यूसील अस्पताल का दवा काउंटर बंद होने के कारण मरीजों की बढ़ी परेशानी।
संसू, जादूगोड़ा। यूसील जादूगोड़ा अस्पताल में दवा सप्लाई करने वाली आउटसोर्सिंग एजेंसी केके फार्मा ने मंगलवार से अपना दवा काउंटर पूरी तरह बंद कर दिया। इसके बाद अस्पताल में इलाज कराने आने वाले मरीजों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। दवा उपलब्ध न होने के कारण मरीजों को मजबूरन बाजार से महंगी दवाइयां खरीदनी पड़ रही है। केके फार्मा के संचालक कमल गुप्ता के अनुसार यूसील प्रबंधन की ओर से उनका भुगतान लंबे समय से बकाया है। बार-बार आग्रह और आश्वासन के बावजूद जब बकाया भुगतान नहीं किया गया, तो कंपनी आर्थिक दबाव में आ गई और उसे दवा सप्लाई रोकने का निर्णय लेना पड़ा।
शुरू से विवादों में रही सप्लाई
जानकारी के अनुसार केके फार्मा को 16 जुलाई 2025 से यूसील अस्पताल में दवा आपूर्ति का टेंडर मिला था। लेकिन शुरुआत से ही दवाओं की उपलब्धता को लेकर शिकायतें मिलती रहीं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें स्थिति इतनी खराब रही कि दवाओं का नॉट अवेलेबल (एनए) प्रतिशत 50% से अधिक पहुंच गया, जो टेंडर के नियमों का उल्लंघन है। इसका सीधा मतलब यह था कि आधे से अधिक मरीजों को समय पर दवा नहीं मिल सकी। कई बार मरीजों को बाद में आइए कहकर लौटा दिया गया, और बाद में भी दवाएं उपलब्ध नहीं कराई गईं। इसी लापरवाही को देखते हुए यूसील प्रबंधन ने कंपनी पर एक लाख रुपये की पेनल्टी भी लगाई थी।
एक स्प्ताह में होगा बकाया भुगतान उधर, कंपनी का कई लाख रुपये का भुगतान चार महीनों से लंबित है, जो सप्लाई रोकने का मुख्य कारण बना। सीएमओ ने कहा कि 5-6 दिन में भुगतान होगा।
मामले पर यूसील अस्पताल के सीएमओ डॉ. देवाशीष भट्टाचार्य ने बताया कि कंपनी का बिल बकाया जरूर है, लेकिन भुगतान की प्रक्रिया जारी है।
अस्पताल प्रबंधन ने नहीं दिया जवाब ईआरपी सिस्टम के पहली बार अपडेट होने और तकनीकी दिक्कतों के कारण देरी हुई। बिल जमा होने के बाद अकाउंट्स विभाग से कई क्वेरी आई थीं, जिनका उत्तर अस्पताल और पर्सनल विभाग द्वारा दिया गया है।
सीएमओ ने कहा कि मैंने केके फार्मा से दवा काउंटर बंद न करने का आग्रह किया था। 5-6 दिन में भुगतान कर दिया जाएगा, लेकिन उन्होंने सप्लाई बंद कर दी।
गंभीर मरीजों को झेलनी पड़ रही परेशानी
दवा काउंटर बंद होने से सबसे अधिक परेशानी मजदूर वर्ग, बुजुर्ग, गर्भवती महिलाओं और गंभीर मरीजों को झेलनी पड़ रही है। मरीजों का कहना है कि जांच तो हो रही है, लेकिन अस्पताल में दवा न मिलने से पूरा इलाज बाधित हो रहा है।
स्थिति यह है कि मरीजों को उपचार का आधा बोझ अस्पताल के बाहर दवाइयों पर उठाना पड़ रहा है। जो उनके लिए आर्थिक रूप से भारी साबित हो रहा है। |