और मिट्टी की सेहत सुधारने को लेकर भी जागरूकता की आवश्यकता बताई गई है।

इस पूरे घटनाक्रम ने यह साफ कर दिया है कि बिहार में सरकारी स्तर पर उपलब्ध कराए जा रहे कृषि संसाधनों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए पारदर्शी और जवाबदेह व्यवस्था की जरूरत है। खराब बीज का मामला अब केवल किसानों की समस्या नहीं, बल्कि सिस्टम की साख पर भी गहरी चोट है।
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