सांकेतिक तस्वीर।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली में निगम पार्षदों को चुने हुए सात दिसंबर को तीन साल पूरे हो गए हैं। ऐसे में केंद्रीय स्तर पर नीतियों में सुधार तो दिखाई दे रहा है लेकिन जमीनी स्तर पर विकास पिछड़ रहा है। न तो नए स्कूल फंड की कमी से बन पा रहे हैं न ही शौचालयों और पार्कों का सुधार हो पा रहा है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
आलम यह है कि पूर्व में पार्षदों को एक से दो करोड़ रुपए का विकास फंड देने की बात हुई लेकिन मिला है मात्रा 70 लाख रुपए का ही फंड मिला है। इससे न तो पार्षद नालियां बना पा रहे हैं न ही पार्को का सुधार कर पा रहे हैं इतना ही नहीं गलियां भी टूटी पड़ी हैं। जिसकी वजह से लोग परेशान हैं। पार्षदों के पास वह जाते हैं तो पार्षद भी फंड की कमी का बहाना कर अपना पीछा छुटा लेते हैं।
दरअसल, मई 2022 में दिल्ली नगर निगम को एकीकृत किया गया था। इसके बाद वार्डों के परिसीमन और आरक्षण को तय करने में चार से पांच माह का समय लगा था जिसके बाद नवंबर में चुनाव की घोषणा हुई और चार दिसंबर 2022 को चुनाव हुए और सात दिसंबर को नतीजे आए।
दो साल तक कोर्ट बाजी में बीता समय
दिल्ली नगर निगम के तीन में से करीब दो साल आप और भाजपा में हुए झगड़े में बीत गए। इतना ही नहीं महापौर से लेकर स्थायी समिति और वार्ड समितियों के चुनाव तक को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। इसकी वजह से निगम का समय कोर्टबाजी में ज्यादा बीता और पार्षद विकास कार्यों पर ध्यान नहीं दे पाए।
महापौर चुनाव को लेकर निगम सदन में जनवरी और फरवरी 2023 में हुई बैठकों में लाल घुसे तक पक्ष विपक्ष में चले। इसके बाद पिछले 2024 में निगम सदन की बैठकें हंगामे की भेंट चढ़ गई और कोई विकास की परियोजना शुरू नहीं हो सकी।
स्थायी समिति के सदस्य के चुनाव से लेकर चेयरमैन के चुनाव के लिए आप और भाजपा का राजनिवास के मामले सुप्रीम कोर्ट में चलते रहे। स्थायी समिति का गठन 2022 से लेकर 2025 के जून तक नहीं हो सका था जिससे बड़ी परियोजनाएं लंबित पड़ी रही थी।
तीन साल में बदल गया निगम का राजनीतिक समीकरण
दिल्ली नगर निगम का तीन साल में सत्ता का समीकरण बदल गया है। क्योंकि 2022 मेें जो चुनाव हुआ उसमें आप की सरकार पूर्ण बहुमत से बनी थी। 250 सीटों वाले दिल्ली नगर निगम में आप को 134 तो भाजपा को 104 ही सीटें मिली थी। वहीं, तीन निर्दलीय और कांग्रेस को नौ सीटें मिली थी।
लेकिन वर्तमान में स्थिति यह है कि आप दो फाड़ हो चुकी है। 15 पार्षदों ने टूटकर इंद्रप्रस्थ विकास पार्टी बना ली है जबकि सत्तारुढ़ आप अब विपक्ष में है। वहीं, भाजपा 123 सीटों के साथ 101 सीट आप के पास हैं और नौ सीट कांग्रेस के पास हैं।
सुधार कार्य जिन पर अभी सख्त जरूरत है
- पार्कों का रखरखाव बेहतर हो और फंड की कमी न हो; इसके लिए दिल्ली सरकार मदद करें।
- गलियों और नालियों के विकास के लिए पार्षदों को अतिरिक्त फंड दिया जाए और न्यूनतम एक करोड़ रुपए प्रतिवर्ष सुनिश्चित किया जाए।
- खस्ताहाल निगम स्कूलों की इमारतों का सुधार किया जाए।
- खस्ताहाल सार्वजनिक शौचालयों का सुधार किया जाए।
- सामुदायिक केंद्रों की स्थिति को सुधारा जाए।
- आवारा कुत्तों की समस्या के लिए शेल्टर बनाए जाएँ और अतिरिक्त सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएँ।
देशभर में विकास गति को देने के लिए तीन स्तर पर प्रणाली बनाई गई है। इसमें केंद्र, राज्य व स्थानीय निकाय है। स्थानीय निकाय जब तक स्थानीय स्तर पर काम नहीं करेंगे तो कैसे चलेगा। पार्कों और गलियों की स्थिति खराब है। जब निगम से बात करों तो कहा जाता है फंड नहीं है। ऐसे में कैसे दिल्ली का विकास होगा।- अतुल गोयल, अध्यक्ष, यूनाइटेड रेजिडेंट ज्वाइंट एक्शन
एकीकृत निगम में भाजपा की सरकार को आए मात्र आठ माह भी पूरे नहीं हुए हैं लेकिन भाजपा की दिल्ली सरकार और केंद्र की मोदी सरकार के मार्गदर्शन में हम जनता की सेवा कर रहे हैं। हेल्थ ट्रेड लाइसेंस से लेकर जनरल ट्रेड लाइसेंस और फैक्ट्री लाइसेंस में सुधार किया है। वहीं, कर्मचारियों व अधिकारियों का वेतन भी एक तारीख को जारी किया जा रहा है। हम स्वच्छता मेंभी काम करेंगे। फंड की कमी को दिल्ली सरकार के द्वारा भी दूर किया जा रहा है। जहां सीएम विकास निधि और विधायक निधि से कार्य कराए जा रहे हैं। -
राजा इकबाल सिंह, महापौर, दिल्ली
तीन साल में मात्र 70-75 लाख का बजट पार्षदों को क्षेत्र के विकास के लिए मिला है। जिससे मुश्किल से एक मोहल्ले की नाली भी नहीं बन सकती है। यह बहुत खराब समय हैं क्योंकि बजट में दो करोड़ रुपए का प्रविधान पार्षद निधि के लिए कर रखा है। पार्कों और गलियों की स्थिति बहुत खराब है। -
प्रवीण कुमार, स्थायी समिति में आप के प्रतिपक्ष के नेता |